तालिबान नेता से चुपके चुपके मुलाकात
१२ अगस्त २०१२पाकिस्तान और अफगानिस्तान के वरिष्ट अधिकारियों ने इस बारे में जानकारी दी है. अफगान अधिकारियों का कहना है कि पाकिस्तान तालिबान के साथ बातचीत में मध्यस्थता करने से हमेशा इनकार करता है. हालांकि मुल्ला अब्दुल गनी बरादर से मुलाकात करवा कर उसने इस मामले में ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाने के संकेत दिए हैं.
राष्ट्रपति हामिद करजई के सुरक्षा सलाहकार रंगीन स्पांटा ने बताया कि दो महीने पहले अफगान प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान में बरादर से मिला था. बारादर सीआईए और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी की संयुक्त कार्रवाई में दो साल पहले कराची से पकड़ा गया था. स्पांटा ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "हमारे प्रतिनिधिमंडल ने मुल्ला बरादर से यह जानने के लिए बातचीत की कि वो शांतिवार्ता के बारे में क्या सोचते हैं." अफगान अधिकारी सार्वजनिक रूप से बरादर से मुलाकात कराने की मांग करते रहे हैं लेकिन स्पांटा के इस बयान से पता चला है कि शुरूआती मुलाकात पहले ही हो चुकी है.
पाकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक ने भी कहा है कि अफगान अधिकारियों को बरादर से मिलने दिया गया. मलिक ने कहा, "हम लोग अफगानिस्तान के साथ पूरी तरह से सहयोग कर रहे हैं और शांति प्रक्रिया के लिए जो भी उनकी मांग है उसे अफगानिस्तान में शांति बहाल करने के लिए पूरा किया जा रहा है. हम उन्हें हर तरह की सहायता दे रहे हैं."
बरादर को जब गिरफ्तार किया गया तब वह तालिबान का कमांडर था और नाटो या अफगान सेना के खिलाफ तालिबान के हमलों की हर दिन की कार्रवाई की जिम्मेदारी उसी की थी. उसे तालिबान के नेता मुल्ला मोहम्मद उमर का दाहिना हाथ कहा जाता है. बरादर नाम भी मुल्ला उमर ने ही उसे दिया था जिसका मतलब भाई होता है. तालिबान में उसे काफी प्रभाव और सम्मान भी बख्शा गया.
समझौते का सूत्रधार
अफगान अधिकारियों को उम्मीद है कि तालिबान के साथ जंग खत्म करने की दिशा में किसी भी समझौते के लिए बरादर अहम भूमिका निभा सकता है. अफगान और अमेरिकी अधिकारी सार्वजनिक रूप से यह मान भी चुके हैं कि उन्हें इस दिशा में थोड़ी कामयाबी भी मिली है. हालांकि तालिबान इसे खारिज करता है और अमेरिकी अधिकारियों पर भरोसा बढ़ाने के उपायों का सम्मान न करने के आरोप लगाता है.
पश्चिमी देशों के एक अधिकारी ने कहा कि पाकिस्तान का बरादर से मिलने देने का फैसला दोनों देशों के बीच अच्छे सहयोग की उम्मीदों को मजबूत करेगा, हालांकि अफगान अधिकारी तभी संतुष्ट होंगे जब बरादर को अफगानिस्तान वापस भेज दिया जाएगा. अफगान अधिकारी भले ही बरादर को अहम मान रहे हों लेकिन यह साफ नहीं है कि उसकी मौजूदगी इन कोशिशों पर कितना असर डालेगी.
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच पिछले महीने अफगानिस्तान की शांति के लिए नियमित रूप से बातचीत और सहयोग करने पर समहति बनी थी. नए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने तालिबान नेताओं और अफगान अधिकारियों की मुलाकात कराने का भी भरोसा दिया था. अफगानिस्तान तालिबान के उन नेताओं से बात करना चाहता है जो क्वेटा शूरा के हैं. अफगान अधिकारियों का मानना है कि ये लोग बातचीत में अहम भूमिका निभा सकते हैं. पाकिस्तान क्वेटा में चरमपंथियों को पनाह देने के आरोपों से लगातार इनकार करता है और उसका यह भी कहना है कि क्वेटा में ऐसी कोई जगह नहीं जहां तालिबान को अपना अड्डा बनाने की खुली छूट मिली हुई हो.
अमेरिकी सेना 2014 के आखिर से अपना खेमा उखाड़ने लगेगी और उसके बाद मुल्क में शांति बनाए रखना अफगान सरकार के लिए बड़ा सरदर्द होगा. ऐसे में तालिबान के साथ बातचीत के जरिए किसी तरह के समझौते का जुगाड़ ही उनके पास एकमात्र रास्ता बच रहा है.
इस बीच अफगान और नाटो की सेनाओं ने सिलिसिलेवार हमलों की एक साजिश नाकाम कर दी है. हमला रविवार को काबुल में होना था. पांच उग्रवादियों को गिरफ्तार किया गया है जिनका संबंध कथित रूप से पाकिस्तान के आतंकवादियों से बताया जा रहा है. नाटो के अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहयोग बल आईसैफ की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि यह लोग राजधानी काबुल में हमले की योजना बना रहे थे. रात भर चली कार्रवाई के बाद इनके पास से आईसैफ ने बड़ी मात्रा में विस्फोटक, आत्मघाती जैकेट बनाने का सामान, हथियार और गोला बारूद बरामद किया है.
इन पांच उग्रवादियों में से एक पाकिस्तान का नागरिक है. इन लोगों के पास से अफगान सेना की वर्दी और पाकिस्तानी पहचान के दस्तावेज, करंसी नोट और मोबाइल नंबर मिले हैं.
एनआर/ एमजे (रॉयटर्स, एएफपी)