अमेरिकी डील कमजोर राजनीतिक प्रणाली का संकेत
३ अगस्त २०११कर्ज की सीमा बढ़ाने की नाटकीय बहस के बाद संकट का हल अभी के लिए निकाल लिया गया है लेकिन इसने आर्थिक नीति की व्यव्हारिकता और दुनिया भर पर उसके असर के बारे में अहम सवालों को अनसुलझा ही छोड़ दिया है.
एक ऐसे समय में जब अमेरिका में सुधार के लिए विवेकपूर्ण कोशिशों की सबसे ज्यादा जरूरत थी, उस समय लंबी, तकलीफदेह और जहरीली साझीदारी और वॉशिंगटन की निष्क्रियता को उघाड़ कर रख दिया गया जिसने अंतरराष्ट्रीय निवेशकों और आम अमेरिकियों के विश्वास को झिंझोड़ दिया.
अमेरिका को सबसे ज्यादा कर्ज देने वाले चीन ने साफ शब्दों में कह दिया था कि दूसरे देशों पर इसका क्या असर होगा. चीन की शिन्हुआ समाचार एजेंसी ने डैमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी की लड़ाई पर टिप्पणी की कि इस कहानी का सबसे बदनुमा हिस्सा तो यह है कि कई देशों का अस्तित्व इस 'हाथी और गधे' की भद्दी लड़ाई के कारण संकट में पड़ता है. गधा डैमोक्रेटिक पार्टी का जबकि हाथी रिपब्लिकन पार्टी का प्रतीक है.
सुपर पावर होने पर सवाल
लगभग सभी लोग इस बात से सहमत हैं कि अमेरिका के लिए अर्थव्यवस्था का रास्ता आसान नहीं है क्योंकि उस पर पहले से ही 14 हजार 300 अरब डॉलर और हर डॉलर पर चालीस पैसे का कर्ज है. फिर भी इस पर गहरा मतभेद है कि समस्या हल कैसे की जाए. कट्टरपंथी विचारधारा वाले टी पार्टी रिपब्लिकन्स कर बढ़ाने के धुर विरोधी हैं तो डैमोक्रेट्स को सोशल सिक्यूरिटी पेंशन सिस्टम में भारी कटौती के लिए मजबूर होना पड़ा है. ब्रुकिंग्स इंस्टिट्यूट के वित्तीय और मौद्रिक नीति विशेषज्ञ बैरी बोसवर्थ कहते हैं कि वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव बनाए रखना तब आसान नहीं है जब आप देश को ही न संभाल पा रहे हों.
राष्ट्रपति बराक ओबामा की आर्थिक सलाहकारों की परिषद में रह चुकी क्रिस्टिना रोमर कहती हैं, "ऐसा कोई तरीका नहीं है कि अगले 25 साल में उस आकार का कर्ज रखें जो कांग्रेशनल बजट ऑफिस अनुमान लगा रहा है और आर्थिक सुपर पावर भी बने रहें. अगर हम इन कर्जों को कम नहीं करेंगे तो कोई तरीका नहीं कि हम भुगतान संकट से पार पा सकेंगे और काफी कमजोर देश हो जाएंगे."
कई रिपब्लिकन्स और कुछ डैमोक्रेट्स का मानना है कि रक्षा बजट में कटौती का भी असर यही होगा. अगले 10 साल में 350 अरब डॉलर की कटौती रक्षा बजट और अन्य सुरक्षा कार्यक्रमों में होगी. यही पूरे खर्च का आधे से ज्यादा हिस्सा है. अमेरिका का रक्षा बजट 2010 में 680 अरब डॉलर था.
कुछ समय के लिए अमेरिका और डॉलर की कीमत वैसी ही रहेगी क्योंकि कोई और देश उस आकार का नहीं कि उसकी जगह ले सके. यूरोप के वित्तीय संकटों ने उसे कमजोर किया हुआ है. और चीन के पास अमेरिका के बॉन्ड्स खरीदने के अलावा कोई और तरीका नहीं है जिससे वह अपने लाभ का कहीं निवेश कर सके और युआन की कीमत को हाथ से न जाने दे.
लेकिन चीन की अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से बदल रही है और अमेरिकी बॉन्ड्स के रिजर्व की उसकी जरूरत भी कम हो जाएगी. येल यूनिवर्सिटी में वरिष्ठ लेक्चरर और मॉर्गन स्टेनले के नॉन एग्जिक्यूटिव अध्यक्ष स्टेफन रोख कहते हैं कि चीन लगातार डॉलर से दूर हो रहा है, किसी को यह अच्छा लगे या न लगे.
अगर डॉलर दुनिया की रिजर्व मुद्रा होने का पद खो देता है तो अमेरिका की भू राजनैतिक स्थिति में भारी बदलाव आएगा. इससे अमेरिकी सरकार के लिए कर्ज की दर बढ़ जाएगी.
सौदे से कितना फायदा
अमेरिकी कर्ज को कम करने के लिए अमेरिकी खर्च के मुख्य कारणों को कम करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. यह खर्च हैं सोशल सिक्यूरिटी, मेडीकेड और मेडिकल केयर. अगर पेंशन और स्वास्थ्य नीति में सुधार नहीं किया गया तो 2047 तक इनका खर्च अमेरिकी टैक्स रेवेन्यू को चट कर जाएगा.
दोनों पार्टियां जानती हैं कि भुगतान करने में नाकाबिल हो जाने के खतरे के बावजूद किसी भी पार्टी ने इन प्रणालियों में सुधार की बात नहीं की है. धीमी रफ्तार से उबरती अर्थव्यवस्था के कारण नौकरियां उपलब्ध नहीं हैं, उम्मीद से ज्यादा बेरोजगारी है. ऐसे में सामाजिक कल्याण के लिए हो रहे कामों में कटौती बहुत तकलीफदेह है. मॉर्गन स्टेनले के रोख कहते हैं कि कोई गलती मत कीजिए, अमेरिका के वित्तीय असमजंस में बड़ा बदलाव नहीं आने वाला.
2012 के लिए क्या अर्थ है
कांग्रेस में प्रतिनिधि सभा उदारवादी और रुढ़िवादी धड़े से बनी है जिनकी सीटें आश्वस्त हैं. मतलब चुनाव में किसी और पार्टी के उम्मीदवार से हारने का डर नहीं है. मध्यमार्गी समझौता करने वाले सासंद यहां कम ही हैं. अमेरिकी जनता और देश को बुरी स्थिति में लाने वाले भुगतान संकट को डालने के लिए जितनी मुश्किल हुई उससे यही साबित होता है कि यह प्रणाली कितनी बेकार हो गई है. इस नाकामी का मुख्य कारण वित्तीय मामलों में कट्टरपंथी टी पार्टी मूवमेंट के सासंद हैं. वे इतने सरकार विरोधी हैं कि लगता है कि सरकार को गिराना चाहते हैं.
रिपोर्टः रॉयटर्स/आभा एम
संपादनः ए कुमार