सिर्फ सिहरन बाकी है इस सहर में
३ जनवरी २०१२सहर गुल की कहानी कुछ ऐसी ही है. अफगानिस्तान की मासूम सहर गुल. तन मन और आत्मा से टूट चुकी सहर को अब ससुराल से बड़ी मुश्किल से आजाद किया जा सका है. किस्मत से पहले ही हार चुकी सहर अब जिन्दगी भी हारने की कगार पर पहुंच चुकी है. कटी फटी लहुलूहान सहर को भारत भेजा जा रहा है, जहां उसका इलाज हो सके.
अफगानिस्तान के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता सिद्दीक सिद्दीकी ने बताया कि सहर की सास और ननद को पकड़ लिया गया है. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन शौहर भाग गया है. मामला बड़ा संवेदनशील होता जा रहा है और अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई का कहना है कि जो भी इसके लिए जिम्मेदार है, उसे सजा जरूर दी जाएगी.
उत्तर पूर्वी बागलान प्रांत के पुलिस अधिकारियों का कहना है कि सहर के ससुराल वाले हद पार कर चुके थे. उसे तहखाने में रखते थे. रोज जिस्मफरोशी के लिए दबाव डालते थे. सहर नहीं मानती, तो सलाखें गर्म की जाती थीं. नाजुक बदन को लोहे की गर्म सलाखों से दाग दिया जाता था. बदन न बर्दाश्त कर पाए, तो हाथ पैर पर गुस्सा निकाला जाता था. इतने चोट किए गए कि अंगुलियां टूट चुकी थीं. प्लकर से नाखून नोंच लिए गए थे. सहर के बदन से रिसते खून का ससुराल वालों पर कोई असर न पड़ता. उनकी तो जिद कुछ और थी. वे अपनी ही बहू का सौदा करना चाहते थे. यह सब कुछ छह महीने तक चलता रहा.
टूटा हुआ तन और मन
आखिर में सहर के चाचा को इस बात का पता चला तो उन्होंने पुलिस को खबर की. पुलिस आई और सहर को दरिंदों के पिंजड़े से बाहर निकाला. कुछ दिन और हो जाता, तो शायद उन्हें सहर की लाश ही निकालनी पड़ती. उसे काबुल के अस्पताल में भर्ती किया गया है. दर्द, जुल्म और खौफ की पोटली बन चुकी सहर बेजान मुर्दे की तरह पड़ी है. आंखें खुली हैं लेकिन उनमें कोई चमक नहीं है.
सिद्दीकी का कहना है, "यह एक हिंसक मामला है और इक्कीसवीं सदी में इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. हम सहर के चाचा के शुक्रगुजार हैं. अगर वे वक्त पर नहीं बताते, तो सहर की मौत भी हो सकती थी."
सहर गुल की शादी कोई सात महीने पहले हुई थी. प्रांतीय पुलिस के प्रवक्ता जावाद बशारत ने बताया कि सहर का शौहर सेना में काम करता है और उसकी तलाश के लिए वारंट जारी कर दिया गया है. उन्होंने कहा, "उसके नाखून खींच लिए गए थे. उसके पूरे बदन पर जुल्म के निशान हैं. कई जगह जले हुए का निशान है." बशारत का कहना है कि सहर के ससुराल वाले गैरकानूनी शराब का कारोबार कर रहे थे और जिस्मफरोशी में भी लगे थे. उन्होंने बताया, "वे लोग सहर को इसी धंधे में लगाना चाहते थे लेकिन वह राजी नहीं हो रही थी. इसी वजह से उन्होंने उसे तहखाने में डाल दिया था."
जांच करेगा कमीशन
महिला मामलों की प्रांतीय समिति की प्रमुख रहीमा जारीफी ने बताया कि खुद राष्ट्रपति हामिद करजई ने एक आयोग बना दिया है, जो इस मामले की जांच करेगा. जरीफी का कहना है, "सहर के पड़ोसियों के मुताबिक उसके ससुराल वाले अच्छे लोग नहीं थे. वे लोग मासूम सहर के जिस्म का सौदा करना चाहते थे और इनकार करने पर उसे छह महीने तक तहखाने में डाल दिया."
अफगानिस्तान की महिला मामलों की मंत्री सुरैया दालिल का कहना है कि हाल के दिनों में महिलाओं की स्थिति भले ही बेहतर हुई हो लेकिन अभी बहुत काम बाकी है. उनका कहना है, "हमने जो मामले देखे हैं, ये उनमें हद पार करने वाला मामला है. एक बच्ची को न सिर्फ शारीरिक, बल्कि मानसिक यातना भी दी गई है. यह बताता है कि हमें अभी शिक्षा और जागरूकता के मामले में बहुत कुछ करना बाकी है."
औरत तेरी यही कहानी
तालिबान का राज भले ही 10 साल पहले खत्म हो गया हो लेकिन महिलाओं की हालत बहुत नहीं बदली है. समाज आज भी मर्दों के बल पर चलता है. तालिबान के वक्त में बच्चियों को स्कूल जाने की इजाजत नहीं थी और कोई भी महिला बिना मर्द के घर से बाहर नहीं जा सकती थी.
दो साल पहले संयुक्त राष्ट्र ने अफगानिस्तान की औरतों पर एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया कि नए कानून के अमल में लाए जाने के बाद भी औरतों की हालत बहुत नहीं बदली है. 2009 में अफगान औरतों को ज्यादा अधिकार देने के लिए कानून बना था. लेकिन यूएन रिपोर्ट कहती है कि सिर्फ कुछ महिलाओं को ही इसका फायदा पहुंचा.
मार्च, 2010 से मार्च 2011 के बीच 594 मामलों की जांच हुई, जबकि अफगानिस्तान मानवाधिकार कमीशन में 2299 मामले दर्ज हुए. यानी सिर्फ एक चौथाई पर कार्रवाई की गई. इनमें से भी सिर्फ 155 पर आरोप लगाए गए.
अफगानिस्तान में कई बार पीड़ितों को केस वापस लेने का दबाव डाला जाता है, तो कई बार बलात्कार और जबरन जिस्मफरोशी के मामले ठंडे बस्ते में डाल दिए जाते हैं. और कई बार तो पुलिस मामला सुन कर भी खामोश रह जाती है.
रिपोर्टः एपी/ए जमाल
संपादनः एन रंजन