गिरफ्तारी से भागे परवेज मुशर्रफ
१८ अप्रैल २०१३पाकिस्तान के जियो न्यूज टेलिविजन के मुताबिक मुशर्रफ के सुरक्षाकर्मी उन्हें इस्लामाबाद हाईकोर्ट से निकाल कर ले गए. उन्होंने कोर्ट के फैसले के बाद वहां बाहर इंतजार कर रहे स्थानीय पुलिसकर्मियों को उन्हें हिरासत में लेने नहीं दिया. जजों से जुड़े इस मामले में मुशर्रफ की अंतरिम जमानत आज दोपहर को ही खत्म होने वाली थी और पूर्व सेना प्रमुख अदालत में इसे आगे बढ़ाने की अर्जी देने आए थे. मुशर्रफ की ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग पार्टी के महासचिव मोहम्मद अमजद ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने आज मुशर्रफ की जमानत रद्द कर दी है और जजों को नजरबंद करने के मामले में उनकी गिरफ्तारी का आदेश दिया है.
मुशर्रफ के सुरक्षाकर्मी जब उन्हें निकाल कर गए तो उसके बाद पुलिस ने उनकी गिरफ्तारी के लिए दोबारा कोशिश नहीं की. पूर्व राष्ट्रपति चार साल तक स्वनिर्वासन में लंदन रहने के बाद 11 मई को होने जा रहे आम चुनाव में शामिल होने के लिए पिछले महीने ही देश में वापस लौटे हैं. उन पर कई आरोप हैं जिनके लिए उनकी गिरफ्तारी हो सकती है. साथ ही पाकिस्तान तालिबान कई बार उन्हें जान से मारने की धमकी भी दे चुका है. उधर चुनाव आयोग ने उनका नामांकन सभी जगहों से रद्द कर उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है. इस रोक के साथ ही देश की राजनीति में उनकी वापसी पर आशंकाओं के बादल घिर आए हैं.
इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने मुशर्रफ को गिरफ्तार करने का आदेश दिया है. उन पर आरोप है कि देश की सत्ता पर अपनी कमजोर होती पकड़ को बचाए रखने के लिए उन्होंने वरिष्ठ जजों को पद से हटाया और देश में आपातकाल लगा दी. आलोचकों के मुताबिक उन्होंने असंवैधानिक तरीके से काम किया.
मुशर्रफ की कानूनी लड़ाई ने उन्हें चुनावी दौड़ में फायदा दिलाया है. उनके साथ लोग दिख रहे हैं और एक लोकप्रिय नेता के रूप में वो सामने आए हैं. हालांकि इस पूरे ड्रामे का चुनावी नतीजों पर कोई बड़ा असर होगा, ऐसा फिलहाल नहीं दिख रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ जिनका मुशर्रफ ने तख्तापलट कर 1999 में देश से बाहर भेज दिया था, इस बार के चुनाव में सबसे आगे नजर आ रहे हैं. पाकिस्तानी चुनाव के जानकार उनके अगला प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद जता रहे हैं.
पाकिस्तान के 66 साल के इतिहास में देश पर आधे से ज्यादा वक्त सेना का ही शासन रहा है. यहां तक कि जब देश पर लोकतांत्रिक सरकार काबिज रहती है उस वक्त भी विदेश और रक्षा नीतियां सेना ही पर्दे के पीछे से तय करती है.
एनआर/एमजे(डीपीए,रॉयटर्स)