कला के बाजार में भी चीन की दादागिरी
२० अप्रैल २०१२आर्ट कोलोन जर्मनी का सबसे बड़ा कला मेला है. इसमें भाग लेने वाले अधिकांश लोग बहुत अमीर हैं, जो दुनिया भर की कलाकृति खरीदना चाहते हैं. लेकिन मन माफिक कुछ पाना बहुत मुश्किल होता है. कोई कलाकृति किसी को अश्लील लगती है, तो दूसरे में किसी रंग की कमी खलती है. लेकिन हर कोई कुछ न कुछ खरीदना जरूर चाहता है. अमेरिकी दबदबे के बाद अब दुनिया के कला बाजारों में चीन की धूम है.
आर्ट कोलोन में चीन की उपस्थिति कम ही है. और जो हैं उनकी उपस्थिति महसूस नहीं होती. अंतरराष्ट्रीय कला पत्रिकाओं में वैश्विक कला बाजार में चीन नंबर वन, एक भूकंप जिसने कला की दुनिया को बदल दिया, दुनिया के कला बाजार को इलेक्ट्रिक शॉक. इस तरह की हेंडिग के साथ चीन के नंबर वन बनने की खबरें कला पत्रिकाओं में छपी हैं. स्वाभाविक है. जिस कला बाजार पर अमेरिका और यूरोप का किसी जमाने में दबदबा रहा हो वहां चीन का सिर्फ पैसे के कारण दबदबा बढ़ना लोगों में खलबली तो पैदा कर ही सकता है. हालांकि इस खलबली की दुनिया की सबसे पुरानी कला प्रदर्शनी आर्ट कोलोन में इतनी जरा सी भी आहट नहीं है.
ऐसा क्यों है. एंटीक मार्केट, पेंटिंग और कला की वस्तुओं की नीलामी, कला प्रदर्शनियों और गैलरियों के कुल आंकड़े कहते हैं कि चीन वैश्विक बाजार में आगे है. लेकिन कला का संग्रह करने वाले चीनी व्यापारी अक्सर सिर्फ पुरातन चीजें ही खरीदते हैं. चीन से आने वाली आधुनिक कला वैश्विक बाजार में रुचि से देखी जाती है.
आर्ट कोलोन के 46 नंबर के हॉल में एक बड़ा सा इंस्टॉलेशन रखा है. हे शियानग्यू ने मैन ऑन द चेयर्स नाम से एक बड़ा इंस्टॉलेशन बनाया है. इसके लिए कलाकार ने पुरानी नहर से लकड़ियां निकलवाई और बीजिंग मंगवाईं. इसके बाद उन्होंने इन्हें कुर्सी के रूप में तराशा. मिषाएल शुल्ज कोलोन में हुआंग ही और मा युन के काम दिखा रहे हैं. उनके स्टैंड पर अधिकतर चीनी कलाकारों का ही काम दिखाया जाता है. चीनी चित्र, मूर्तियां पारंपरिक और ऐतिहासिक चिह्न और प्रतीकों से भरपूर हैं. मा युन के चित्र क्लासिक चीनी मिट्टी के बर्तनों पर बनी डिजाइनों को नए फॉर्म में पेश करते हैं तो जोऊ काओ का चित्र ईस्ट इज रेड एकदम राजनीतिक रंग दिखाता है. शुल्ज ने कहा कि इस चित्र को तीन साल पहले चुपचाप चीन से गायब करना पड़ा था. वर्ना चीन का कल्चर ऑफिस बाहर जाने वाले हर चित्र को देखता है.
रिपोर्टः डॉयचे वेले/आभा एम
संपादनः महेश झा