दिल का रोगः गाड़ी चलाएं या न चलाएं
२१ मार्च २०११दिल की बीमारी होने के बाद मरीज के दिमाग में पहला सवाल आता है कि अब गाड़ी चला सकता हूं, या नहीं नहीं? चलाना चाहिए या नहीं ? सवाल आसान नहीं. लेकिन कोई गाड़ी चलाने की हालत में है या नहीं इसका फैसला करने के लिए जर्मनी में हृदय रोग विशेषज्ञों ने एक नया कैटलॉग बनाया है. कार्डियैक सोसायटी के इस कैटलॉग का पालन करने की सलाह जर्मन हृदयरोग फाउंडेशन भी डॉक्टरों को देता है.
जर्मन हर्ट फाउंडेशन के प्रो. हर्मन क्लाइन का कहना है कि यह पेपर तैयार करने की वजह यह है कि कई बार डॉक्टरों को भी ठीक से पता नहीं होता कि उन्हें क्या सलाह देनी चाहिए. कार्डियैक सोसैयटी का नया पेपर सामान्य प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों के लिए भी मददगार साबित होगा.
जब तक समस्या पैदा न हो हृदय रोगी सामान्य व्यवहार करते हैं. लेकिन अगर दिल के धड़कने की गति में बाधा होने लगे तो कार चालक सड़क यातायात के लिए बहुत बड़ा खतरा बन सकता है. ऐसा स्थिति में रोगी अचानक अपनी गाड़ी पर नियंत्रण खो सकता है.
जर्मनी में दुर्घटनाओं के आंकड़े दिखाते हैं कि दिल की बीमारी के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या नशे के कारण होने वाली दुर्घटनाओं और 18-20 उम्र के नौसिखुओं के हाथों होने वाली दुर्घटनाओं से काफी पीछे हैं. कुल मिलाकर 0.5 से 2 फीसदी दुर्घटनाएं बीमारियों के कारण होती है और उनमें दिल की बीमारी का हिस्सा करीब आधा है.
दुर्घटनाओं से बचाने के लिए डॉक्टरों की सलाह होती है कि खराब स्वास्थ्य की हालत में गाड़ी न चलाएं. और दिल का दौरा पड़ने या पक्षाघात के उबरने के कम से कम तीन महीने तक गाड़ी चलाने से बचें.
दिल के विशेषज्ञों का पेपर हाल के शोधों पर आधारित है और ड्राइविंग लाइसेंस अधिनियम की धाराओं से आगे जाता है. इसके आधार पर डॉक्टर या हृदय रोग विशेषज्ञ अपने मरीज को सही सलाह दे सकते हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: एन रंजन