इराक को इशारों से चलाने वाले मुक्तदा अल-सद्र क्या चाहते हैं?
२ सितम्बर २०२२इराक में प्रतिद्वंद्वी शिया गुटों का संघर्ष पिछले दिनों बगदाद की सड़कों पर खूनी खेल में बदल गया. महीनों से चले आ रहे राजनीतिक शून्य और तनाव की सुलगती स्थिति ने जंग से तबाह देश की मुश्किलें बढ़ा दी है. 24 घंटे के लिए मुक्तदा अल-सद्र के समर्थकों ने बगदाद के ग्रीन जोन को युद्ध का मोर्चा बना दिया. सुरक्षा बलों और प्रतिद्वंद्वी मिलिशिया के बीच फायरिंग में थम गई राजधानी को मुक्तदा अल-सद्र के बस एक शब्द राहत दे दी. टीवी पर प्रसारित अल-सद्र के भाषण में "वापस जाओ" की अपील सुनते ही लड़ाई थम गई, उनके समर्थक हथियार डाल कर वहां से चले गए और सब सामान्य हो गया.
अल-सद्र के कहे शब्दों में जो असर दिखा, वो यह भी बता रहा है कि लाखों समर्थकों पर उनकी कितनी पकड़ है और वो इस देश को कितना नुकसान पहुंचाने की कूवत रखते हैं. यह ईरान समर्थित उनके प्रतिद्वंद्वी शिया गुटों को भी एक कड़ा संदेश था.
वापसी की उनकी अपील के बाद इराक के कार्यवाहक प्रधानमंत्री समेत दूसरे नेताओं ने अल-सद्र का आभार जताया और उनके संयम की तारीफ की. राजनीतिक हलकों में यह असर अल-सद्र को अपने इन्हीं समर्थकों की भीड़ और उन पर नियंत्रण की वजह से मिला है. अल सद्र के एक इशारे पर वो सड़कों पर तबाही ला सकते हैं और दूसरा इशारा उन्हें कतार में खड़ा कर देगा.
मुक्तदा अल-सद्र ने राजनीति छोड़ने का एलान कर इराकी लोगों को यह दिखाया कि अगर उनका संयम टूट जाए तो देश में किस तरह की अव्यवस्था, विध्वंस और मौत का तांडव हो सकता है.
एक दिन की अशांति में 30 लोगों की मौत हुई, 400 से ज्यादा लोग घायल हुए लेकिन इस अध्याय के लिए जो राजनीतिक हालात जिम्मेदार हैं वो अभी खत्म नहीं हुए हैं. तो आखिर अल-सद्र चाहते क्या हैं और इराक का यह संकट खत्म कैसे होगा?
मुक्तदा अल-सद्र कौन हैं?
अल-सद्र एक लोकप्रिय मौलवी हैं जो 2003 में इराक पर अमेरिकी हमले के विरोध के प्रतीक के रूप में उभरे. अल-सद्र ने माहदी आर्मी के नाम से एक मिलिशिया बनाई और बाद में उसका नाम बदल कर सराया सलाम कर दिया.
अल-सद्र ने खुद को अमेरिका और ईरान दोनों के विरोधी के रूप में पेश करने के साथ ही गैर-सुधारवादी, राष्ट्रवादी नेता के रूप में स्थापित किया है. वास्तव में अल-सद्र एक संस्था के रूप में विकसित हुए हैं जिसने इराक के प्रमुख सरकारी पदों पर नियुक्तियों के जरिए इराकी संस्थाओं में अच्छी पैठ बना ली है.
अल-सद्र को इराकी समाज में रुतबा अपनी पारिवारिक विरासत से भी मिला है. वह ग्रैंड अयातोल्लाह मोहम्मद सादिक अल-सद्र के बेटे हैं. 1999 में सद्दाम हुसैन की आलोचना करने की वजह से उनकी हत्या कर दी गई थी. उनके बहुत से समर्थकों का कहना है कि वो उन्हें इसलिए सम्मान देते हैं क्योंकि कभी उनके पिता के वो मुरीद थे.
अल-सद्र राजनीति में उतरे और अप्रत्याशित होने के साथ ही प्रतिद्वंद्वियों पर विजय पाने के लिए अपने समर्थकों का आवाहन करने के लिए जाने जाते हैं. धर्म और क्रांति की पुकार में डूबे उनके मजबूत नारे समर्थकों के दिल में गहराई तक उतर जाते हैं.
इन्हीं रणनीतियों ने अल-सद्र को जमीनी स्तर पर समर्पित कार्यकर्ताओं की फौज के साथ इराक की राजनीति में एक मजबूत खिलाड़ी के तौर पर स्थापित किया है. उनके कार्यकर्ता मुख्य रूप से इराक के सबसे गरीब तबके से आते हैं. ग्रीन जोन में घुसने वाले उनके समर्थकों में ज्यादातर बेरोजगार हैं और अपनी इस स्थिति के लिए इराक के कुलीन नेताओं पर आरोप लगाते हैं.
