कैंसर से लड़ेंगी प्रतिरोधी कोशिकाएं
१२ अगस्त २०११अमेरिका में पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पैथोजन से लड़ने वाले मरीजों की अपनी टी कोशिकाएं बनाईं जिसका लक्ष्य ल्यूकिमिया कोशिकाओं की सतह पर मिले कणों से लड़ना था. बदली हुई टी कोशिकाओं को शरीर के बाहर विकसित किया गया और उसके बाद क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकिमिया से बीमार मरीजों के शरीर में वापस डाला गया. यह बीमारी खून और बोन मैरो को प्रभावित करती है और ल्यूकिमिया का बहुत आम रूप है.
परीक्षण का पहला चरण
नई थेरेपी की मदद से कैंसर के तीन मरीजों को जीवनदान मिला. इसने प्रतिरक्षी कोशिकाओं को ट्यूमर किलर में बदल दिया. पहले चरण के ट्रायल में भाग लेने वाले दो मरीजों की हालत पिछले एक साल से सुधर रही है. तीसरे मरीज के शरीर ने अच्छी प्रतिक्रिया दी है और उसका कैंसर नियंत्रण में है. अगला बड़ा चरण शुरू करने से पहले शोधकर्ता क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकिमिया के शिकार चार और मरीजों का उपचार करना चाहते हैं.
ट्रायल के नतीजों ने वैज्ञानिकों को सन्न कर डाला हालांकि जीन थेरेपी अभी भी विकास के दौर में है. पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के पेरेलमन मेडीसीन स्कूल के डॉ. माइकल कैलोस ने कहा, "हमने टी-सेल की सतह पर एक कुंजी डाली जो उस ताले के साथ फिट बैठती है जो सिर्फ कैंसर की सेलों में होता है." उनका कहना है कि इलाज के नतीजे दूसरे प्रकार के कैंसरों के इलाज का भी रास्ता सुझाते हैं. इसमें फेफड़े और अंडाशय का कैंसर भी शामिल है.
शोध के नतीजे बुधवार को न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसीन और साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन पत्रिकाओं में प्रकाशित किए गए हैं. कैलोस ने कहा है कि एडॉप्टिव टी-सेल ट्रांसफर के नाम से जाने जाने वाले पिछले प्रयास या तो इसलिए विफल हो गए कि टी-सेलों की प्रतिक्रिया बहुत कमजोर थी या फिर इसलिए कि वे सामान्य ऊतकों के लिए अत्यंत विषैले थे.
कैंसर इलाज की नई तकनीक
यह तकनीक कैंसर के इलाज की दूसरी तकनीकों से अलग है. यह ट्यूमर का मुकाबला करने के लिए शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को काम में लाती है. कैलोस कहते हैं, "हमारा कहना है कि इम्यून रेस्पोंस करवाने की कोशिश छोड़िए, हम आपको इम्यून रेस्पोंस दे रहे हैं." इलाज की नई प्रणाली सुरक्षित मालूम होती है लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि अभी और परीक्षण किए जाने की जरूरत है. पहले चरण के ट्रायल में ल्यूकिमिया के मरीजों को प्रतिरक्षा बढ़ाने वाली दवा दी गई क्योंकि लक्षित अणु सीडी 19 सामान्य प्रतिरक्षा सेलों पर भी होता है.
जीन थेरेपी के लिए शोधकर्ताओं ने एक वायरस का इस्तेमाल किया जो कोशिकाओं को सिर्फ एक बार संक्रमित कर सकता है. लगभग दो सप्ताह बाद मरीजों ने 'ट्यूमर लाइसिसि सिंड्रोम' का अनुभव करना शुरू किया. इसमें कंपकंपी, मितली और बुखार के लक्षण दिखाई देते हैं जो कैंसर की मरती कोशिकाओं से पैदा होने वाले उत्पादों के कारण पैदा होते हैं.
नए विकसित टी-सेल बाद के कई महीने तक मरीजों के खून में पाए गए. उनका एक हिस्सा मेमोरी सेलों में बदल गया जो कैंसर के फिर से होने से सुरक्षा कर सकता है. पोर्टलैंड ओरेगन के कैंसर सेंटर के डॉ. वाल्टर ऊरबा चेतावनी देते हैं कि सक्रिय टी-सेलों और मेमोरी सेलों की उपस्थिति दूसरे प्रकार के कैंसरों के लिए समस्या पैदा कर सकती है जहां सामान्य कोशिकाओं पर विषैला असर और गंभीर हो सकता है.
जीन थेरेपी के ट्रायल पर सारा खर्च शैक्षणिक समुदाय से आया है. शोध अत्यंत खर्चीला रहा है. कैलोस कहते हैं, "हम दूसरे चरण के ट्रायल के लिए कॉरपोरेट सहयोगियों की तलाश में हैं."
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: ए कुमार