अमेरिकी जासूसी के नाम पर दशहत का खेल
३ नवम्बर २०११15 दिन तक अयूब को कैद में रखा गया और उन्हें खूब याताना और धमकी दी गई कि अगर उन्होंने अमेरिका का जासूस होने की बात नहीं कबूली तो उन्हें जान से मार दिया जाएगा. अयूब को अगवा करने वालों को शक था कि वह अमेरिकियों को खुफिया जानकारी देते हैं जिसके आधार पर अमेरिकी ड्रोन उग्रवादी ठिकानों को निशाना बनाते हैं.
अयूब (बदला हुआ नाम) आखिरकार उन लोगों को भरोसा दिलाने में कामयाब रहे कि वह कोई जासूस नहीं हैं और फिर उन्हें रिहा कर दिया गया. लेकिन अयूब की कई हड्डियां टूटी हुई थीं और पैरों में छेद थे जो बिजली से चलने वाली ड्रिल मशीन से बनाए गए.
फरवरी 2009 से इस तरह बहुत से लोगों को अगवा किया गया लेकिन वे सभी अयूब की तरह खुशकिस्मत नहीं रहे. लोगों को अगवा करने के पीछे अल कायदा से जुड़े इत्तेहाद-ए-मुजाहिदीन खोरासन का हाथ है जो अमेरिकी जासूसों को पकड़ता और मारता है. अमेरिका ने पाकिस्तान के उन सात कबायली जिलों में ड्रोन हमले तेज कर दिए हैं जहां तालिबान और अल कायदा के ठिकाने हैं. खोरासन ने जासूसी के आरोप में अब तक लगभग 250 लोगों को कत्ल किया है.
ड्रोन के लिए एजेंट 'जरूरी'
पायलट रहित अमेरिकी विमानों से होने वाले मिसाइल हमलों में अल कायदा के दर्जनों आला नेता मारे गए हैं. अमेरिकी अधिकारियों ने अगस्त में अल कायदा के अभियान प्रमुख अतियाह अब्द अल-रहमान की मौत को कामयाबी करार दिया. उसकी जगह लेने वाले सऊदी नागरिक हफ्स अल-शहरी को भी तीन हफ्तों बाद ड्रोन हमले में मार दिया गया.
ड्रोन विमानों में अत्याधुनिक तकनीक और रात में देख सकने वाले उपकरण होते हैं लेकिन जमीन पर खुफिया नेटवर्क के बिना लक्ष्य का निर्धारण बहुत मुश्किल है. इसके लिए स्थानीय आबादी में एजेंट बनाए जाते हैं जो लक्ष्य की पहचान करते हैं और ड्रोन से दागी जाने वाली मिसाइल को निर्देशित भी करते हैं. इसके लिए उन्हें एक उपकरण दिया जाता है.
तालिबान और पाकिस्तानी खुफिया सूत्रों के मुताबिक कभी कभी एजेंट सैटलाइट फोन के जरिए अफगानिस्तान में स्थित सीआईए से स्टेशन को जानकारी देते हैं और फिर वह जानकारी ड्रोन ऑपरेटरों तक पहुंचा दी जाती है.
"जासूसों का यही हश्र होगा"
उग्रवादी संदिग्ध एजेंटों के इस नेटवर्क को तोड़ना चाहते हैं. इसीलिए वे स्थानीय आबादी में दहशत फैलाते हैं. संदिग्धों को अगवा कर लिया जाता है, जानकारी निकलवाने के लिए उन्हें यातनाएं दी जाती हैं और फिर मार भी दिया जाता है. उनकी लाशों को इस चेतावनी के साथ सड़क पर फेंक किया जाता है कि "हर अमेरिकी जासूस का यही हश्र होगा."
जासूसों के खिलाफ काम करने वाले उग्रवादी गुट का मुख्यालय उत्तरी वजीरिस्तान के उप-जिले मिराली के मकीखेल में है. इत्तेहाद-ए-मुजाहिदीन खोरासन का मौजूदा प्रमुख 35 साल का सऊदी नागरिक है जिसे स्थानीय लोग मुफ्ती अब्दुल जब्बार के नाम से जानते हैं. वह 2002 में उत्तरी वजीरिस्तान आया और उसने स्थानीय भाषा और तौर तरीके सीखे.
खोरासन के सदस्यों की संख्या 2,000 के आसपास बताई जाती है जिनमें 60 प्रतिशत लोग मध्य एशिया से, 20 प्रतिशत अरब और बाकी स्थानीय लोग हैं. पाकिस्तानी खुफिया सूत्रों के मुताबिक स्थानीय लोगों में सबसे ज्यादा पंजाब प्रांत से बताए जाते हैं.
खोरासन की 15 सदस्यों वाली एक परिषद है जो जासूसी के आरोप में पकड़े गए लोगों का भाग्य तय करती है. संदिग्धों को पहले पहले किसी निजी जेल में रखा जाता है. कम से कम ऐसी दस जेल हैं जो उत्तरी वजीरिस्तान के मीरमशाह, मीर अली और दाताखेल इलाकों में हैं. बाद में संदिग्धों को या तो छोड़ दिया जाता है या फिर मार दिया जाता है. बीच का कोई रास्ता नहीं है, कम से कम खोरासन के लिए.
"कहां से ये जानवर आए हैं"
इस नीति की वजह से पाकिस्तान तालिबान में मतभेद भी पैदा हुए हैं. खास तौर से स्थानीय उग्रवादी कमांडर हाफिज गुल बहादुर पिछले कुछ सालों से एक संतुलन बना कर चल रहा है. उसके स्थानीय कबायली लोगों से भी संपर्क हैं और पाकिस्तान सरकार से भी उनकी बातचीत है. वह सिर्फ अफगानिस्तान में तैनात नाटो सेनाओं पर हमले करने पर अपना ध्यान केंद्रित रखता है और दूसरे स्थानीय तालिबान गुटों की तरह पाकिस्तान के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से बचता है.
खोरासन की गतिविधियों की वजह से बहादुर का यह संतुलन बिगड़ रहा है क्योंकि उसकी क्रूरता का शिकार कबायली लोग बन रहे हैं. मीर अली से एक कबायली बुजुर्ग का कहना है, "मुझे नहीं पता कि ये जानवर कहां से आए हैं. उन्हें इस्लाम, जिंदगी, इज्ज्त या आदमी की संपत्ति का कोई ख्याल नहीं है."
पिछले महीने उत्तरी वजीरिस्तान में बांटे गए एक पर्चे में बहादुर ने कहा, "हमने उन्हें सही करने की कोशिश की, लेकिन हर बार हमारी ऐसी कोशिशें नाकाम रहीं." इसके जवाब में खोरासन ने भी पर्चे बांटे और कहा कि वह इस्लाम के हर दुश्मन को "इंसाफ के कठघरे" तक लाएंगे और इसके लिए यह गुट कोई भी तरीका अपना सकता है.
रिपोर्ट: डीपीए/ए कुमार
संपादन: आभा एम