1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

ईरान में हलाल इंटरनेट

१२ जनवरी २०१३

इंटरनेट और सोशल मीडिया क्या कर सकता है, दुनिया भर की सरकारें और सत्ताएं ये जान चुकी हैं. यही वजह है चीन में इंटरनेट पर कड़ी नजर रहती है. अब ईरान ने भी ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार किया है जो फेसबुक व ट्विटर जैसी साइटों को कसेगा.

https://p.dw.com/p/17Ipv

ईरान के पुलिस प्रमुख के बयान ने इन दिनों देश में सनसनी फैलाई हुई है. इस्माइल अहमदी मोघदम ने दावा किया है कि एक 'इंटेलिजेंट सॉफ्टवेयर' का इस्तेमाल किया जाएगा जो इस बात का ध्यान रखेगा कि लोग फेसबुक जैसी साइटों का गलत इस्तेमाल न कर सकें. राजधानी तेहरान में पहले से ही इंटरनेट पर कई तरह की पाबंदियां हैं. अब इस सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल से इंटरनेट पर चौकसी और बढ़ जाएगी. ईरान में पश्चिमी वेबसाइटों के इस्तेमाल पर मनाही है. देश में पिछले साल 'हलाल इंटरनेट' नाम का प्रोजेक्ट शुरू किया गया, जिसके तहत चुनिंदा वेबसाइटों को ही इंटरनेट पर देखा जा सकता है. हालांकि इस पर काम पिछले एक दशक से चल रहा है.

चीन के रास्ते पर

इंटरनेट सेंसरशिप को और कड़ा करने के लिए ईरान चीन से मदद लेता आया है. चीन लंबे समय से नागरिकों को इंटरनेट के अधिकारों से दूर रखने के लिए चर्चा में रहा है. देश में हर वेबसाइट पर नजर रखी जाती है. सैकड़ों पश्चिमी साइटों को चीन में नहीं देखा जा सकता. ईरान भी चीन के ही रास्ते पर चलने की कोशिश करता रहा है, लेकिन पूरी तरह सफल नहीं रहा है.

ईरान में इंटरनेट मामलों की जानकार नीमा राशेदन कहती हैं कि सिस्टम में कई खामियां हैं जिस कारण ऐसा करना फिलहाल मुमकिन नहीं है, "मुझे नहीं लगता कि पुलिस प्रमुख जानते भी हैं कि वह क्या कह रहे हैं. उन्होंने तो एक नई योजना का एलान कर दिया, बगैर यह समझे कि इस प्रोजेक्ट में कितनी तकनीकी मुश्किलें आ सकती हैं." राशेदन की नजरों में ईरान जिस इंटेलिजेंट सॉफ्टवेयर का ढिंढोरा पीट रहा है उसे बनाने के लिए वह सक्षम ही नहीं है, "ईरान तो अब तक चीन के मॉडल की ही नकल नहीं कर पाया."

China Internetcafe in Peking
तस्वीर: AFP/Getty Images

इंटरनेट चौकसी मुश्किल

चीन में फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब जैसी वेबसाइटों को अनुमति नहीं है. इनके बदले चीन के पास अपनी ही 'मेड इन चाइना' वेबसाइटें हैं. ट्विटर की जगह वहां वाइबो और यूट्यूब की जगह यूकू चलती हैं और ये देश में बेहद लोकप्रिय भी हैं. ईरान ने भी ऐसी कोशिश की. फेसबुक और यूट्यूब जैसी अपनी ही साइटें बनाई, लेकिन ये चल नहीं पाईं. लोगों ने पश्चिमी साइटों को ही चुना. इसलिए अब सरकार इन पर रोक लगाना चाहती है. लोगों को लुभाने के लिए ऐसी योजनाएं भी बनाई गई हैं जिनके तहत जो लोग केवल ईरानी सोशल नेट्वर्किंग साइटों का इस्तेमाल करते हैं उन्हें ज्यादा स्पीड वाला इंटरनेट मुहैया कराया जा रहा है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश की 7.5 करोड़ की आबादी में से 2.5 करोड़ लोग इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं. यह संख्या लगातार बढ़ रही है. हालांकि अब तक सरकार हर इंटरनेट यूजर पर पूरी नजर रखती आई है, लेकिन अब ऐसा करना मुश्किल होता जा रहा है. राशेदन बताती हैं, "डीप पैकेट इंस्पेक्शन की मदद से आप डाटा पर नजर रख सकते हैं, लेकिन अगर हर दिन यूजर और डाटा बढ़ता रहे, तो ऐसा करना बेहद मुश्किल हो जाता है."

Iran Zensur Internet
तस्वीर: picture-alliance/dpa

'हलाल इंटरनेट' का सपना

राशेदन का मानना है कि सरकार का 'हलाल इंटरनेट' का सपना अधूरा ही रह जाएगा, "सरकार ज्यादा से ज्यादा बैंडविड्थ की सीमा तय कर सकती है, डाटा ट्रांसफर करने पर रोक लगा सकती है या फिर वीपीएन जैसे कुछ इंटरनेट पोर्ट को पूरी तरह बंद कर सकती है, इसी तरह से उन्होंने कुछ वक्त के लिए जीमेल पर रोक लगाई थी." इसी तरह फेसबुक पर फ्लैश फाइल (वीडियो) और एमपी3 (ऑडियो) पर भी रोक लगाई गयी थी, लेकिन जनता पर इसका असर होता नहीं दिखा. लोग तसवीरें और टेक्स्ट शेयर करने में ही संतुष्ट दिखे.

राशेदन का कहना है कि सरकार ने नए सॉफ्टवेयर पर आनन फानन में फैसले लिया है. वह मानती हैं कि सरकार पर उन संगठनों की तरफ से दबाव बना हुआ है जो देश में इंटरनेट की स्पीड को बढवाना चाहते हैं. दरअसल इंटरनेट की सुविधा मुहैया कराने वाले अधिकतर संगठनों के तार सेना से जुड़े हुए हैं. साथ ही मध्य पूर्व की कई कंपनियों में ईरान में इंटरनेट की आधारभूत सुविधाएं दिलवाने की होड़ लगी हुई है. तुर्की और कुछ अरब देश इसमें सबसे आगे हैं. ऐसे में इंटरनेट को बढ़ावा देना और उस पर रोक लगाना, एक साथ मुमकिन नहीं. राशेदन का कहना है कि इस होड़ में ईरान ही वह एकमात्र देश होगा जो सेंसरशिप की दौड़ से बाहर हो जाएगा.

रिपोर्ट: फरजान सैफी/आईबी

संपादन: ओ सिंह

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें