अन्ना का आंदोलन और उनकी ताकत
१६ अगस्त २०११चार दशकों से धूल फांक रहे लोकपाल बिल को पास कराने की मांग के साथ इस साल शुरू में अन्ना हजारे ने मुहिम शुरू की. अप्रैल महीने में उन्होंने भूख हड़ताल भी की और केंद्र सरकार को उनकी मांगों को मानना पडा. लेकिन सिविल सोसाइटी और सरकार के मसौदे में मतभेद बने रहे और संसद में सरकार का लोकपाल बिल का मसौदा रखा गया. इसके विरोध में अन्ना ने 16 अगस्त से अनशन की घोषणा की थी लेकिन सरकार ने उसे होने नहीं दिया.
अन्ना हजारे और उनके साथियों की गिरफ्तारी पर देश भर में कड़ी प्रतिक्रिया हुई है और विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म के जगदीप छोकर का कहना है कि जनलोकपाल बिल के लिए अन्ना हजारे का आंदोलन लंबे समय से चल रहा है लेकिन जिस तरह से मंगलवार को उनके अनशन को रोका गया वह निंदनीय है.
रोष के प्रतीक
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल संस्था की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुपमा झा के मुताबिक अन्ना हजारे लोगों के गुस्से के प्रतीक के रूप में उभरे हैं.
"भ्रष्टाचार इतना बढ़ चुका है और लोग इतना परेशान हो चुके हैं कि जब अन्ना हजारे में उन्हें उम्मीद की किरण दिखाई दी तो वे उनके पीछे एकजुट हो गए. आम जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त है और लोग मानते हैं कि सरकार इससे निपटने के लिए कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. अगर अन्ना हजारे की जगह साफ छवि रखने वाला कोई भी व्यक्ति आंदोलन शुरू करता तो लोग उसका भी समर्थन करते."
जनलोकपाल बिल के लिए अन्ना हजारे के अनशन करने की मांग को सरकार ब्लैकमेल बताती है और उसका कहना है कि जो लोग इस तरह का दबाव सरकार पर डाल रहे हैं उन्हें जनता ने नहीं चुना है. लोकतंत्र में संसद के सर्वोच्च होने का हवाला देते हुए सरकार कहती है कि कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद के पास ही है.
जगदीप छोकर का मानना है कि एक बार चुनाव जीतने के बाद नेता अहंकार में चूर हैं और वह लोगों की भावनाओं को नहीं समझना चाहते. "जनता के लिए राजनीतिक वर्ग की जवाबदेही बनती है लेकिन एक बार जीतने के बाद वह खुद को जिम्मेदारी से मुक्त समझता है और व्यापारी वर्ग के साथ मनचाहे फैसले करता है. इससे जनता में रोष पनपा है और अन्ना हजारे इसी रोष को प्रकट कर रहे हैं. "
बेदाग छवि
अनुपमा झा जनलोकपाल बिल की मांग को जायज मानती हैं और उनके मुताबिक सरकार को समझना चाहिए कि इस तरह के प्रदर्शनों और सड़क पर उतरने की नौबत क्यों पड़ी. नेताओं और नौकरशाहों ने भ्रष्टाचार को काबू में करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया और इस वजह से लोगों सड़कों पर उतरना पडा. अन्ना हजारे की छवि बेदाग है और लोग भ्रष्टाचार से परेशान हैं. इन दोनों बातों की वजह से ही उन्हें अपार समर्थन मिल रहा है.
यूं तो अन्ना हजारे महाराष्ट्र में सामाजिक मुद्दों पर आंदोलन करते हुए कई बदलाव लाने में सफल रहे हैं लेकिन उन्हें राष्ट्रव्यापी पहचान और इतनी मान्यता जनलोकपाल बिल और भ्रष्टाचार के लिए उनके आंदोलन ने ही दी. अनुपमा झा का मानना है कि अन्ना हजारे को असली ताकत लोगों से ही मिलती हैं.
"अन्ना हजारे को अपने लोगों से ताकत मिलती है. देश के युवा और हजारों कार्यकर्ताओं के अलावा कई नेता, सरकारी कर्मचारी, पुलिसकर्मियों का भी निजी रूप से मानते हैं कि वह जो कर रहे हैं वह बिलकुल सही है. किसी भी सिविल सोसाइटी को इससे ताकत मिलती है. "
अन्ना हजारे के साथ लोगों के एकजुट होने की बड़ी वजह एक के बाद एक कई घोटालों का सामने आना और विपक्षी पार्टियों के भी भ्रष्टाचार के आरोप में घिरना रहा. विपक्ष के सही भूमिका न निभा पाने की वजह से अन्ना हजारे के नेतृत्व में सिविल सोसाइटी सामने आई और एक नए आंदोलन की शुरुआत हुई.
नीयत पर संदेह
"भ्रष्टाचार के मामले में अधिकतर राजनतिक दल लिप्त हैं और इसीलिए देश में 42 साल से लोकपाल की चर्चा होती रही. 42 साल तक किसी बिल के लटकने की वजह है राजनीतिक वर्ग नहीं चाहता कि इसे पास किया जाए. विपक्ष जिस तरह अपनी भूमिका निभाने में नाकाम रहा उसे देखते हुए सिविल सोसाइटी सामने आई और अपना काम कर रही है. "
ऐसे समय में जब अन्ना हजारे को देश भर में समर्थन मिल रहा है उसे कमजोर करने के लिए कुछ कांग्रेस नेताओं ने अन्ना पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप भी लगाए. लेकिन यह रणनीति कांग्रेस पर ही भारी पड़ गई.
जगदीप छोकर ने बताया, "जनता साफ छवि के चलते अन्ना हजारे को अपना नेता मानती है. जगदीप छोकर कहते हैं कि कांग्रेस ने शनिवार को जिस तरह से अन्ना हजारे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए उससे कांग्रेस की ही किरकिरी हुई. जो व्यक्ति पिछले कई दशकों से अपने गांव में काम कर रहा है और उसका अपना नैतिक आधार है. ऐसे में जब कांग्रेस ने उन पर आरोप लगाए तो उनकी भरसक निंदा की गई."
घोटालों से जूझ रही केंद्र सरकार के पास एक मौका था कि वो जनता को संदेश देती कि वह भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए गंभीर है. लेकिन अन्ना के अनशन से पहले ही उन्हें हिरासत में लिए जाने से लोगों में संदेश गया है कि सरकार लोगों को विरोध का अधिकार नहीं देना चाहती. यह कदम भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के सामने सरकार के पास विकल्पों की जहां कमी दिखाता है वहीं अन्ना और उनके साथियों को देशव्यापी समर्थन का मजबूत आधार भी तैयार करता है.
रिपोर्ट: सचिन गौड़
संपादन: प्रिया एसेलबोर्न