कानून की वजह से मरती हैं महिलाएं
१६ अप्रैल २०१२25 वर्षीया प्रिया महिंद्रू हर रोज नई दिल्ली के अस्त व्यस्त ट्रैफिक में अपने मोटर बाईक पर काम करने के लिए जाती हैं. कानूनी तौर पर मर्दों के लिए हेल्मेट पहनना जरूरी है, लेकिन उन पर ऐसा कोई बंधन नहीं है. बंधन लगने वाला हेलमेट दुर्घटना की स्थिति में सबसे बड़ा साथी बन जाता है. लेकिन बहुत से लोग इसकी परवाह नहीं करते. अब ट्रैफिक सुरक्षा के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता कानून में बदलाव की जोरदार मांग करने लगे हैं. उनका कहना है कि कानून में इस अनियमितता के कारण हर साल दर्जनों महिलाओं की मौत होती है और हजारों घायल होकर अस्पताल पहुंच जाती हैं. इसका बोझ न सिर्फ अस्पतालों पर पड़ता है बल्कि परिवारों पर भी.
सुरक्षा नहीं सुंदरता जरूरी
बहुत से लोग इसे भारत के पितृसत्तात्मक मूल्यों का प्रतीक भी मानते हैं. ऐसे मुल्क में जहां सदियों से बेटों को बेटियों के ऊपर तरजीह दी जाती रही है, इसका मतलब यह कि औरतें मर्दों से कम हैं, उनकी जान की कीमत मर्दों से कम है. लेकिन महिंद्रू जैसी लड़कियों के लिए मामला सुंदरता का है. अगर कानून उन्हें हेल्मेट पहनने को बाध्य न करे तो वह विश्व की सबसे खतरनाक सड़कों में से एक पर भी बिना किसी सुरक्षा के जाना पसंद करेंगी. सिटी सेंटर में बिना हेलमेट लगाए अपने दफ्तर पहुंचने के बाद प्रिया महिंद्रू कहती हैं, "यह मेरे बालों को खराब कर देता है." वे एक और दलील देती हैं, "मैं हेलमेट नहीं पहनती क्योंकि इसमें मुझे सचमुच गर्मी लगती है, मेरा दम घुटता है, इसलिए मैं सुरक्षा के बारे में नहीं सोचती."
भारत का केंद्रीय मोटर वाहन कानून 1988 का है, जब देश में अंग्रेजों का राज हुआ करता था. इसके अनुसार दोपहिया मोटर वाहन चलाने वाले या उस पर सवार व्यक्ति के लिए हेलमेट पहनना अनिवार्य है. लेकिन सिख समुदाय को लोगों ने इस पर धार्मिक कारणों से आपत्ति की. वे पगड़ी बांधते हैं और उसके ऊपर से हेलमेट पहनना संभव नहीं. इसलिए सिखों को छूट दे दी गई. नई दिल्ली प्रशासन ने फैसला किया कि सिख और गैर सिख महिलाओं में भेद करना मुश्किल है, इसलिए उन्होंने महिलाओं के लिए हेलमेट पहनना ऐच्छिक बना दिया.
भारत में 2010 में कुल 1,33,938 लोग रोड दुर्घटना में मरे. यानि हर दिन 366 लोगों की सड़कों पर मौत हुई. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार यह संख्या दुनिया भर में किसी भी देश से ज्यादा है. नई दिल्ली में, जहां बिना ध्यान दिए और शराब पी कर ड्राइविंग करने के अलावा मोटर साइकिलों और स्कूटरों पर तीन और चार लोगों का सवार होना भी आम बात है, 2010 में मोटरसाइकिल दुर्घटनाओं में 64 महिलाओं की मौत हुई. 2011 में मरने वाली महिलाओं की संख्या 50 रही.