2021 में अल-सद्र की पार्टी ने अक्टूबर में हुए चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतीं लेकिन बहुमत हासिल नहीं कर सके. ईरान समर्थित शिया प्रतिद्वंद्वियों के साथ समझौते से इनकार ने इराक में सरकार बनाने की कोशिशें नाकाम कर दी और वहां से शुरू हुई अभूतपूर्व राजनीतिक शून्यता अब 10वें महीने में प्रवेश कर गई है.
अल-सद्र के समर्थक क्या चाहते हैं?
राजनीतिक संकट जुलाई में गहरा गया जब प्रतिद्वंद्वी कॉर्डिनेशन फ्रेमवर्क को सरकार बनाने से रोकने के लिए अल-सद्र के समर्थक, संसद में घुस गए. कॉर्डिनेशन फ्रेमवर्क मुख्य रूप से ईरान समर्थित शिया गुटों का गठबंधन है. चार हफ्ते से ज्यादा उनके समर्थक संसद के बाहर धरने पर बैठे रहे. अल-सद्र जब अपने विरोधियों को अलग कर सरकार बनाने लायक पर्याप्त सांसद नहीं जुटा सके तो निराश हो कर अपने सांसदों को इस्तीफा दिलवा दिया और संसद भंग करके जल्दी चुनाव करने की मांग कर दी. मौजूदा सत्ताधारी व्यवस्था में खुद को हाशिए पर देख रहे लोगों ने उनकी इस मांग का भी समर्थन किया.
बगदाद के उपनगर सद्र सिटी में अल-सद्र के समर्थकों की भारी तादाद रहती है. इनमें से ज्यादातर लोग बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी का रोना रोते हैं. इनमें बहुत से लोग ऐसे हैं जिनकी जड़ें दक्षिणी इराक के ग्रामीण समुदायों में हैं और वो ज्यादा पढ़े लिखे भी नहीं हैं. इन्हें नौकरी ढूंढने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
इराक में वर्ग संघर्ष और निर्वासन का लंबा इतिहास रहा है और इससे पीड़ित अल-सद्र के समर्थकों को भरोसा है कि वो उस राजनीतिक तंत्र में क्रांति लाएंगे जो उन्हें भूल चुका है. हालांकि सच्चाई यह है कि इराक के इस तंत्र की ताकत में अल-सद्र की भी बड़ी हिस्सेदारी है.
इराकी संघर्ष के खतरे
इस हफ्ते इराक की सड़कों पर जो हुआ वह अल-सद्र और उनके प्रतिद्वंद्वियों के बीच सरकार बनाने को लेकर कई महीनों से चले आ रहे राजनीतिक तनाव और ताकत के लिए संघर्ष का नतीजा था. कॉर्डिनेशन फ्रेमवर्क ने इस बात के संकेत दिए हैं कि वो जल्दी चुनाव के खिलाफ नहीं हैं लेकिन दोनों धड़े तौर तरीकों को लेकर बंटे हुए हैं. इस बीच अदालत ने संसद भंग करने की अल-सद्र की मांग को असंवैधानिक कह कर खारिज कर दिया है.
राजनीतिक ठहराव की जड़ें अभी सुलझी नहीं हैं, ऐसे में विवाद फिर सिर उठा सकता है. इराक की स्थिरता को सबसे बड़ा खतरा अर्धसैनिक बलों और प्रतिद्वंद्वी शिया गुटों के बीच की लड़ाई से है. दक्षिणी इराक में अल-सद्र की समर्थक मिलिशिया ईरान समर्थित मिलिशिया गुटों के मुख्यालय में घुस गई. ये गुट भी इस तरह की जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं जो पहले होता रहा है.
इस पूरे परिदृश्य में ईरान की भूमिका भी अहम है जो इराक में काफी असर रखता है. ईरानी अधिकारी और सुप्रीम लीडर अयातोल्लाह खमेनेई बार बार शिया एकता की अपील करते हैं और अल-सद्र के साथ बातचीत के लिए मध्यस्थ बनने की कोशिश कर चुके हैं. हालांकि अल-सद्र इस बात पर अडिग है कि वो ईरान समर्थित गुटों को बाहर रख कर ही सरकार बनाएंगे.
इराक में बहुमत वाला शिया समुदाय सद्दाम हुसैन के शासन में कई दशकों तक दमन का शिकार रहा. 2003 में अमेरिकी हमले के बाद जब सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटा दिया गया और इसके साथ ही यहां की राजनीतिक व्यवस्था उलट गई. इराक में दो तिहाई लोग शिया हैं जबकि एक तिहाई सुन्नी. अब इराक में शिया समुदाय ही आपस में लड़ रहा है इनमें से कुछ ईरान समर्थित गुट हैं तो कुछ खुद को इराकी राष्ट्रवादी मानने वाले. ताकत, असर और देश के संसाधनों के लिए इनके बीच संघर्ष में इराक पिस रहा है.
एनआर/एके (एपी)