गूगल बुक्स को अमेरिकी अदालत का झटका
२३ मार्च २०११जिला अदालत के जज डेनी चिन 48 पन्नों का फैसला सुनाते हुए कहा, ''किताबों को डिजिटल करने और यूनिवर्सल लाइब्रेरी बनाने से बहुतों को फायदा होगा. ऐसी स्थिति में समझौता भी बहुत बढ़िया होना चाहिए.'' इस योजना को लेकर गूगल और लेखकों के बीच कई साल से कानूनी लड़ाई चल रही है. हांलाकि प्रकाशकों के समूह ने गूगल से समझौता भी किया. लेकिन इस समझौते को कोर्ट ने नाकाफी बताया.
अदालत ने कहा कि पहले हुए समझौते से ''बिना कॉपीराइट मालिकों की अनुमति लिए सभी तरह की किताबों को छापा जा सकता है.'' इस तरह की कोशिशों से बिना अनुमति के कॉपीराइट की नकल को बढ़ावा मिलेगा.
2005 में अमेरिकी प्रकाशक संघ ने गूगल पर कॉपीराइट अधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया. इसके चलते दोनों पक्षों के बीच 2008 में एक समझौता हुआ. समझौते के तहत गूगल को कॉपीराइट मामलों का उल्लंघन करने के आरोप में 12.50 करोड़ डॉलर चुकाने को कहा गया. गूगल से कहा गया कि वह किताबों के अधिकार संबंधी एक स्वतंत्र खाता रखे. गूगल अब तक 100 देशों की डेढ़ करोड़ से ज्यादा किताबें ऑनलाइन कर चुका है.
लेकिन ताजा फैसले ने इस समझौते को खारिज कर दिया है. अब माना जा रहा है कि दोनों पक्ष एक बार फिर नए समझौते की कोशिश में बातचीत करेंगे. गूगल का कहना है कि वह फैसले को बारीकी से पढ़ रहा है. वहीं प्रकाशक संघ का कहना है कि वो दोबारा नए समझौते तक पहुंचने के लिए तैयार हैं. समझौते के समर्थकों का कहना है कि गूगल की डिजिटल लाइब्रेरी और ऑनलाइन बुक स्टोर आम लोगों और लेखकों के लिए फायदेमंद हैं. इससे सभी लेखकों को अंतरराष्ट्रीय मंच और उनके काम का पैसा मिल सकेगा.
अमेरिकी न्याय विभाग ने भी अदालत के फैसले का स्वागत किया है. न्याय विभाग के मुताबिक किताबों के अधिकार को लेकर गूगल को लेखकों और कॉपीराइट मालिकों से बात करनी चाहिए. कोई एक संस्था सभी लेखकों या प्रकाशकों के लिए समझौता नहीं कर सकती. अमेरिकी सरकार ने उम्मीद जताई है कि गूगल लेखकों और प्रकाशकों से साथ मिलकर कोई ऐसा हल निकालेगा जिससे सभी को फायदा हो और नियम भी न टूटें.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: आभा एम