नाइजीरिया दहला, धमक पूरी दुनिया में
२७ अगस्त २०११नाइजीरिया जैसे अफ्रीकी देशों में आतंकवादी हमलों को तब तक ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जाता जब तक कि किसी अमेरिकी संस्थान या उससे मिलते जुलते कद के किसी संस्थान पर हमला न हो. वहां कई बड़े हमले हो चुके हैं लेकिन उसकी खबरें राष्ट्रीय स्तर पर हलचल मचाकर खत्म हो जाती हैं. इसीलिए शुक्रवार शाम जब राजधानी अबूजा में संयुक्त राष्ट्र की इमारत में बारूद से भरी वह कार घुसी तो आतंकवादी अच्छी तरह जानते थे कि वे दुनिया भर में हंगामा करने जा रहे हैं.
गंभीर है हमला
अबूजा के इस धमाके में एक दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. यह धमाका सिर्फ एक आतंकवादी हमला नहीं था क्योंकि यूएन की जिस इमारत को निशाना बनाया गया, वह अबूजा के डिप्लोमैटिक जोन में है. अमेरिकी दूतावास के बेहद करीब. इस इलाके में यूएन के और भी कई अहम दफ्तर हैं. इस इलाके में सुरक्षा बेहद कड़ी होती है. यूएन से संबंध न रखने वाली गाड़ियों को तो आम तौर पर यहां आने भी नहीं दिया जाता. इसलिए धमाके के बाद यूएन के एक कर्मचारी ने कहा भी, "बात हाथ से निकल रही है. अगर वे लोग यूएन हाउस तक घुस सकते हैं तो वे कहीं भी कुछ भी कर सकते हैं."
कौन हैं वे लोग
धमाके के फौरन बाद ये कयास लगने शुरू हो गए कि यह किसका काम हो सकता है. सुरक्षा अधिकारियों के जहन में दो नाम फौरन ही आ गए. या तो यह काम अल कायदा की उत्तर अफ्रीकी शाखा के लोगों का हो सकता है जिसे अल कायदा इन इस्लामिक मगरिब यानी एक्यूआईएम कहा जाता है. या फिर इस तरह की हिमाकत नाइजीरिया का इस्लामिक सगंठन बोको हराम कर सकता है. एक सुरक्षा सूत्र ने कहा, "यह हमला इन दोनों में से ही किसी का काम हो सकता है. यह नाइजीरिया में सुरक्षा के कमजोर होते हालात का संकेत देता है. इससे बुरा देश के लिए कुछ नहीं हो सकता था."
कौन है बोको हराम
बोको हराम हौसा भाषा का शब्द है जिसका मतलब है - पश्चिमी शिक्षा पाप है. बोको हराम 2003 के आसपास सक्रिय हुआ एक इस्लामिक संगठन है. इसके गढ़ उत्तरी अफ्रीका में हैं. योबे, कानो, बाऊटी, बोर्नो और कादूना राज्यों में इसकी खासी सक्रियता है. इसकी नीतियां अफगानिस्तान के तालिबान से काफी कुछ मिलती जुलती हैं. जो भी इसकी नीतियों का समर्थक नहीं है, फिर चाहे वह मुसलमान हो या ईसाई, इस संगठन का दुश्मन माना जाता है. यह पूरे देश में इस्लामिक कानून शरिया लागू करने की मांग करता है.
बोको हराम के सदस्य लंबी दाढ़ी रखते हैं. वे सिर पर लाल या काला साफा बांधते हैं. मैदूगुरी, कानो और सोकोतो जैसे कुछ शहरों में तो वे अलग मस्जिदों में नमाज अदा करते हैं.
क्या है समस्या
नाइजीरिया में इसी साल राष्ट्रपति चुनाव हुए हैं. अफ्रीका के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश में इन चुनावों को अब तक के सबसे निष्पक्ष चुनाव माना गया. लेकिन इन चुनावों ने देश की जनता को दो हिस्सों में बांट दिया. एक हिस्सा उत्तरी नाइजीरिया है जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है. और दूसरा हिस्सा दक्षिणी नाइजीरिया है जो ईसाई बहुल है.
दक्षिणी हिस्सा तेल समृद्ध है. और देश की सत्ता एक ईसाई गुडलक जोनाथन के हाथों में है. यह बात उत्तरी हिस्से में रहने वाले कुछ मुसलमानों के गले नहीं उतरती है. अप्रैल में जोनाथन के दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के बाद देश में भयंकर हिंसा हुई थी. तब भी दर्जनों लोगों की मौत हुई और कई चर्च जला दी गईं. उसके बाद भी बोको हराम के हमले लगातार जारी हैं. जून महीने में वहां शुक्रवार जैसा ही हमला हुआ था जब पुलिस मुख्यालय को कार बम से उड़ाने की कोशिश की गई. इस हमले में दो लोगों की जान गई.
बोको हराम के ज्यादातर हमले देश के उत्तर पूर्वी हिस्से में हुए हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि दक्षिण हिस्सा इससे अछूता है. देश के बीचोंबीच स्थित राजधानी अबुजा और नजदीकी शहर सुलेइया में भी कई आतंकी हमले हो चुके हैं.
2009 में बोको हराम ने विद्रोह की कोशिश की जिसे सेना ने बेरहमी से कुचल दिया. इस विद्रोह में सैकड़ों लोगों की जानें गईं. लगभग सालभर चले इस विद्रोह के दौरान कई राजनीतिक हत्याएं हुईं. कई धार्मिक और सामाजिक नेताओं को भी कत्ल कर दिया गया.
परेशानी की बात यह है कि बोको हराम के अल कायदा समेत कई अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों से संबंध बना लिए हैं. इसलिए नाइजीरिया की समस्या अब सिर्फ उस देश की नहीं बल्कि दुनिया की समस्या बन चुकी है.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः ए जमाल