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क्यों दुखी हैं मुआवजे से मालामाल किसान

२ अगस्त २०११

भारत में फर्राटा रेस का ट्रैक बनाने के लिए अपनी जमीन देने वाले सैकडों किसान मालामाल तो हो गए हैं. लेकिन पैसा आने के बाद अपनी जिंदगी में आए बदलावों से ज्यादातर किसान खुश नहीं हैं.

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जमीन से जुदा होते किसानतस्वीर: UNI

ज्यादा समय नहीं बीता है जब गौतमबुद्ध नगर जिले के दनकौर सरलारपुर गांव में रहने वाले संजय सिंह के लिए जीवन मुश्किल था लेकिन सीधा सादा था. उनके परिवार के सभी छह सदस्य अपनी छोटी सी जमीन में ही काम करते थे, जिस पर वे खीरा, सब्जी और दूसरी फसलें उगाते थे. लेकिन राजधानी दिल्ली के नजदीक 35 करोड़ डॉलर की लागत से बनने वाले रेसिंग ट्रैक ने उनकी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया है. इस ट्रैक पर 30 अक्टूबर को भारत की पहली फॉर्मूला वन रेस का प्रस्ताव है.

49 वर्षीय संजय सिंह जमीन के एवज में मिली मुजावजे की राशि का खुलासा न करते हुए बताते हैं, "हमें बदले में पैसा मिला लेकिन यह कोई ज्यादा मुनाफे वाला सौदा नहीं था." वैसे गांव के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक यह रकम 50 लाख रुपये के आसपास हो सकती है.

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कई किसानों को मालामाल होने के बाद नई जीवनशैली कम ही रास आ रही हैतस्वीर: AP

संजय सिंह का कहना है, "हम नया घर बना रहे हैं और अब हमारे पास कार भी है, लेकिन हम खुश नहीं हैं क्योंकि हमारी रोजीरोटी तो खेतीबाड़ी थी जो हमसे छीन ली गई है." नई दिल्ली से लगभग 80 किलोमीटर दूर इस इलाके में बनते नए घर नई अमीरी की तरफ इशारा करते हैं. संजय बताते हैं, "गांव के लोगों के बीच एक दूसरे को लेकर ईर्ष्या हो गई है. वे एक दूसरे को नहीं सुहाते. परिवारों में बेटे अपने हिस्से के पैसे के लिए लड़ रहे हैं. उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी है क्योंकि उन्हें लगता है कि अब तो पूरी जिंदगी के लिए पैसा आ गया है. वे दिन बीयर पीते घूमते रहते हैं और लड़ाई झगड़े करते हैं."

जमीन की जंग

इन दिनों जमीन पर भारत भर में जंग होती दिख रही है क्योंकि सरकार और कंपनियां अपनी नई औद्योगिक परियोजनाओं के लिए जमीन चाहती हैं. भारत में मौजूदा जमीन अधिग्रहण कानून 1894 का है जो सरकार को अस्पताल, सड़क और स्कूल जैसे सार्वजनिक हित के कामों के लिए जमीन अधिग्रहण करने की अनुमति देता है. इस साल नया कानून बनाया जा सकता है लेकिन तब तक जमीन अधिग्रहण को लेकर बहुत से विवाद खिंचते रहेंगे.

किसानों का कहना है कि अनुचित तरीके से उनकी जमीनें ली जा रही हैं जबकि कारोबारी जगत का कहना है कि स्थानीय लोगों को रोजगार के मौके देने वाली परियोजनाओं में गैरजरूरी वजह से अड़ंगे लगाए जा रहे हैं. 2009 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक जमीन से जुड़े विवादों के चलते देश में 133 परियोजनाएं रुकी पड़ी हैं और इसीलिए 100 अरब डॉलर का निवेश नहीं हो पा रहा है.

