ओलंपिक टिकट पाकर हॉकी के दीवाने हुए लोग
२७ फ़रवरी २०१२मैच के लिए दो घंटे पहले स्टेडियम के बाहर का नजारा अंदर की गहमागहमी बता रहा था और टीवी पर कई दिनों से चल रहे विज्ञापन "फिर दिल दो होकी को" को सही साबित कर रहा था. भारतीय टीम ने एक के बाद एक आठ गोल दाग कर लंदन ओलंपिक का टिकट कटाया. वहां मौजूद 20,000 दर्शकों की खुशी का ठिकाना न रहा.
यह खुशी इसलिए भी ज्यादा है कि पिछली बार चीन ओलंपिक में भारत क्वालीफाई नहीं कर पाया था और यह पहला मौका था कि जब ओलंपिक खेलों में हॉकी भारतीय टीम के बगैर खेला गया था.
मुश्किल है रास्ता
लन्दन में खेलने को लेकर भारत के खेल प्रेमी खुश हैं और हाल के विवादों से घिरी भारतीय हॉकी के लिए भी यह बहुत अच्छी बात भी है. लेकिन जिस तरह मैच के बाद हर तरफ से टीम की तारीफ हो रही है उसका कड़वा सच यह भी है की आम जनता को यह भी समझना होगा की इस जीत का मतलब भारत में हॉकी के स्वर्णयुग की वापसी बिलकुल नहीं है.
यह ठीक है की विश्व में दसवीं वरीयता वाली टीम भारत ने खुद से आठ स्थान पीछे फ्रांस की टीम पर आठ गोल किए, जिसमें संदीप सिंह के शानदार पांच गोल शामिल हैं. लेकिन क्या इतनी मजबूत टीम को फ्रांस से एक गोल खाना चाहिए था. यही सवाल सबसे अहम है. अगर फ्रांस जैसी टीम भारत की रक्षा पंक्ति भेद सकती है तो सोचा जा सकता है की ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जैसी टीमें क्या करेंगी.
सही विश्लेषण जरूरी
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत की टीम ने ठीक वैसी ही अटैकिंग हॉकी खेली जिसके लिए भारत को याद किया जाता है. खेल की शुरुआत से ही टीम इंडिया ने आक्रामक रवैया अपनाया. भारतीय टीम को मुकाबला शुरू होने के 18 मिनट बाद ही पहली सफलता मिल गई, पहला गोल मिडफील्डरों के बेहतरीन खेल की बदौलत हुआ. जबकि दूसरा पेनल्टी कॉर्नर के रूप में मिला.
टूर्नामेंट में सबसे अधिक 16 गोल करने वाले संदीप की भूमिका अहम रही. उन्होंने 20वें, 26वें और 37वें मिनट में मिले पेनाल्टी कॉर्नर को गोल में बदलकर टीम की जीत पक्की कर दी. इसके अलावा संदीप ने 50वें और 51वें मिनट में भी पेनाल्टी कॉर्नर को गोल में बदला.
लेकिन संदीप की कामयाबी के पीछे बहुत कुछ फ्रांस की कमजोर रक्षापंक्ति का भी हाथ रहा. फ्रांस के पास आक्रमणों के खिलाफ ठोस रणनीति नहीं थी और भारत अपने तेज तर्रार खेल से उस पर हावी हो गया.
लेकिन क्या मजबूत टीमों के खिलाफ संदीप को ऐसे मौके मिल पाएंगे. दोनों टीमों में दमखम और अनुभव के लिहाज से काफी अंतर था और यह अंतर फाइनल में साफ-साफ दिखा। यह अंतर पूल मैच में भी दिखा था, जब भारत ने फ्रांस को 6-2 से हराया था.
यह सही है कि टूर्नामेंट में सारे मैच जीत कर भारत ने कामयाबी हासिल की है. लेकिन मुकाबला इससे कहीं बड़ी और मजबूत टीमों के साथ होना है और लंदन में एक से बढ़ कर एक दिग्गज पहुंचने वाले है. समय सिर्फ चार महीने का है और बदले हुए मौसम में खुद को ढालना बहुत बड़ी चुनौती है. यानी जीत के जश्न के बाद ओलंपिक की तैयारी फौरन शुरू करने की जरूरत है.
रिपोर्टः नॉरिस प्रीतम, दिल्ली
संपादनः ए जमाल