जर्मनी भी अमेरिकी कर्ज संकट से नर्वस
२९ जुलाई २०११यूरोपीय संघ में अक्सर अंतिम समय पर समझौते होते रहे हैं और उसी तर्ज पर जर्मन सरकार निश्चिंत होने का अहसास दे रही है और उसका कहना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और रिपब्लिकन नेता कर्ज की सीमा बढ़ाने पर सहमत हो जाएंगे. लेकिन स्वयं ओबामा प्रलय की चेतावनी देने लगे हैं और जर्मन उद्यमों पर भी उसका असर होता दिखाई दे रहा है.
जर्मन विदेश व्यापार संगठन के अध्यक्ष अंटोन बोएर्नर स्वीकार करते हैं कि वे नर्वस हैं और अत्यंत खफा हैं. अभूतपूर्व बहस की अमेरिकी नीति की आलोचना करते हुए वे कहते हैं, "मुझमें इसके लिए कोई समझ नहीं है." वे कहते हैं, "मैं इसे गैरजिम्मेदाराना मानता हूं कि वैश्विक जिम्मेदारी ढ़ोने वाली एक विश्व सत्ता बच्चों की तरह पेश आ रही है."
जर्मन उद्योग जगत को डर है कि अमेरिकी विवाद से होने वाला नुकसान बहुत ही नाटकीय हो सकता है. जर्मन विदेश व्यापार संगठन के अध्यक्ष अंटोन बोएर्नर की राय है कि यदि अमेरिका दिवालिया हो जाता है तो उसका जर्मनी और विश्व पर बहुत बुरा असर होगा. लेकिन उन्हें उम्मीद है कि अधिकतम 15 अगस्त तक दोनों पक्षों में समझौता हो जाएगा.
यही राय दूसरे यूरोपीय आर्थिक विशेषज्ञों की भी है. यूरो बचाव पैकेज ईएफएसएफ के प्रमुख क्लाउस रेगलिंग भी नर्वस हो जाते हैं जब वे सोचते हैं कि विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कर्ज की अदायगी रोक सकती है, "ऐसा अबतक नहीं हुआ. यह पूरी विश्व अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख देगा."
पुराने तजुर्बे
ऐसा नहीं है कि इस समय जो कुछ अमेरिका में हो रहा है, उसकी कोई मिसाल न हो. कौमैर्त्स बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री यौर्ग क्रेमर बताते हैं, "अमेरिकी सरकार ने एक बार और डिफॉल्ट किया है, भले ही वह गैरइरादतन रहा हो." 1979 में कांग्रेस ने कर्ज की सीमा बढ़ाने में देर कर दी थी. नतीजतन सरकार से तकनीकी कारणों से सरकारी बांड के भुगतान में देरी हुई थी. क्रेमर बताते हैं कि अमेरिकी सरकार को यह महंगा पड़ा था. ब्याज दर तुरंत 60 आधार अंक बढ़ गया था और लंबे समय तक इस स्तर पर बना रहा.
लेकिन अलियांस के मुख्य अर्थशास्त्री बताते हैं कि समस्या का मुकाबला करने के दूसरे रास्ते भी हैं. वे 1995 का वाकया बताते हैं जब रिपब्लिकन और डेमोक्रैट सांसद कर्ज की सीमा बढ़ाने पर समय से सहमत नहीं हो पाए थे. जब तक सहमति नहीं हो गई तब तक राष्ट्रपति क्लिंटन ने पैसा बचाने के लिए कुछ सप्ताहों के लिए गैरजरूरी सरकारी विभागों को बंद कर दिया था.
विशेषज्ञों का मानना है कि स्थिति इसलिए भी नाटकीय है कि यूरोप भी कर्ज संकट का सामना कर रहा है. अमेरिका यदि लंबे समय तक भुगतान नहीं करने की स्थिति में रहता है तो वहां मंदी शुरू हो सकती है. लेकिन क्रेमर की सबसे बड़ी चिंता यह है कि भुगतान न करने पर अमेरिका पर भरोसा खत्म हो जाएगा और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के ठोस होने का दबदबा समाप्त हो जाएगा.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: ईशा भाटिया