जी20 वार्ता से पहले वर्ल्ड बैंक की चेतावनी
१८ जून २०१२शिखर वार्ता से ठीक पहले विश्व बैंक के अध्यक्ष रॉबर्ट जोलिक ने चेतावनी दी है. यूरो जोन संकट वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है.
जोलिक ने साफ शब्दों में कहा है कि अगर इस संकट पर सही कदम नहीं उठाए गए तो यह वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ी गड़बड़ी का कारण साबित हो सकता है. उन्होंने कहा कि आर्थिक संकट के कारण यूरोप में 'लेहमान मोमेंट' जैसी स्थिति पैदा हो सकती है. अमेरिकी बैंक लेहमान ब्रदर्स के दीवालिया होने के बाद ही दुनिया में 2008 आर्थिक मंदी का दौर शुरू हुआ था.
जोलिक ने ब्रिटेन के अखबार द ऑब्सर्वर से बातचीत में कहा कि बुरे फैसले से आर्थिक मंदी शुरू होगी और इसका सीधा असर विकासशील देशों पर पड़ेगा. यूरो जोन और वैश्विक बाजार से आने वाली अस्थिरता से उबरने के लिए विकासशील देशों को कदम उठाना जरूरी हैं. "इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका है कम समय के लिए दिए जाने वाले कर्जों से बचना, मूलभूत संरचना पर ध्यान देना और मनुष्य को विकास का एक आधार समझना."
भारत की अपील
उधर माना जा रहा है कि भारत के प्रधानमंत्री यूरोप से अपील करेंगे कि वह इस तरह के कदम उठाएं कि विकासशील देशों के आर्थिक विकास पर इसका बुरा असर न पड़े.
यूरोप में जारी आर्थिक उठापटक, और राजनीतिक हलचल के कारण दुनिया के बाजार बेचैन हैं. और भारत भी इससे अछूता नहीं. 2008 में जी20 देशों की बैठक शुरू होने के समय से ही मनमोहन सिंह ने इसकी सभी छह वार्ताओं में हिस्सा लिया है.
अमेरिका और भारत दोनों ने यूरो जोन के देशों से तेज फैसला लेने की मांग की है. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल का कहना है कि यूरो जोन की तेज बेहतरी की बजाए मुश्किल जड़ से खत्म की जानी चाहिए. जिसके लिए ऋण घटाए जाएं और आर्थिक प्रतिस्पर्धा बढाई जाए.
माना जा रहा है कि जी 20 देशों की बैठक में यूरो संकट का मुद्दा बाकी सब पर भारी पड़ेगा. भारत को अभी अभी आर्थिक संकटों का असर झेलना पड़ा है. जो देश अमेरिकी आर्थिक मंदी के दौरान स्थिर रहा उसे इस साल की पहली तिमाही में सबसे कम आर्थिक विकास हुआ है. जनवरी से मार्च के दौरान पिछले साल विकास दर 9.2 थी जबकि इस साल वह 5.3 दर्ज की गई है. इसी के साथ वह ब्राजील की और चीन के साथ खड़ा हो गया है, इन देशों पर भी वैश्विक अस्थिरता का प्रभाव पड़ा है. आयोजक देश मेक्सिको ने कहा है कि शिखर वार्ता में बहस का अहम मुद्दा आर्थिक बेहतरी और विकास ही है.
जी 20 देशों में भारत, अमेरिका, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, रिपब्लिक ऑफ कोरिया, तुर्की, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ शामिल हैं.
एकता की कमी
विदेश नीति के लिए जर्मन सोसायटी के आल्मूट मोएलर कहती हैं, "आर्थिक संकट के समय से यूरोप से लोगों का विश्वास खत्म हो गया है. लोग सवाल उठाने लगे हैं कि क्या यूरोप आर्थिक संकट से उबर सकता है या नहीं. अगर शिखर वार्ता में हिस्सा लेने वाले लोग सोचने लगें कि यूरोपीय संघ का सितारा उभरने से पहले ही अस्त होने की ओर है, तो ऐसी स्थिति में यूरोप के लिए मुश्किल है कि वह अपनी विचारधारा को राजनीतिक स्तर पर आगे ले जाए." वहीं बॉन यूनिवर्सिटी में यूरोपीय इंटिग्रेशन सेंटर के प्रोफेसर लुडगर कुइनहार्ड कहते हैं, "भू राजनैतिक स्तर पर यूरोप एक साथ नहीं दिखाई देता." कुइनहार्ड का मानना है कि दूसरे देशों के लिए यह अजीब है कि जी 20 देशों की बैठक में यूरोप यूरोजोन और यूरोप के देश दोनों के तौर पर शामिल हो रहा है, यानि फ्रांस, और जर्मनी देश के तौर पर भी और यूरोजोन के सदस्यों के तौर भी शामिल हैं. ऐसे में एक संघ के तौर पर यूरो जोन और ईयू की छवि दिखाई नहीं देती. वहीं जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने ज्यादा यूरोप की वकालत कर चुकी हैं. हालांकि ग्रीस चुनावों के नतीजों के बाद जी20 देशों के नेताओं को थोड़ी राहत तो निश्चित ही मिलेगी.
रिपोर्टः आभा मोंढे (रॉयटर्स, एएफपी, पीटीआई)
संपादनः ईशा भाटिया