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अपनी जगह की तलाश करता जी-8

१८ मई २०१२

अमेरिका के कैंप डेविड में आज जी-8 देशों का सम्मेलन शुरू हो रहा है. यूरोप के वित्तीय संकट के साये में हो रहे सम्मेलन में अफगानिस्तान और सीरिया जैसे मुद्दों पर भी चर्चा होगी. जी-8 की जरूरत पर भी सवाल उठ रहे हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

24 घंटे से भी कम समय तक चलने वाले सम्मेलन की खासियत यह होगी कि फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद पहली बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर विश्व नेताओं से मिलेंगे. आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाले कदमों की उनकी मांग पर विश्व के ताकतवर देशों के नेताओं के विचारों की उम्मीद है. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, रूस, जर्मनी, इटली और जापान के सरकार प्रमुखों को इस बैठक के लिए बुलाया है. यूरो संकट पर चर्चा के अलावा विश्व नेता अफ्रीका में खाद्य सुरक्षा, ईरान के परमाणु विवाद, अफगानिस्तान से वापसी, सीरिया और उत्तर कोरिया के खिलाफ कार्रवाई और पर्यावरण सुरक्षा जैसे मुद्दों पर बात करेंगे.

रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन सम्मेलन में भाग नहीं ले रहे हैं. उन्होंने नए प्रधानमंत्री दिमित्री मेदवेदेव को भेजने का फैसला लिया है. जी-8 को अक्सर पश्चिमी देशों में जी-7 और रूस कहा जाता है क्योंकि रूस के अलावा इस संगठन में आर्थिक और राजनीतिक रूप से एक जैसा सोचने वाले देश हैं, जबकि पर्यावरण या सीरिया जैसे बहुत से मुद्दों पर रूस और जी-7 देशों में गंभीर मतभेद हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

अब पुतिन ने जी-8 की बैठक के लिए वाशिंगटन न जाने का फैसला कर संगठन के महत्व पर सवाल उठा दिया है. इस संगठन में शामिल देशों में दुनिया की पंद्रह फीसदी आबादी रहती है जबकि वहां विश्व का दो तिहाई उत्पादन होता है. 70 के दशक में तेल संकट के बीच में यह संगठन आर्थिक और वित्तीय मामलों पर समन्वय के लिए बना था लेकिन इस बीच वहां राजनीतिक मुद्दों पर भी चर्चा होती है और फैसले लिए जाते हैं. इस बीच मुश्किल आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर जी-20 को शीर्ष नेताओं के स्तर पर सक्रिय कर दिया गया है. उसके बाद जी-8 का महत्व घटा है.

जी-8 और नाटो सम्मेलनों में भाग लेने जाने से पहले जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने जर्मनी, यूरोप और अमेरिका की एक दूसरे पर निर्भरता पर जोर दिया है. उन्होंने कहा कि वित्तीय और आर्थिक संकट के दौरान हमने सीखा है कि हम एक दूसरे पर कितना निर्भर हैं, अकेले हम कितना कम कर सकते हैं और साझा कार्रवाई कितनी जरूरी है. चांसलर ने कहा कि पर्यावरण, सुरक्षा और वित्तीय बाजार के नियमन पर अभी भी मतभेद हैं लेकिन अच्छे दोस्ताना रिश्तों के कारण ऐसी स्थिति में भी समझौता संभव होता है.

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जर्मन चांसलरतस्वीर: Reuters

जी-8 सम्मेलन से पहले उसमें शामिल चार यूरोपीय देश जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन और इटली आर्थिक और वित्त नीति पर अपना साझा रुख तय करेंगे. जी-8 की बैठक में यूरोजोन को स्थिर बनाने के कदमों पर भी चर्चा होनी है. अमेरिका ने यूरोप से यूरो के मुद्दे पर सख्त रवैया अपनाने को कहा है.

उधर विकास संगठनों ने भुखमरी और गरीबी के शिकार लोगों की मदद के लिए ठोस फैसलों की मांग की है. अंतरराष्ट्रीय संगठन वन की जर्मनी शाखा के प्रमुख टोबियास कालर ने कहा, "एक अरब से ज्यादा लोग हर शाम भूखे पेट सोने जाते हैं." राहत संगठनों को कैंप डेविड सम्मेलन से अब तक दी गई मदद के ठोस आंकड़े पेश करने की उम्मीद है. कालर का कहना है कि जी-8 ने अपने आश्वासनों को अब तक पूरा नहीं किया है.

जी-8 ने 2009 में ला अकीला शिखर सम्मेलन में खाद्य सुरक्षा और कृषि के लिए 2013 तक 22 अरब डॉलर देने की बात कही थी. इसमें से सिर्फ एक चौथाई का भुगतान हुआ है. विकास संगठन 30 सबसे गरीब देशों के लिए 27 अरब डॉलर के एक्शन प्लान की मांग कर रहा है. उसका कहना है कि इसके जरिए 5 करोड़ लोगों को भारी गरीबी से बचाया जा सकेगा और डेढ़ करोड़ कुपोषित बच्चों की रक्षा हो सकेगी.

एमजे/ओएसजे (डीपीए, रॉयटर्स)

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