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गाउक ने की अफगान लोकतंत्र में प्रगति की मांग

१८ दिसम्बर २०१२

जर्मन राष्ट्रपति योआखिम गाउक अफगानिस्तान में हैं. क्रिसमस से पहले यह दौरा यूं तो अफगानिस्तान में तैनात जर्मन सैनिकों का हौसला बढ़ाने के लिए है, लेकिन गाउक ने राष्ट्रपति हामिद करजई सहित अफगान नेताओं से भी भेंट की.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

काबुल में गाउक ने अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई से मुलाकात की. उन्होंने करजई को 2014 में सेना की वापसी के बाद भी जर्मनी की मदद जारी रखने का आश्वासन दिया, लेकिन साथ ही देश के लोकतंत्रीकरण में प्रगति की मांग की. उन्होंने कहा, " हम इस संदेह में नहीं पड़ना चाहते कि हम अपनी दोस्ती भुला देंगे. हम अफगानिस्तान का साथ नहीं छोड़ेंगे."

जर्मन राष्ट्रपति जब सोमवार शाम मजारे शरीफ पहुंचे तो मूसलाधार बारिश हो रही थी और कड़ाके की ठंड थी. दौरे का पहले से एलान नहीं किया गया था और उनके साथ गए पत्रकारों को भी पता नहीं था कि वे अफगानिस्तान के दौरान क्या करेंगे और किससे मिलेंगे. राष्ट्रपति अफगानिस्तान के लिए मुश्किल वक्त में वहां पहुंचे हैं. फ्रांस के सारे सैनिक लौट चुके हैं और 2014 तक बाकी विदेशी सेनाएं भी वहां से हट जाएंगी.

Bundespräsident Gauck besucht Afghanistan
तस्वीर: Reuters

अफगानिस्तान में सुरक्षा का मुद्दा बहुत बड़ा है. लोगों की चिंता है कि अफगान सुरक्षा बल तैयार नहीं हैं और विदेशी सेनाओं के हटने के बाद तालिबान फिर से नियंत्रण संभाल सकता है. लेकिन जर्मन राष्ट्रपति निराश नहीं हैं. वे कहते हैं, "हम प्रशिक्षण और सुरक्षा बलों के गठन के मामले में लक्ष्य पर नहीं हैं. लेकिन फिर भी सफलता की बात की जा सकती है. अफसोस है कि मीडिया की दिलचस्पी सफलता के बदले अफगानिस्तान में विफलता की तस्वीरों और शब्दों में है."

राष्ट्रपति गाउक का कहना है कि जर्मनी में अफगानिस्तान पर चल रही बहस में भी वे सब कुछ को अच्छा या खराब बताने के बदले यथार्थवादी बहस की कामना करते हैं. वे खुद को आशावादी यथार्थवादी बताते हैं और कहते हैं कि यही बात वे मजारे शरीफ में सैनिकों और असैनिक राहतकर्मियों को भी बताएंगे, "हमने साझा कार्रवाई के जरिए जिम्मेदारी ली है, हमने अपने अफगान साथियों के साथ कुछ तय किया है और उससे हमें पीछे नहीं हटना चाहिए."

Bundespräsident Gauck besucht Afghanistan
तस्वीर: Reuters

गाउक का कहना है कि जर्मनी भविष्य में भी भरोसेमंद और ईमानदार सहयोगी बना रहना चाहता है. वे कहते हैं, "यह बात मेरे दिल को छूती है कि यहां किसी राष्ट्र का उतना सम्मान नहीं है, जितना जर्मनी का." जर्मनी की इस छवि में अफगानिस्तान में तैनात जर्मन सैनिकों का भी योगदान है. वे खुश हैं कि राष्ट्रपति उनसे मिलने आ रहे हैं, वह भी क्रिसमस के मौके पर. भले ही मजारे शरीफ में क्रिसमस का माहौल न हो, लेकिन चौकी पर सजा धजा क्रिसमस ट्री लगाया गया है. सैनिकों को घर की याद सता रही है. ड्राइवर माइक कहते हैं, "बड़ा मुश्किल है, खासकर तब जब आपकी गर्लफ्रेंड घर पर अकेली हो."

राष्ट्रपति गाउक कहते हैं कि वे इसीलिए अफगानिस्तान आए हैं कि घर से दूर शांति के लिए काम कर रहे सैनिकों के प्रति आभार व्यक्त किया जा सके. "यहां काम कर रहे ज्यादातर लोग क्रिसमस में घर नहीं जा सकते. मैं अपने दौरे के जरिए दिखाना चाहता हूं कि उन्हें जर्मनी में भुलाया नहीं गया है, उनका बहुत सम्मान है." माइक को खुशी है कि उसे राष्ट्रपति के साथ बैठकर खाने पीने और बतियाने का मौका मिलेगा.

रिपोर्ट: अनीता फुंफफिंगर/एमजे

संपादन: ए जमाल

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