दनकौर सरलारपुर गांव के लोगों ने दिखा गया है कि वक्त पर अच्छा खासा मुआवजा मिलने के बाद भी अशिक्षित किसानों के पास भविष्य का कोई पुख्ता जरिया नहीं है और जमीन से जुदा होने पर वे असंतुष्ट हैं. 22 वर्षीय मुकेश ने कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और दूसरे रोजगार न होने की स्थिति में वह रेसिंग ट्रैक पर सुरक्षा गार्ड का काम करने लगे. उनका कहना है, "मुझे अस्थायी काम मिल गया है लेकिन जब रेस खत्म हो जाएगी तो उसे बाद क्या होगा. सरकार ने वादा किया था कि कम से कम परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बेहतर होता कि अगर बैंक के लॉकरों में पड़े पैसे की बजाय हमें नौकरी दी जाती."

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कई जगहों पर जमीन अधिग्रहण का विरोध हो रहा हैतस्वीर: AP

व्यस्त आयोजक

ट्रैक को बनाने वाली कंपनी जयदीप ग्रुप का कहना है कि जमीन आपसी सहमति से तय हुए मुआवजे की अदायगी के बाद ही ली गई है और ट्रैक को तैयार करने का काम जोरशोर से चल रहा है. इसमें लगे ट्रक और बड़े बड़े वाहनों को देखा जा सकता है. 24 घंटे काम जारी रहता है और वहां तैनात सुरक्षा गार्ड इस बात पर नजर रखते हैं कि कोई अवांछित व्यक्ति वहां न फटके.

यह सब इसलिए भी किया जा रहा है क्योंकि बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट के नाम से बन रहे इस ट्रैक को देखने के लिए 3 अगस्त को फॉर्मूला वन के बॉस आ रहे हैं. ट्रैक फॉर्मूला वन रेस को आयोजित करने के लिए तैयार दिखता है लेकिन बहुत काम होना अभी बाकी है. 24 वर्षीय फॉर्मूला वन के फैन हिमांशु मेहरा का कहना है, "हम पश्चिम दिल्ली से यहां बहुत दूर इसलिए आए हैं कि देखे तो सही ट्रैक कैसा दिखता है. इससे बड़ी बात कुछ नहीं हो सकती कि हमारे यहां अपनी फॉर्मूला वन रेस हो रही है. लेकिन यहां की चीजों को देखकर हमारा उत्साह थोड़ा कम हुआ है. पूरी दुनिया में रेसिंग ट्रैक की पृष्ठभूमि भी बहुत सुंदर होती है, अब बात यास मरीना की हो या फिर मोंजा की. लेकिन यहां क्या दिख रहा है. कीचड़ से लथपथ भैंसें."

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भारत में भी फर्टाटा रेस की तैयारी हो रही हैतस्वीर: dapd

गांववालों का गुस्सा

उधर गांव में प्रौढ़ पीढ़ी के बहुत से लोग दुविधा में पड़े हैं. असल में वे नई जीवनशैली से तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं. पैसे और महत्वकांक्षा के चलते उनमें हताशा घर करने लगी है. वे अपने आसपास खस्ताहाल सड़कों, खुली नालियों, जल्दी जल्दी बिजली जाने और अच्छे स्कूल न होने से परेशान दिखते हैं.

संतो देवी एक बड़े घर में रहती हैं जहां नई चमचमाती कार के पास ही भैंसें बंधी हैं. वह बताती हैं, "हमने नया डिश एंटीना लगवाया है जिससे 200 से ज्यादा चैनल आते हैं. लेकिन परेशानी यह है कि हम कुछ देख ही नहीं पाते हैं क्योंकि बिजली सिर्फ 3 से 4 घंटे आती है. सरकार कार रेस पर इतना खर्चा करवा रही है लेकिन गांववालों के लिए तो उन्होंने कुछ नहीं किया. कुछ समय के बाद पैसा खत्म हो जाएगा, उसके बाद हम क्या करेंगे. हम सड़कों पर भीख मांग रहे होंगे."

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः ए जमाल

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