गाड़ी की आदत छुड़ाने के लिए मुफ्त की सवारी
१० अप्रैल २०१२लाइपजिग परिवहन सेवा के अधिकारी उल्फ मिडिलबर्ग ने कहा, "क्योंकि हम सही मायने में विकल्प दे सकते हैं इसलिए हमने गाड़ियों में चलने वालों से कहा कि वो अपनी गाड़ियां घर पर छोड़ें और सार्वजनिक सेवा में आ जाएं. जो लोग नियमित रूप से इस सेवा का लाभ उठा रहे हैं उन्होंने तो सही फैसला ले लिया है. अब हम नए लोगों को इस जमात में शामिल करना चाहते हैं. ईस्टर के मौके पर चार दिन बिना किसी तनाव के निशुल्क सेवा का लुत्फ उठाने के लिए लोगों को बुलाया गया." अभियान के दौरान नारा दिया गया, "पेट्रोल की बढ़ती कीमतों का पागलपन मुर्दाबाद, बदलाव का वक्त आ गया है."
अभियान के दौरान गाड़ी चलाने वाले और उनके परिवार के सदस्य अपनी कार का रजिस्ट्रेशन बस या ट्रैम टिकट की जगह दिखा कर बस या ट्रैम में बैठ सकते थे. पेट्रोल की बढ़ती कीमतें, सड़क पर ट्रैफिक जाम और ग्रीन हाउस गैसों के भारी उत्सर्जन की समस्या से जूझ रही सरकारें दुनिया भर में ऐसी कोशिशें कर रही हैं जिससे कि ज्यादा से ज्यादा लोग निजी वाहनों की बजाय सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करें. लाइपजिग ने भी इसी दिशा में अपने कदम बढ़ाए हैं. जर्मन राजधानी बर्लिन के दक्षिण पश्चिम में 150 किलोमीटर दूर लाइपजिग शहर की आबादी करीब 5 लाख है.
लोगों में सार्वजनिक परिवहन के लिए दिलचस्पी जगाने के लिए इस तरह की पेशकश करने वाला लाइपजिग जर्मनी का पहला शहर है. पिछले हफ्ते जर्मनी में पेट्रोल की कीमत रिकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंच गई. एक लीटर प्रीमियम पेट्रोल की कीमत करीब 1 यूरो 70 सेंट यानी करीब 100 रूपये तक पहुंच गई है. दुनिया के अलग अलग हिस्से में दर्जन भर से ज्यादा शहर इस तरह की शुरूआत कर रहे हैं और सार्वजविक परिवहन को निशुल्क बनाने के लिए बाकायदा अभियान चलाया जा रहा है. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, चीन और यूरोप के कई शहर इस अभियान में शामिल हो गए हैं.
ईंधन का बेहतर इस्तेमाल करने वाली गाड़ियों से लेकर चिकनी चौड़ी सड़कों का जाल, फ्लाईओवरों का तंत्र और तमाम दूसरे उपायों को अपनाने के बावजूद शहरों की ट्रैफिक समस्या पर काबू नहीं पाया जा सका है. इस दिशा में कोई चीज अगर कारगर होती नजर आई है तो वो एक मात्र सार्वजनिक परिवहन ही है. जर्मनी के शहर बेहतर सार्वजनिक परिवहन के लिए दुनिया भर में विख्यात हैं हालांकि ट्रैफिक की समस्या यहां न हो ऐसा भी नहीं है. जर्मनी की सरकार सार्वजनिक परिवहन पर भारी रकम खर्च करती है और इसकी भरपाई पेट्रोलियम के आयात में कमी से सब्सिडी की बची रकम से पूरा करती है. समस्या सिर्फ ट्रैफिक की ही नहीं पेट्रोल की बढ़ती खपत, ट्रैफिक जाम की वजह से ईंधन और समय की बर्बादी और पर्यावरण को पहुंच रहे नुकसान की भी है. ऐसे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को सार्वजनिक परिवहन की जद में ले आना ही सबसे बेहतर विकल्प नजर आ रहा है.
रिपोर्टः एन रंजन/एएफपी
संपादनः महेश झा