अपना ख्याल रखने में औरतें पीछे
दुर्घटना का शिकार होने वाली अधिकांश औरतें राजधानी के व्यस्त ट्रॉमा सेंटर में पहुंचती हैं. यह सेंटर सरकारी अस्पताल एआईआईएमएस चलाता है. वहां काम करने वाले डॉक्टर संजीव भोई को नई दिल्ली के कानून के खर्च के बारे में कोई संदेह नहीं है. "हर दिन एक नयी काहानी होती है, जिसमें अक्सर महिलाओं और बच्चों में गंभीर दिमागी चोट होती है. एक युवा लड़की को दिमाग में गंभीर चोट के साथ देखना बहुत तकलीफ देता है, ऐसी जो खुद मां या किसी की बेटी होती है." डॉक्टर भोई का मानना है कि महिलाओं को अपने लिए और अपने परिवारों के लिए हेलमेट पहनना चाहिए.
लेखिका अंतरा देव सेन का कहना है कि हेलमेट से संबंधित कानून भेदभाव वाला है और इस बात का एक और सबूत है कि औरतों को दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है. उन्होंने एएफपी को बताया, "भारत में औरतों को खुद की उपेक्षा करना सिखाया गया है, अच्छी औरत होने के लिए आपको अपनी उपेक्षा करनी होगी. लोग अपनी सुरक्षा की बात भी नहीं करते. यह पितृ सत्ता वाले मूल्यों से आता है जिनके आधार पर हमें जीना सिखाया गया है."
वे और उनकी कुछ साथी मिल कर स्थिति को बदलने के लिए अभियान चला रहे हैं. इस अभियान में हाईकोर्ट में दायर एक याचिका के साथ ही पुलिस और डॉक्टरों की शिकायत से भी मदद मिली है. पिछले महीने दिल्ली सरकार ने रोड सुरक्षा नियमों को तोड़ने की सजा बढ़ाने का फैसला लिया है. खराब क्वालिटी का हेलमेट पहनने पर फाइन भी बढ़ा दिया गया है. इस मौके पर कानून में बड़े बदलाव की संभावना थी, लेकिन स्थानीय चुनावों में सिख और महिला वोटरों को नाराज करने के डर से सरकार ने ऐसा नहीं किया.
सिख समुदाय का विरोध
दिल्ली की एक प्रमुख सिख संस्था के प्रमुख परमजीत सिंह सरना ने कहा है कि उनका संगठन किसी भी बदलाव का पुरजोर विरोध करेगा. सरना ने कहा, "हेलमेट को हम टोपी या हैट जैसा मानते हैं, जिसे पहनना हमारे धर्म में वर्जित हैं." सरना हेल्मेट पहनने से सुरक्षा को होने वाले फायदे को मानते हैं और कहते हैं कि यदि कोई सिख महिला अपने मन से हेल्मेट पहनती है तो उन्हें कोई ऐतराज नहीं होगा, लेकिन पूरे समुदाय को ऐसा करने के लिए कहने का विरोध होगा.
नई दिल्ली पुलिस ने बार बार महिलाओं को हेलमेट पहनने से छूट देने के फैसले पर विचार करने की मांग की है. उनका कहना है कि सुरक्षा चिंताओं को सबसे पहले देखा जाना चाहिए. शहर के ट्रैफिक डीसीपी सत्येंद्र गर्ग कहते हैं, "यह थोड़ा असुविधा वाला हो सकता है लेकिन हर किसी को सोचना होगा कि उसके लिए क्या जरूरी है, सुरक्षा या सुविधा." दिल्ली के ट्रांसपोर्ट सचिव आर चंद्र मोहन का कहना है कि पुलिस की मांग की जांच की जा रही है, लेकिन साथ ही उनका कहना है कि कानून बनाने से ज्यादा अच्छा होगा लोगों में इसके लिए जागरुकता पैदा करना. चंद्र मोहन कहते हैं, "जो सुरक्षा का मूल्य समझते हैं, वे व्यक्तिगत फैसले से इसे पहनते हैं. जागरुकता बढ़ाने से बाध्यकारी कानून की जरूरत कम हो जाएगी."
एमजे/एनआर (एएफपी)