डोपिंग रोकने के लिए सीधे घर पर छापा
१ जुलाई २०११ड्रग्स की धोखेबाजी को पकड़ने के लिए एनएडीए खिलाडियों के घर धमक सकती है. रॉयटर्स समाचार एजेंसी के साथ भारत की एंटी डोपिंग एजेंसी के प्रमुख ने यह बात कही है. हाल ही में भारत में डोपिंग के कई मामले पकड़े गए हैं और इसलिए एजेंसी को तेजी से काम करना पड़ रहा है, पिछले मई 2010 से 11 महीनों में 122 खिलाड़ी डोपिंग की जांच में पॉजिटिव रहे. इनमें अधिकतर पहलवान और भारोत्तोलक थे.
मनदीप कौर और सिनी जोस 400 मीटर दौड़ के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स में भारत के मजबूत खिलाड़ी थे. उन्हें डोपिंग टेस्ट में पॉजिटिव पाया गया और उन्हें इस सप्ताह की शुरुआत में कुछ समय के लिए निलंबित किया गया है,
एथेलेटिक फेडरेशन ने गुरुवार को पुष्टि की कि चार अन्य खिलाड़ी भी इस टेस्ट में फेल हो गए.
चिंता है लेकिन...
एनएडीए के महानिदेशक राहुल भटनागर ने कहा कि वह अवैध डोपिंग को रोकने के लिए हर कदम उठाएगा. "मुझे चिंता है, लेकिन खौफ नहीं है. हां दो हाई प्रोफाइल मामले हैं जो हतप्रभ करने वाले हैं. चूंकि एजेंसी दो साल पहले ही स्थापित की गई है, हम धीरे धीरे सैंपल बढ़ा रहे हैं. हमारे पास फिलहाल 2,600 सैंपल हैं और इस साल हम इनकी संख्या 3,500 करना चाहते हैं और अगले साल 14,000. ताकि यह शॉर्ट लेने के बारे में विचार करने वाले खिलाड़ियों को रोक सके."
भटनागर ने कहा कि अगर टेस्ट बढाने पर भी सफलता नहीं मिली तो नाडा ऑस्ट्रेलियाई मॉडल अपनाएगा जिसके तहत किसी भी खिलाड़ी के घर औचक छापा डाला जा सकता है. "ऑस्ट्रेलिया ने इस मुद्दे पर बहुत प्रभावी काम किया है. इस कारण पुलिस प्रतिबंधित दवाइयों के इस्तेमाल को रोकने के लिए काम कर पाई है. जबसे नाडा की स्थापना हुई है हमने ज्यादा सैंपल्स लेने शुरू किए हैं. आशंका है कि और पॉजिटिव मामले सामने आएंगे." फिलहाल चार या पांच मामले पॉजिटिव हैं जो चिंता की बात है, लेकिन आपात स्थिति नहीं.
भटनागर कहते हैं कि गलती से यह पदार्थ लेने वालों और जान बूझ कर लेने वालों में अंतर ढूंढना बहुत मुश्किल है. "कई बार खिलाड़ी बड़ी मजेदार दलीलें देते हैं. अक्सर यह बताने की कोशिश करते हैं कि उन्हें नहीं मालूम कि उनके शरीर में प्रतिबंधित पदार्थ पहुंचा कैसे. एक खिलाड़ी ने दावा किया था कि तेल मालिश के कारण क्षमता बढ़ाने वाली प्रतिबंधित दवाई उसके शरीर में पहुंची."
कई दलीलें
अक्सर खिलाड़ी यह भी कहते हैं कि उन्हें नहीं पता था कि दवाई में प्रतिबंधित पदार्थ है. लेकिन भटनागर इसे सही नहीं मानते हैं. "इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता. अगर उन्हें सच में ऐसी दवाई की जरूरत है, तो वह थेरेपॉइटिक यूज एक्जम्पशन के सर्टिफिकेट के लिए आवेदन कर सकते हैं." टीयूई एक ऐसा सर्टिफिकेट है जिससे खिलाड़ी को तब भी खेलने की इजाजत मिल सकती है अगर वह डोपिंग टेस्ट में फेल हो जाए.
भटनागर आशंका जताते हैं कि कुछ प्रशिक्षक भी इसमें दोषी हैं. "कोच अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते. हर बार जब खिलाड़ी पकड़ा जाता है, कोच सबसे पहले उनसे अलग होता है. वे कहते हैं कि हम तो खिलाड़ी के साथ पूरे समय नहीं रहते और इसलिए उन पर हर समय नजर भी नहीं रख सकते. कई खिलाड़ी अपने कोच के कहे को पत्थर की लकीर मानते हैं."
रिपोर्टः एजेंसियां/आभा एम
संपादनः महेश झा