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जर्मनी में संस्कृत, हिंदी और भारत की पढ़ाई

२ अक्टूबर २०११

भारतीयों के लिए वे विदेशी हैं लेकिन वे सही उच्चारण के साथ संस्कृत पढ़ते हैं. भारतीय इतिहास और पंरपराओं का उन्हें ज्ञान है. जर्मनी में इंडोलॉजी के कई प्रोफेसर हैं जो दशकों से छात्रों को भारत की खोज करा रहे हैं.

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तस्वीर: AP

हाइडलबर्ग जर्मनी की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी है. यूनिवर्सिटी की बेवसाइट पर इंडोलॉजी सर्च करने पर भारतीय परंपरा के मुताबिक विद्या की देवी सरस्वती की तस्वीर दिखाई पड़ती है. पाठ्यक्रमों का जिक्र है. संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए सरस्वती संस्कृत पुरस्कार भी दिया जाता है. हाले विटनबेर्ग की मार्टिन लूथर यूनिवर्सिटी में इंडोलॉजी यानी भारत विद्या की पढ़ाई होती है. माइंत्स में इंस्टिट्यूट फॉर इंडोलॉजी है. संस्थान के चारों प्रोफेसरों में से कोई भी भारतीय नहीं है. ट्यूबिंगन और बॉन यूनिवर्सिटी में भी हर साल कुछ छात्र इंडोलॉजी में दाखिला लेते हैं.

राइन तट का बनारस है बॉन

बॉन यूनिवर्सिटी को राइन नदी के किनारे बसे बनारस की उपाधि दी गई है. यहां के इंडोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर हाइंत्ज वेसलर धाराप्रवाह हिंदी, ऊर्दू बोलते और लिखते हैं. डॉक्टर वेसलर कहते हैं, "यहां के तमाम लोग भारत के बारे में जो सोचते हैं, उसमें काफी गलतियां हैं. हम इस दिशा में प्रयास करना होगा. यह मेरी जिम्मेदारी भी है. भारत में दुनिया की सबसे धनी सभ्यता रही है. उससे हम सब काफी कुछ सीख सकते हैं. लेकिन इन दिनों खुद भारत में लोग अपने इतिहास और सभ्यता से मुंह मोड़ रहे हैं."

जर्मनी में मलयालम

छोटे से शहर ट्यूबिंगन के मुख्य रेलवे स्टेशन से थोड़ी दूर पर भी ऐसा ही नजारा दिखाई पड़ता है. छोटी छोटी गलियां और उसमें एक छोटी सी सुंदर इमारत भारत विद्या विभाग की है. यहां साउथ एशियन इंस्टिट्यूट है जहां भारत विद्या की पढ़ाई होती है. इस इमारत की दूसरी मंजिल पर डॉक्टर हाइके मोजर का कमरा है. डॉक्टर मोजर इंडोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.

मलयालम पढ़ाना तो उनकी खासियत है ही, लेकिन एक और बात उन्हें खास बनाती है कि उन्होंने दुनिया के इकलौते संस्कृत थिएटर कुड़ीअट्टम को केरल में जा कर सीखा है. जर्मनी में रहते हुए कुड़ीअट्टम सीखने की कहानी के बारे में वह बताती हैं, "मैं छोटी थी तो मैंने भरतनाट्यम देखा. मुझे पसंद आया. मैंने इसे सीखना शुरू कर दिया. इसी कारण मुझे कुड़ीअट्टम के बारे में पता चला. मैं बिना भाषा सीखे केरल चली गई और मैंने कुड़ीअट्टम सीखना शुरू किया.  मैंने दो साल लगातार केरल कला मंडलम में कुड़ीअट्टम सीखा. 95 से 97 तक मैंने इसकी शिक्षा ली. सीखने के बाद से मैं इसके बारे में डेमोस्ट्रेशन लेक्चर देती हूं."

अपनी ओर खींचता भारत

दरअसल इंडोलॉजी की शुरुआत कब हुई यह कहना इतिहास की गहराइयों में देखने के समान है. 350 से 290 ईसा पूर्व ग्रीस के दूत मैगस्थनीज भारत आए. मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त से उनकी मुलाकात हुई. भारत में मैगस्थनीज ने लंबा वक्त बिताया और अपने अनुभवों को चार किताबों के जरिए बांटा. इन चार किताबों का इंडिका कहा गया. कुछ किताबों के अवशेष अब भी बचे हुए हैं. मैगस्थनीज ने बताया कि भारत में जाति व्यवस्था है और चंद्रगुप्त की ज्यादातर जनता अनपढ़ है. एक तरह से कहा जाए तो मैगस्थनीज ने सबसे पहले एक विदेशी होने के नाते भारत को जानने की कोशिश की.

उनके बाद भारत को जानने की जिज्ञासा कई लोगों को मन में उठी. 10वीं शताब्दी में अबु रेहान अल बरुनी ने भारत के इतिहास और सैन्य इतिहास के बारे में जानकारियां बांटीं. बरुनी ने भारतीय समाज, संस्कृति और धर्म से अरब जगत को अवगत कराया. बरुनी ने भारतीय भाषाएं सीखीं, पुराने ग्रंथ पढ़े.

इसके बाद भारत मुगल शासन के अधीन रहा. धार्मिक और सामाजिक ढांचा बदला. नई वास्तुकला, पाक कला, संगीत और नृत्य कला का उदय हुआ. लूट के इरादे से भारत पर हमला करने की जगह मुगलों ने भारत को अपना घर बना लिया. इस दौरान भारत अरब देशों के संपर्क में ही ज्यादा रहा. 18वीं शताब्दी में यूरोप से भारत का संपर्क शुरू हुआ. ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन होते ही भारत के बारे में पश्चिमी दुनिया को काफी कुछ पता चला. रूमानी जर्मन दार्शनिक योहानन गोटफ्रीड हेरडर (1744-1803) ने सबसे पहले यह विचार व्यक्त किया कि भारत सभी सभ्यताओं का उद्गम स्थल है. हेरडर की किताब Ideen zur Geschichte der Menschheit में इसका जिक्र है.

भारत के प्रति उनकी जिज्ञासा लगातार बढ़ती गई और इंडोलॉजी जैसी पढ़ाई शुरू हुई. जर्मनी में 1845 में इंडोलॉजी की शुरुआत हुई. 1850 से 1870 के बीच भारत में रुचि रखने वाले कई जर्मन विद्वानों ने संस्कृत सीख ली. हिंदू धर्म के कई पुराने ग्रंथों का अनुवाद होने लगा. अनुवाद आगे बढ़ने के साथ पश्चिम को भारत की एक अलग तस्वीर दिखाई पड़ी. एक ऐसी सभ्यता की तस्वीर जो कई शताब्दियों पहले साहित्य, कला, संगीत, विज्ञान और चिकित्सा के मामले में बहुत आगे रही. रूमानी दार्शनिकों को भारत की आध्यात्मिक शक्ति विभोर कर गई.

रिपोर्टः एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: वी कुमार

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