जर्मनी में आप्रवासियों के रंगों में कला
२२ सितम्बर २०११ये कलाकार वे हैं, जो वैसे तो किसी और देश के हैं लेकिन अब जर्मनी में बस गए हैं. हाइमाटकुंडे (देश का इतिहास) नाम से यह प्रदर्शनी है. सबसे पहले मारिया थेरेजा आल्वेस के पौधे हैं. ब्राजील में पैदा हुईं यह कलाकार, न्यूयॉर्क में पली बढ़ीं और अब बर्लिन में रहती हैं. उन्होंने बर्लिन के हर कोने से मिट्टी इकट्ठा की, रास्ते के किनारे, कचरे के ढेर से कंस्ट्रक्शन साइट से...उसमें बीज रोपे. अब यहां यहूदी संग्रहालय में उनके पौधे फूल रहे हैं. इस प्रयोग के जरिए वह दिखाना चाहती हैं कि लोग भले ही कहीं से भी आएं लेकिन बर्लिन में वे बिलकुल आराम से रहते हैं.
बदला हुआ जर्मनी
जर्मनी बदला है, निश्चित ही सोवियत संघ के पतन के बाद और पश्चिम और पूर्वी जर्मनी के एक होने के बाद इसमें काफी परिवर्तन हुआ है. और आज जर्मनी में रहने वालों में 20 फीसदी लोग विदेशी मूल के हैं.
जर्मनी में 40 लाख मुसलमान रहते हैं. इनमें अधिकतर तुर्की से हैं लेकिन कई दूसरे देशों से आए हुए भी हैं. और फिर ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो गैर जर्मन पृष्ठभूमि से जुड़े हैं लेकिन जर्मनी में रहते हैं. उनमें से कुछ जर्मन नागरिक हो गए हैं. सिली कूगेलमान यहूदी म्यूजियम के उप निदेशक हैं. वह कहते हैं, "जर्मनी को अब एक ही मूल के लोगों का देश नहीं कहा जा सकता."
इसलिए यहूदी म्यूजियम ने नए जर्मनी को कला के नजरिए से देखने का फैसला किया ताकि अलग अलग समाज से आए लोगों की वजह से बने एक नए समाज के विभिन्न पहलुओं को देखा समझा जा सके. और यह भी जाना जा सके कि आप्रवासन से आने वाले लोग और स्थानीय लोगों में क्या बदलाव आते हैं.
माजियार मोरादी फोटोग्राफर हैं. उन्होंने तस्वीरों की एक सीरीज तैयार की है जिसे नाम दिया हैः मैं जर्मन हो गया. ईरान में जन्मे मोरादी ने अपनी तस्वीरों में उन लोगों की जिंदगी को दिखाया है जो या कहीं और से आकर जर्मनी में बसे हैं या फिर जिनकी जड़ें जर्मन नहीं हैं. इन तस्वीरों में होटल में काम करती एक लड़की है, ऑपरेशन करता डॉक्टर, पीले रंग के गुड्डे गुड़ियों के बीच बैठी एक काली महिला.
मोरादी अपने किरदारों को अपनी अपनी कहानियों के हीरो के तौर पर पेश करते हैं. वह उन सबको हैम्बर्ग की गलियों में मिले. ये ऐसे लोग हैं जिन्होंने बहुत कुछ सहकर, लड़कर अपनी जिंदगी को खड़ा किया. ये वे लोग हैं जिन्होंने अपना देश बदला, जर्मनी आए और फिर खुद को बदला.
एक और कलाकार हैं आज्रा अकसामिया. सरायेवो की रहने वालीं अकसामिया की कला है पारंपरिक कपड़े बनाना. वह दक्षिण जर्मनी में पहने जाने वाली पारंपरिक पोशाक तैयार करती हैं. इसमें एप्रन हैं जिन्हें प्रार्थना के दौरान इस्तेमाल होने वाली चटाई बना दिया गया है. इसके जरिए अकसामिया बताती हैं कि आप अपना धर्म हमेशा अपने साथ रखते हैं. और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने नई संस्कृति में खुद को कैसे बदला है. लेकिन नई संस्कृति में नई जिंदगी का मतलब होता है कि आपका धर्म भी धीरे धीरे बदल जाएगा.
हाईमाटकुंडे में 30 कलाकारों की कृतियां पेश की गई हैं. वे सभी जर्मनी में रहे हैं या रहते हैं. लेकिन उनकी कला के परिप्रेक्ष्य अलग अलग हैं. वे पारिवारिक कहानियां सुनाते हैं. 1930 के दशक में जर्मनी में नाजीवाद और उसके बाद हुए नरसंहार के असर पर सवाल पूछते हैं. ऐसी दुनिया रचते हैं जो यूटोपिया सी लगती है. जैसे मेडिनाट वाइमार जर्मनी में एक नए यहूदी राज्य थुरिंगिया की कल्पना करते हैं.
यूलिआन रोजेफेल्ट आप्रवासियों को उनके ही दिमागों के जंगलों में ले जाते हैं. वे जर्मनी की आदतों और जीवन से जुड़े हास्य और विडंबना दिखाते हैं. वह कहते हैं कि वह मिथकों की सच्चाई बयान कर रहे हैं. हालांकि वह कोई ठोस बयान नहीं देना चाहते, वह तो टुकड़ों टुकड़ों में अलग अलग दुनिया को जोड़कर एक कोलाज बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इस कोलाज से और यहूदी म्यूजियम में बने कलाकृतियों के कोलाज से एक ही बात जाहिर होती हैः जर्मनी बदल चुका है.
रिपोर्टः जिल्के बार्टिल्क/वी कुमार
संपादनः ए कुमार