धरती के गर्माने से जगह बदल रहे हैं जानवर
२० अगस्त २०११वैज्ञानिक इस दशक में कई बार यह बात कह चुके हैं कि कई प्रजातियां ध्रुवों की ओर जा रही हैं क्योंकि ग्लोबल वॉर्मिंग ने उनके कुदरती बसेरों को छीन लिया है. लेकिन गुरुवार को जारी हुए रिसर्च में इस चलन को और गहराई से समझा और बताया गया है. इससे 2000 प्रजातियों के व्यवहार के बारें में विस्तृत जानकारी मिलती है.
रिसर्च करने वाले विशेषज्ञ कहते हैं कि जंगली जीवन हर दशक में औसतन 40 फुट ऊंचाई की ओर जा रहा है. साइंस पत्रिका में छपी इस रिसर्च में कहा गया है कि जानवरों की ध्रुवों की ओर जाने की रफ्तार एक दशक में 16.6 किलोमीटर है.
पहले के अनुमान से ज्यादा
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ यॉर्क में पढ़ाने वाले क्रिस थॉमस इस रिसर्च के लीडर हैं. वह कहते हैं कि 2003 में वैज्ञानिकों ने जानवरों के जगह बदलने के बारे में जो अनुमान लगाए थे, रफ्तार उनसे दोगुना ज्यादा है. और बदलाव की ऊंचाई अनुमान से तीन गुना ज्यादा है.
हालांकि थॉमस कहते हैं कि सभी प्रजातियां इतनी तेजी से जगह नहीं बदल रही हैं. कुछ प्रजातियां बिल्कुल नहीं चल रही हैं जबकि कुछ अन्य भूमध्य रेखा की ओर भी गई हैं. दरअसल, जानवर अपने वजूद के लिए जरूरी हालात की खोज में हैं.
थॉमस और दूसरे वैज्ञानिकों के मुताबिक इस रिसर्च से एक बात साफ हुई है कि सबसे ज्यादा प्रजातियां उन जगहों से ऊंचाई पर गई हैं जहां मौसम सबसे ज्यादा गर्म हुआ. पिछले 40 साल में मौसम में आए बदलावों का यह सीधा असर है.
थॉमस कहते हैं, "हर प्रजाति अलग अलग चीजों से प्रभावित होती है. जब मौसम बदलेगा तो उन्हें नए आवास पर अलग अलग सुविधाएं मिलेंगी. इनमें से कुछ ऐसी होंगी जिनमें रहना उनके लिए संभव नहीं होगा."
कौन क्या करेगा, पता नहीं
इसका मतलब है कि हर प्रजाति मौसम के गर्म होने पर ठंडी जगहों की ओर नहीं जाती. इसकी वजह तापमान के अलावा पैदा होने वाली अलग अलग चीजें हो सकती हैं मसलन, दबाव. बारिश या इंसान की मौजूदगी. ब्रिटिश तितली इसकी दिलचस्प मिसाल है. अगर मौसम का गर्म होना पंखों पर काली धारियों और चांदी जैसी चित्तियों वाली इस तितली को प्रभावित करने वाला एकमात्र कारक होता तो इसे उत्तर की ओर चले जाना चाहिए था. लेकिन इस प्रजाति ने ऐसा नहीं किया. इसके उलट कोमा तितली मध्य इंग्लैंड से दो दशकों में 220 किलोमीटर दूर एडिनबरा चली गई.
रिसर्च में पता चला कि बोरेना में पतंगे किनाबलू पहाड़ी पर 67 मीटर ऊपर चले गए. यह क्षेत्र 40 साल से संरक्षित है, इसलिए उनका कुदरती आवास बरकरार था.
थॉमस कहते हैं कि अलग अलग प्रजातियों की मौसम के बदलाव पर प्रतिक्रिया अलग अलग है इसलिए यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि कौन सी प्रजाति क्या करेगी. उनके शब्दों में इसका मतलब है, "अगर आप दुनिया को संभालना चाहते हैं और प्रजातियों को बचाना चाहते हैं तो ऐसा लगता है कि आपको बहुत सारी सूचना की जरूरत होगी."
यही वजह है कि थॉमस की साथी और यॉर्क यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वालीं जेन हिल इस रिसर्च को मौसम के बदलाव पर विभिन्न प्रजातियों की प्रक्रिया के बारे में इंसानी जानकारी का सार कहती हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः एन रंजन