अन्ना की पहेली में उलझी सरकार
१७ अगस्त २०११पुलिस ने मंगलवार शाम को ही हजारे की रिहाई के आदेश जारी कर दिए, लेकिन वह बिना गारंटी के बाहर आने के तैयार नहीं हैं. 74 वर्षीय हजारे कड़े लोकपाल कानून की मांग के साथ मंगलवार से अनशन करने वाले थे लेकिन इससे पहले ही उन्हें 'एहतियातन' गिरफ्तार कर लिया गया.
हजारे की गिरफ्तारी के बाद भारत के कई शहरों में प्रदर्शन हुए. रिहाई से उनके इनकार के बाद माहौल और तनावपूर्ण हो गया है. उनके सैकड़ों समर्थक रात भर तिहाड़ जेल के सामने नारेबाजी करते रहे.
इंडिया गेट पर रैली
भारत में भ्रष्टाचार को लेकर लोगों की नाराजगी बढ़ रही है और अन्ना हजारे इसके खिलाफ मुहिम में एक राष्ट्रव्यापी नेता के तौर पर उभर रहे हैं. वह भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े लोकपाल कानून की मांग कर रहे हैं. सरकार की ओर से तैयार लोकपाल विधेयक के मसौदे को वह 'कमजोर' बता कर खारिज करते हैं.
हजारे की इंडिया अगेंस्ट करप्शन मुहिम के प्रवक्ता अवस्थी मुरलीधरन बताते हैं कि मंगलवार सुबह अपनी गिरफ्तारी के बाद से हजारे कुछ नहीं खा रहे हैं. वह कहते हैं, "वह तब तक तिहाड़ जेल नहीं छोड़ेंगे जब तक उन्हें अनशन करने की अनुमति नहीं दे दी जाती." मुरलीधरन ने बताया कि वे बुधवार को इंडिया गेट पर एक रैली आयोजित कर रहे हैं.
मंगलवार को जब पुलिस ने देखा कि हजारे एक पार्क में सिर्फ तीन दिन तक और सीमित समर्थकों के साथ अनशन करने की पुलिस की हिदायत को मानते नहीं दिख रहे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. हजारे के 1,400 समर्थक भी गिरफ्तार किए गए.
इधर कुआं, उधर खाई
हजारे की गिरफ्तारी को टीवी चैनलों पर लाइव दिखाया गया. इसके अलावा बुधवार को छपे अखबार इस बात पर एकमत हैं कि सरकार के लिए इस गिरफ्तारी का प्रतिकूल असर होगा क्योंकि हजारे एक ऐसे शहीद की भूमिका में दिखते हैं जिसे गलत तरीके से जेल में डाला गया है.
हिंदुस्तान टाइम्स ने पहले पन्ने पर बैनर हेडलाइन दी है, "अन्ना ने सरकार को बंधक बनाया." हजारे ने गिरफ्तारी की आशंका को देखते हुए पहले ही एक संदेश रिकॉर्ड कर दिया. इसमें वह कहते हैं, "आजादी की दूसरी लड़ाई शुरू हो गई है. मेरे देशवासियो समय आ गया है जब भारत की जेलों में कोई जगह खाली नहीं रहनी चाहिए."
हजारे और उनके समर्थकों की गिरफ्तारी की बड़े पैमाने पर आलोचना हुई है. इसे विरोध को दबाने की कोशिश माना जा रहा है. पर्यवेक्षकों का कहना है कि हजारे के खिलाफ हुई कार्रवाई से कहीं वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के खिलाफ व्यापक आंदोलन का स्रोत न बन जाएं. घोटालों में फंसी सरकार से महंगाई की मार झेल रहे आम लोग ज्यादा खुश नहीं दिखते.
डीएनए अखबार में राजनीतिक स्तंभ लिखने वाले परसा वेंकेटश्वर राव कहते हैं, "सरकार ने कुछ होने से पहले ही उन्हें गिरफ्तार कर खुद को परेशानी में डाल लिया है. अब सरकार उस स्थिति में है कि अगर वह हजारे को अनशन की अनुमति देती है, तो मुश्किल है और नहीं देती है, तो भी मुश्किल.
सरकार की सफाई
गृह मंत्री ने इस गिरफ्तारी को 'पीड़ादायक जिम्मेदारी' बताया, लेकिन वह हजारे की तरफ से पुलिस के निर्देश की अनदेखी की आशंका के मद्देनजर इसे उचित ठहराते हैं. सरकार मानती हैं कि सभी भारतीयों को विरोध जताने का अधिकार है. चिदंबरम कहते हैं, "लेकिन इस अधिकार का इस्तेमाल कुछ निश्चित तार्किक शर्तों के तहत ही करना होगा."
भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले हजारे इससे पहले अप्रैल में भी 98 घंटों तक अनशन कर चुके हैं जिसके बाद सरकार संसद में लोकपाल विधेयक लाने पर राजी हुई. बिल का मसौदा तैयार करने के लिए मंत्रियों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों की साझा कमेटी बनी लेकिन उनके बीच बुनियादी मतभेद कायम रहे.
लोकपाल के दायरे से प्रधानमंत्री और उच्च न्यायपालिका को बाहर रखे जाने से नाराज हजारे ने फिर 16 अगस्त से अनशन करने की घोषणा की थी. लेकिन मंगलवार सुबह ही उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.
इससे पहले 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से अपने भाषण में मनमोहन सिंह ने कहा कि भ्रष्टाचार देश की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है जिसके खिलाफ सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर काम करना होगा. लेकिन उन्होंने हजारे की तरफ इशारा करते हुए कहा कि अनशन करने से कुछ नहीं होगा.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः आभा एम