ज्वालामुखी बन गई है मिस्र के साथ पूरी अरब दुनिया
३ फ़रवरी २०११काहिरा में लोगों की नजरें शुक्रवार को होने वाले प्रदर्शन की ओर लगी है. विपक्ष के साथ बातचीत की कोशिशें अब तक कुल मिलाकर नाकाम रही है. प्रमुख विपक्षी दल मुबारक के रहते सरकार के नेताओं के साथ बातचीत के लिए तैयार नहीं हैं.
सारी अरब दुनिया में एक नई क्रांतिकारी लहर आई सी लगती है. विरोध प्रदर्शनों से कोई भी महत्वपूर्ण अरब राजधानी अछूती नहीं रह गई है. गुरुवार को यमन की राजधानी सना में विपक्ष की ओर से "गुस्सा दिवस" मनाया गया. सरकार ने भी अपने समर्थकों को लामबंद करने की पूरी कोशिश की. दोनों पक्षों के 20-20 हजार समर्थक सड़क पर उतरे. प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे. वैसे बुधवार को संसद में राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह घोषणा कर चुके हैं कि 1978 से सत्ता में रहने के बाद वे 2013 में अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे और न ही अपने बेटे को सत्ता सौंपेंगे.
जॉर्डन मे शाह अब्दुल्ला 1999 से सत्ता पर हैं. उन्हें उत्तराधिकार में यह देश मिला था. 14 जनवरी से वहां भी प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया है. अभी तक उन्हें गद्दी से उतारने की मांग नहीं उठी है. लोग बढ़ती कीमती, गरीबी और बेरोजगारी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. यहां भी शुक्रवार को एक विशाल प्रदर्शन होने वाला है.
सीरिया के बशर अल असद कहने को तो राष्ट्रपति हैं, लेकिन उन्हें भी विरासत में सत्ता मिली है. यहां भ्रष्टाचार और निरंकुशता के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं. साथ ही सुरक्षा बलों को मिस्र के दूतावास के सामने युवकों का एक प्रदर्शन रोकना पड़ा है, जिसे मिस्र की क्रांति के समर्थन में आयोजित किया गया था.
विरोध प्रदर्शनों की खबरें अल्जीरिया, सुडान, ओमान, माउरिटैनिया और मोरक्को से भी मिली हैं. यह सिलसिला ट्युनीशिया में सत्ता पलट के बाद ही शुरू हो चुका है. मिस्र की घटनाओं से उन्हें नई ताकत मिल रही है.
प्रेक्षकों की नजरें खास कर उन देशों पर हैं, जहां प्रदर्शन नहीं हुए हैं, लेकिन शेखों और शाहों का राज है और जमीन के नीचे तेल का खजाना है. इनमें शामिल हैं कतर, कुवैत और खासकर सउदी अरब. अरब दुनिया में भड़क उठी ज्वालामुखी की लपेट में अगर ये देश आते हैं, तो सारी दुनिया के राजनीतिक व आर्थिक नक्शे पर उसका भारी असर पड़ेगा. पश्चिम की राजधानियों में भी उसका हिसाब किताब शुरू हो चुका है.
रिपोर्ट: उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादन: ओ सिंह