1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

गुंटर ग्रास की कविता पर बवाल

८ अप्रैल २०१२

नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक गुंटर ग्रास की इस्राएल पर नई कविता की आलोचना जारी है. अब उनके लेखक सहयोगी भी उनकी आलोचना कर रहे हैं जबकि खुद ग्रास ने यहूदी विरोध के आरोप से अपना बचाव किया है.

https://p.dw.com/p/14ZMr
गुंटर ग्रासतस्वीर: picture-alliance/dpa

1999 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले गुंटर ग्रास की नई कविता इस सप्ताह जर्मन दैनिक ज्युड डॉयचे साइटुंग में छपी. उसके बाद से ही विरोध का तांता लग गया है. 'जो बात बोली जानी चाहिए' नामक इस कविता में 84 वर्षीय ग्रास ने ईरान पर इस्राएल के संभावित हमले पर चेतावनी दी है और कहा है कि इससे तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो सकता है.

81 वर्षीय जर्मन लेखक रॉल्फ होखहूथ ने ग्रास पर सीधा हमला करते हुए कहा है, "तुम वही रह गए जो तुम इच्छा से थे, नाजी एसएस, जिसने 60 साल तक यह बात छुपाई." युवा गुंटर ग्रास द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजियों के कुख्यात संगठन एसएस में थे, लेकिन इसकी जानकारी बाद में किसी को नहीं थी और न ही उन्होंने स्वयं कुछ साल पहले तक यह बात किसी कोई बताई. होखहूथ ने लिखा है कि उन्हें इस बात पर शर्म है कि वह इस्राएल को जर्मन पनडुब्बी खरीदने से रोकने चाहते हैं, जो छोटे देश को पड़ोसी परमाणु सत्ता द्वारा रातों रात नष्ट किए जाने से अंतिम सुरक्षा दे सकता है. उनका कहना है कि नाजियों की तरह ईरान ने भी यहूदी जनता को नेस्तनाबूद करने की धमकी दे रखी है.

Gedicht «Was gesagt werden muss» Günter Grass
तस्वीर: picture-alliance/dpa

पूर्वाग्रहों के आरोप

अमेरिकी लेखक डैनियल जोनाह गोल्डहैगन ने भी ग्रास को अपने नाजी अतीत को झुठलाने वाला बताया है. गोल्डहैगन का कहना है कि ग्रास ने अपनी कविता में अपने समय के सांस्कृतिक स्टीरियो टाइपों और पूर्वाग्रहों का इस्तेमाल किया है. ग्रास ने अपनी कविता में यह भी लिखा है कि परमाणु सत्ता इस्राएल विश्व शांति को खतरा पहुंचा रहा है. डेनमार्क के लेखक क्नूद रोमर ने आरोप लगाया है कि ग्रास ने इस्राएल को भावी नरसंहार के लिए जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की है.

इसके विपरीत जर्मन शांति आंदोलन गुंटर ग्रास के बचाव में सामने आया है. जर्मनी में ईस्टर के समय शांति आंदोलन की रैलियों की परंपरा है. इस समय जर्मनी के विभिन्न शहरों में शांति प्रदर्शन हो रहे हैं. ईस्टर मार्च के संस्थापकों में शामिल आंद्रेयास बूरो ने कहा है कि इस कविता के साथ ग्रास ने ईरान विवाद के शांतिपूर्ण समाधान को फिर से कार्यसूची पर लाने में योगदान दिया है.

इस्राएल सरकार ने भी ग्रास की आलोचना की है तो ईरान ने नोबेल पुरस्कार विजेता की सराहना की है. इस्राएल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने ग्रास की आलोचना करते हुए कहा, "इस्राएल और नाजी जनसंहार को झुठलाने वाले ईरान को नैतिक रूप से बराबर ठहराने की ग्रास की शर्मनाक कार्रवाई इस्राएल के विपरीत ग्रास के बारे में बहुत कुछ कहती है." उधर ईरान के संस्कृति उपमंत्री जवाद शामगदरी ग्रास को लिखे एक पत्र में कहा, "यह कविता बिना संदेह पश्चिम के सोये हुए विवेक को फिर से जगाने में योगदान देगी."

Literaturnobelpreisträger Günter Grass hält sein umstrittenes Israel-Gedicht hoch
तस्वीर: picture-alliance/dpa

विश्व शांति की चिंता

ग्रास का कहना है कि उन्होंने यह कविता बर्लिन द्वारा इस्राएल को पनडुब्बी बेचे जाने के बाद लिखी जिससे परमाणु हथियार छोड़े जा सकते हैं और जिनका इस्तेमाल ईरान पर हमले के लिए किया जा सकता है. ग्रास ने इस्राएल और ईरान दोनों के परमाणु कार्यक्रमों की अंतरराष्ट्रीय निगरानी की मांग की है. इस्राएल ने कभी स्वीकार नहीं किया है कि उसके पास परमाणु हथियार हैं, लेकिन 1986 में तकनीशियन मोर्देखाई वानुनु द्वारा लंदन के संडे टाइम्स को दी गई इस्राएली परमाणु रिएक्टर की तस्वीरों से विशेषज्ञों ने नतीजा निकाला है कि उसके पास सैकड़ों परमाणु हथियार हैं.

इस समय ईरान का परमाणु कार्यक्रम विवादों में है और पश्चिमी देश उसपर परमाणु कार्यक्रम रोकने के लिए दबाव डाल रहे हैं. उसका कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, लेकिन इस्राएल और पश्चिमी देशों को संदेह है कि वह हथियार बना रहा है. पिछले दिनों में इस बात की चर्चा रही है कि इस्राएल ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ एहतियाती हमला कर सकता है.

गुंटर ग्रास को 1959 में लिखे गए उनके उपन्यास द टिन ड्रम के साथ अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली. अपने लंबे करियर में ग्रास सामाजिक मुद्दों पर बेबाक राय देने वाले लेखक के रूप में जाने जाते रहे हैं. उन्हें 1999 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला. 2006 में छपी अपनी आत्मकथा में उन्होंने पहली बार स्वीकार किया कि वे नाजियों की कुख्यात अर्द्धसैनिक टुकड़ी एसएस के सदस्य रह चुके हैं.

रिपोर्ट: महेश झा (डीपीए, एपी)

संपादन: ओ सिंह

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें