कीटाणु कर सकते हैं मोटापे की भविष्यवाणी
३ अगस्त २०१०वैज्ञानिकों ने एक रिपोर्ट में कहा है कि आंत में रहने वाले बैक्टेरिया न केवल एलर्जी बढ़ा सकते हैं, बल्कि पेट खराब होने के लिए भी जिम्मेदार होते हैं. और तो और अमीर, विकसित देशों में रहने वाले बच्चों में ये मोटापा भी पैदा कर सकते हैं.
वैज्ञानिकों के एक दल ने यूरोपीय संघ और अफ्रीका के बुरकीना फासो में गांव में रहने वाले कुछ बच्चों की आंतों में रहने वाले बैक्टेरिया का परीक्षण किया. वैज्ञानिकों को कई ऐसे आधार मिले जिससे वे लंबी बीमारियों में विषमता और मोटापे के कारण बता सकते हैं. मसलन हर महाद्वीप के आदमी को अलग अलग तरह की बीमारियां होती हैं. मसलन अफ्रीका के लोग पतले होते हैं तो यूरोप के लोगों आसानी से मोटापे का शिकार हो जाते हैं.
प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल अकेडमी ऑफ साइंस की पत्रिका में ये शोध प्रकाशित किया गया है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस शोध से प्रोबियोटिक उत्पादों के विकास में मदद मिल सकेगी. इन प्रोबियोटिक उत्पादों से मनुष्य का आंतरिक संतुलन ठीक रहेगा और वह दुबला पतला और स्वस्थ रह सकेगा.
इटली के फ्लोरेंस विश्वविद्यालय में पाओलो लिओनेट्टी और उनके साथियों का कहना है, "हमारे नतीजों से पता चलता है कि आहार, नस्ल, साफ सफाई, भौगोलिक स्थिति, मौसम, से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. आहार से अच्छे माइक्रोबियोटा बनने में सबसे ज्यादा मदद मिलती है. हम अनुमान लगा सकते हैं कि यूरोपीय संघ की तुलना में गरीब बुरकीना फासो में कम शक्कर, वसा, कैलोरी से भरा खाना खाया जाता है और इसलिए अमीर देशों के बच्चों में माइक्रोबियोटा की अनुकूलता कम होती जाती है."
इस शोध का आधार है कि मनुष्य का स्वास्थ्य अरबों सूक्ष्मजीवों पर आधारित होता है इनमें से बहुत कम बीमारी का कारण होते हैं. अधिकतर भोजन को पचाने में सहायता करते हैं, दूसरे बैक्टेरिया को प्रभावित करते हैं और कई जैविक क्रियाओं पर भी प्रभाव डालते हैं.
बैक्टेरिया के कारण मोटापा
कई अन्य नए शोधों में सामने आया है कि कुछ बैक्टेरिया सूजन पैदा करते हैं जिससे भूख पर असर होता है और कोलाइटिस(वृहदान्त्र-शोथ) जैसी बीमारियां होती हैं.
वैज्ञानिकों का कहना है कि पश्चिमी देशों में पिछली शताब्दी में साफ सफाई की बेहतरी, एन्टीबायोटिक और टीकाकरण के कारण संक्रमणकारी बीमारियां कम हो गई लेकिन दूसरी तरह की बीमारियां होने लगीं.
लिओनेट्टी और उनके साथियों ने बुरकीना फासो में बच्चों की आंतों मे रहने वाले जीवाणु के डीएनए का परीक्षण किया. ये बच्चे दो साल की उम्र तक मां का दूध पीते हैं और सब्जियां, मोटा अनाज, दालें खाते हैं, मांस बहुत कम खाते हैं. जबकि पश्चिमी देशों के खाने में मांसाहार की अधिकता है, पिसा अनाज और शक्कर, वसा की बहुलता है.
इतालवी दल को पता लगा कि अफ्रीकी बच्चों में ऐसे बहुत सारे बैक्टेरिया हैं जो बुखार नहीं होने देते जबकि यूरोपीय बच्चों में ये माइक्रोब्स नहीं हैं. यही बात मोटापा रोकने वाले बैक्टेरिया के मामले में भी सामने आई. टीम का मानना है कि बैक्टेरिया का अनुपात मोटापे का कारण हो सकता है.
रिपोर्टः रॉयटर्स/आभा एम
संपादनः ओ सिंह