ग्रीन टी के फायदे, बड़े सर्वे का इंतजार
३१ अक्टूबर २०११जर्मन कहावत है, इंतजार कीजिए और चाय पीजिए. चाय लाइफस्टाइल ड्रिंक तो हो सकती है और हिसाब से पीने पर नुकसान भी नहीं पहुंचाती. लेकिन बर्लिन में चाय के लाभ पर एक संगोष्ठी के बाद प्रो. फ्रीडेमन पॉल का कहना है, "उस अंतिम लाभ की घोषणा हम नहीं कर सकते." बर्लिन में दुनिया भर से आए वैज्ञानिक ग्रीन टी के बारे में हो रहे शोध की स्थिति पर चर्चा के लिए मिले हैं.
विश्व भर में 100 अलग अलग अध्ययनों में अल्झाइमर, पार्किंसन, मल्टीपल स्क्लेरोजे, या फिर कैंसर, मोटापे और हृदयसंबंधी रोगों पर चाय के तत्व ईजीसीजी के प्रभाव की जांच हो रही है. लेकिन उनमें जिस सैंपल का इस्तेमाल किया जा रहा है वे एक स्तर के नहीं हैं. कभी चाय का उपयोग होता है तो कभी निचोड़ का. बर्लिन के चैरिटी मेडिकल कॉलेज में काम कर रहे प्रो. पॉल का कहना है, "इसलिए उसके नतीजों की तुलना करना मुश्किल है." इस समय तीन अध्ययन चैरिटी में किए जा रहे हैं और भरोसेमंद नतीजों के 2012 तक आ जाने की उम्मीद है.
न्यूरोलॉजिस्ट प्रो. पॉल कहते हैं, "हमें उम्मीद नहीं है कि ग्रीन टी इस तरह की बीमारियों का सचमुच इलाज कर सकती है. लेकिन कुछ परिस्थितियों में यह संभव है कि उसके बढ़ने को रोके या उसे होने ही न दें." प्रो. पॉल कहते हैं कि अच्छी बात यह है कि तथाकथिक ऑक्सिडेंट्स के असर पर ठोस शोधकार्य हो रहा है.
वैसे शोधकर्ताओं को अक्सर यह भी पता नहीं होता कि पोलिफेनोल, जिसके तहत ईजीसीजी (एपीगैलोकाटेचिंगलाट) भी आता है, किस तरह से काम करते हैं. प्रो. पॉल कहते हैं, "जहां तक हमें आज पता है, ईजीसीजी संभवतः ऑक्सिडेटिव तनाव पर सकारात्मक असर करते हैं."
जानवरों पर किए गए परीक्षण में इस तत्व ने अल्झाइमर जैसे तंतु नहीं बनने दिए. जर्मन कैंसर सहायता संघ को भी इस पर भरोसा है और वह कई शोध परियोजनाओं के लिए धन दे रहा है. इनमें से एक प्रोजेक्ट आंत के कैंसर से सुरक्षा का है.
ग्रीन टी मोटापे से लड़ने में भी मददगार हो सकता है. चैरिटी में शोध करने वाले फार्मासिस्ट मिषाएल बोशमन कहते हैं, "कम मोटापे वाले लोग या चयापचय में उथल पुथल के शिकार लोगों ने वजन घटाया." इसके विपरीत सामान्य वजन वाले या बहुत मोटे लोगों को चाय पीने से कोई फायदा नहीं होता. बोशमन का कहना है कि जापान में हुए अध्ययन को यूरोप पर पूरी तरह लागू नहीं किया जा सकता. वहां लोग ग्रीन टी तो पीते ही हैं, इसके अलावा उनकी खानपान की आदतें भी अलग है.
कुल मिलाकर सही नतीजे निकालने के लिए बड़े सर्वे की जरूरत होगी जिसमें एक जैसे मानकों का उपयोग हुआ हो. लेकिन उद्योग को इस तरह के अध्ययन में कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि चाय दवा नहीं है और उसे बेच कर अरबों नहीं कमाए जा सकते. प्रो. पॉल कहते हैं कि यहां सरकार की जिम्मेदारी है, क्योंकि संभव है कि कम प्रयासों के जरिए स्वास्थ्य सेवा में भारी खर्च को बचाया जा सके. जब तक ऐसा अध्ययन नहीं हुआ है विशेषज्ञ डॉक्टरों से सलाह लिए बगैर ग्रीन टी के निचोड़ को पीने से बचने को कहते हैं. उसका साइड इफेक्ट भी हो सकता है.
रिपोर्ट: डीपीए/महेश झा
संपादन: ओ सिंह