ओबामा के जाते ही धमाके से दहला काबुल
२ मई २०१२संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ के कर्मचारियों की रिहाइश और उच्च सुरक्षा वाले ग्रीन विलेज से धुआं उठता दिख रहा है. यह जगह अफगान राजधानी के मुख्य एयरपोर्ट से कुछ ही दूर है. अमेरिकी दूतावास ने हमले के तुरंत बाद चेतावनी जारी कर दी और कहा गया कि फिलहाल दूतावास बंद रहेगा. कर्मचारियों को सुरक्षा घेरे में रहने और खिड़कियों से दूर रहने को कहा गया है. ट्विटर से जारी संदेश में कहा गया है, "दूतावास के घेरे में ही छिपे रहें. यह कोई अभ्यास नहीं है, बाहर जाने से बचें."
गृह मंत्रालय के प्रवक्ता सादिक सिद्दिकी ने बताया, "पांच असैनिक और एक गार्ड की मौत हुई है. हमले का निशाना ग्रीन विलेज था जिसे अंतरराष्ट्रीय संगठन इस्तेमाल करते हैं." इस हमले की जिम्मेदारी तालिबान ने ली है. तालिबान प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "आज एक प्रतिबद्ध मुजाहिद ने काबुल के विदेशी सैनिक अड्डे पर आत्मघाती कार बम से हमला किया इसके बाद दूसरे मुजाहिद अड्डे के भीतर दाखिल हुए."
यहां पहले भी कार बम से हमला हुआ जिसकी जिम्मेदारी तालिबान ने ली थी. हमला ओसामा बिन लादेन की मौत के एक साल पूरा होने के मौके पर हुआ है. दो हफ्ते पहले ही काबुल में 10 साल की जंग का सबसे बड़ा हमला हुआ था जिसमें आतंकवादियों ने सरकारी दफ्तरों, दूतावासों और विदेशी सैनिक अड्डों को निशाना बनाया.
बुधवार को हमले से कुछ ही घंटे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा लौटे थे. ओबामा बीती रात अचानक काबुल पहुंचे. गोपनीय और बेहद संक्षिप्त दौरे पर काबुल में ओबामा ने राष्ट्रपति हामिद करजई के साथ समझौते पर दस्तखत किए. 2014 में नाटो की युद्धक सेना के लौटने के बाद अगले 10 साल तक अफगानिस्तान को अमेरिका की तरफ से मदद मिलती रहेगी. इस दौरान राष्ट्रपति करजई ने कहा, "अमेरिकी करार पड़ोसियों समेत किसी तीसरे देश के लिए खतरा नहीं है. बल्कि हम उम्मीद कर रहे हैं कि इससे इलाके में स्थिरता, समृद्धि और विकास को जगह मिलेगी." करार पर दस्तखत करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा, "न तो अमेरिकी न अफगान के लोगों ने इस जंग की मांग की थी लेकिन फिर भी 10 सालों से हम साथ हैं. हम शांतिपूर्ण भविष्य का इंतजार कर रहे हैं. हम लोग लंबे वक्त की साझीदारी पर रजामंद हुए हैं."
अफगान धरती पर करीब छह घंटे रहने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति अपने विमान एयरफोर्स वन से अमेरिका लौट गए. अफगानिस्तान के साथ करार पर पिछले महीने ही सहमति बन गई थी. इस समझौते में इस तरह की संभावनाएं हैं कि 2014 में नाटो की फौज के लौटने के बाद भी अगले 10 साल तक अमेरिकी सेना यहां रह कर अफगान सैनिकों को प्रशिक्षण देगी और अल कायदा के बचे खुचे लड़ाकों का सफाया करेगी. समझौते में अमेरिकी की तरफ से अफगानिस्तान को कोई निश्चित सेना या पैसा देने की बात नहीं है.
समझौता इस उद्देश्य से किया गया है कि अमेरिकी अपनी इतिहास की सबसे बड़ी जंग के खात्मे के बावजूद सुनिश्चित करना चाहता है कि अफगानिस्तान अल कायदा जैसे आतंकी संगठनों की पनाहगाह नहीं बनेगा. इस जंग में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के 3000 सैनिकों ने जान गंवाई, 10,000 से ज्यादा घायल हुए, हजारों अफगान लोगों की मौत हुई और सैकड़ों अरब डॉलर पानी की तरह बहा. इन सबके बावजूद अफगानिस्तान का भविष्य अब भी अनिश्चित है.
एनआर/एजेए(एएफपी)