जिंदगी के असली फौजी, 100 साल के फौजा सिंह
१८ अक्टूबर २०११सर्दियों में खूब कपड़े पहने, लाठी उठाई और धूप सेकते हुए घूमने लगे. कुछ देर बाद थके फिर एक जगह बैठे और बीते दिनों को याद किया. खांसते हुए कुछ किस्से कहानियां सुनाईं. अच्छे पलों का जिक्र कर मुस्कुराए, खराब अनुभवों को दार्शनिक अंदाज में जिंदगी का हिस्सा बताया. फिर कहा ये तो संसार है, यह सब तो यहां लगा रहता है.
यह बुजुर्गों का खास अंदाज है. लेकिन ऐसा नहीं कि सारे बुजुर्ग ऐसे ही होते हैं, खास कर 100 साल के फौजा सिंह तो ऐसे कतई नहीं हैं. ब्रिटेन में रह रहे भारतीय मूल के सिख फौजा सिंह इस वक्त अंतरराष्ट्रीय मंच पर सुर्खियां बटोर रहे हैं. टोरंटो मैराथन में फौजा सिंह ने हिस्सा लिया और आठ घंटे तक दौड़ते हुए 42 किलोमीटर लंबी रेस पूरी की. उन्होंने वर्ल्ड रिकॉर्ड रच दिया है.
जिंदगी के असली फौजी..फौजा सिंह
अपने कोच के साथ टोरंटो पहुंचे फौजा सिंह रेस के बाद काफी उत्साहित दिखे. वह रेस जीतने वाले 38 साल के केन्याई धावक केनथ मुनगारा से दो घंटे पीछे रहे. फौजा कहते हैं कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि वह इतनी जल्दी दौड़ पूरी कर लेंगे. कई साल से ब्रिटेन में रह रहे फौजा अब भी पंजाबी बोलते हैं. अंतरराष्ट्रीय मीडिया के लिए अनुवादक का काम फौजा के कोच हरमिंदर सिंह ने किया. हरमिंदर ने कहा, "वह पूरे जज्बे के साथ रेस पूरी करने के लिए उतरे. उनके लिए चुनौती रेस पूरी करने की थी."
फौजा फेसबुक पर लोगों के स्टार बन गए हैं. सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर फौजा सिंह के बारे में 17,000 कमेंट आए. लोगों ने लिखा, "ईश्वर आपको अगले कई साल तक स्वस्थ और सक्रिय जिंदगी दे."
"फौजा सिंह बधाई, आप प्रेरणास्त्रोत हैं." टोरंटो के एक अखबार ने उन्हें "टर्बन्ड टोरनाडो" कहा.
जहां चाह, वहां राह
फौजा सिंह की जिंदगी वाकई जज्बे का नाम है. उनकी आत्मकथा ब्रिटेन में सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में से एक है. आत्मकथा में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का टेलीग्राम भी है. जालंधर पठानकोट रोड में पड़ने वाले बायस गांव में पैदा हुए फौजा सिंह परिवार के सबसे छोटे बेटे थे. उनका शरीर काफी कमजोर था. ठीक से चलना सीखने में ही फौजा को पांच साल लग गए. गरीब माता पिता को लगा कि यह बच्चा जिंदगी में ज्यादा कुछ नहीं कर सकेगा. 15 साल की उम्र तक भी फौजा के लिए चलना फिरना एक चुनौती रहा. वह बड़ी मुश्किल से डेढ़ किलोमीटर चल पाते थे.
बचपन को याद करते हुए फौजा खुद कहते हैं, "मेरे पैर इतने कमजोर थे कि मैं एक मील भी नहीं चल सकता था. ये किस्मत थी जिसने मुझे कई सालों तक रोका था." बाद में फौजा सिंह परिवार के साथ ब्रिटेन आ गए. लेकिन 89 साल की उम्र में एक हादसे में उनकी पत्नी और बच्चे की मौत हो गई. इससे उबरने के लिए फौजा सिंह ने दौड़ना शुरू किया. "मैंने महसूस किया कि दौड़ने की वजह से मेरा तनाव कम हुआ. दौड़ने की आदत और जिद मुझे गमों के पहाड़ से बाहर निकाल लाई."
इसी साल 11 अप्रैल को उम्र का 100वां बसंत देखने वाले फौजा अब लंदन ओलंपिक्स 2012 के लिए तैयार हैं. उन्हें उम्मीद है कि वह मशाल लेकर दौड़ेंगे और पूरी दुनिया तक इंसानी जज्बे का संदेश पहुंचाएंगे.
रिपोर्ट: पीटीआई, एएफपी/ ओ सिंह
संपादन: ए कुमार