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पगड़ी वाला तूफान

३१ जुलाई २०१५

अब वो 104 साल के हो चुके हैं और अब भी दुनिया के सामने नजीर पेश कर रहे हैं.102 साल की उम्र में मैराथन दौड़ना और उसे पूरा करना, यह कहानी है फौजा सिंह की.

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तस्वीर: Getty Images

104 साल के फौजा सिंह को दुनिया का सबसे उम्रदराज मैराथन धावक कहा जाता है. फौजा सिंह दो साल पहले अचानक सुर्खियों में आए, जब उन्होंने ब्रिटेन और कनाडा में 42 किलोमीटर की मैराथन दौड़ पूरी की. उन्होंने कई युवाओं को पीछे छोड़ दिया. अपने 102वे जन्मदिन से पहले उन्होंने आखिरी बार हॉन्ग कॉन्ग में मैराथन रेस लगाई.

फौजा मानते हैं कि अब उम्र का असर दिखने लगा है.2013 में भारत में अपने पैतृक गांव आए फौजा ने भारतीय अखबार से बातचीत में कहा, "लेकिन मैं इसके बाद भी हर दिन चार घंटे दौड़ लगाता रहूंगा. दौड़ना मेरी जिंदगी है. मैं लोगों को प्रेरित करने के लिए दौड़ता रहूंगा."

टर्बन्ड टोरनैडो (पगड़ी वाला तूफान) के नाम से मशहूर फौजा सिंह ने 89 साल की उम्र में मैराथन दौड़ना शुरू किया. अब तक वह लंदन, टोरंटो और न्यूयॉर्क समेत आठ मैराथन रेसों में हिस्सा ले चुके हैं. ब्रिटेन में उन्हें खासा सम्मान दिया जाता है. बीते साल लंदन ओलंपिक में उन्हें मशाल थामने का न्योता दिया गया. 101 साल की उम्र के बावजूद लंदन मैराथन में वह पांचवें स्थान पर रहे. 42 किलोमीटर की दौड़ उन्होंने सात घंटे 49 मिनट में नापी.

Fauja Singh, Marathonläufer
रोज कसरत करते हैं फौजा सिंहतस्वीर: dapd

एक अप्रैल 1911 को जन्मे फौजा कहते हैं कि उन्हें अभी भी कोई बीमारी नहीं हैं. कभी कभार सेहत गड़बड़ा भी जाए तो वह कोई दवा नहीं खाते. जबरदस्त फिटनेस का राज पूछने पर वह कहते हैं, "मेरी अच्छी सेहत का कारण यह है कि मैं हर दिन कसरत करता हूं और संयमित ढंग से खाना खाता हूं. असल में मैं खाना बहुत कम खाता हूं और खुशियां ज्यादा लेता हूं." फौजा भले ही ब्रिटेन में रहे हों लेकिन खाना पंजाबी ही खाते हैं. फुल्का, दाल, हरी सब्जी, दही और दूध, यही उनका खाना है.

युवाओं को सलाह देते हुए फौजा दादा कहते हैं, "इन दिनों लोग जिम जाने में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि अगर वे रोज खुद ही करें तो वे शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बने रह सकते हैं. नियमित व्यायाम हर तरह की बीमारियों से दूर रखता है."

जालंधर के एक गांव में पैदा हुए फौजा को दौड़ना बचपन से पसंद था लेकिन 1947 में भारत-पाकिस्तान के विभाजन की मार के चलते उन्होंने दौड़ना छोड़ दिया. सारा वक्त परिवार पालने और खेती में गुजरने लगा. 1990 के दशक में फौजा ने कई हादसे देखे. पत्नी, बेटे और बेटी की मौत से उन्हें हिला कर रख दिया. इन सदमों से उबरने के लिए उन्होंने दौड़ का सहारा लिया. धीरे धीरे वह सदमों से भी बाहर आए और दुनिया को जीने का जज्बा भी सिखाने लगे.

ओएसजे/एजेए (एएफपी)

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