बिना मंजूरी के काम करती रही एलजी पॉलीमर्स
१३ मई २०२०एलजी पॉलीमर्स के पास केंद्र सरकार की तरफ से संचालन की मंजूरी नहीं थी और इसे सिर्फ राज्य सरकार की तरफ से संचालन की अनुमति थी. यह देश के कानून में मौजूद कमियों को उजागर करता है. एलजी पॉलीमर्स की मालिक दक्षिण कोरिया की एलजी केम ने मई 2019 के हलफनामे में, जो कि मंजूरी का हिस्सा था, कहा था कि कंपनी के पास जरूरी पर्यावरण मंजूरी नहीं है. हलफनामा इस बात की पुष्टि करता है कि उत्पादन की मात्रा कितनी है, संचालन जारी रखने के लिए कंपनी के पास सर्टिफिकेट भी नहीं है.
एलजी केम के प्रवक्ता चोई सांग-क्यू ने समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस से कहा कि कंपनी ने हमेशा से ही भारतीय कानून का पालन किया है और केंद्र-राज्य सरकार के अधिकारियों के मार्गदर्शन के आधार पर संयंत्र का संचालन किया है. उन्होंने कहा कि हलफनामा भविष्य में कानून का अनुपालन करने को लेकर था और वह किसी भी जरूरी नियमों के उल्लंघन को लेकर नहीं था. अधिकारियों और कानून के जानकारों से बात करने पर इस बात की ओर इशारा मिलता है कि प्लांट कानूनी रूप से ग्रे एरिया में काम कर रहा था.
केंद्र के नियमों के मुताबिक पर्यावरण मंजूरी तो संचालन के लिए जरूरी है लेकिन उसे लागू कराने की जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़ दी जाती है. विशेषज्ञ देश के कमजोर पर्यावरण कानून की तरफ भी इशारा करते हैं. पर्यावरण मामलों के वकील महेश चंद्र मेहता कहते हैं, "कई इंडस्ट्री हैं जो बिना किसी पर्यावरण मंजूरी के काम कर रही हैं." हादसे के बाद एलजी पॉलीमर्स प्लांट पर भी गंभीर आरोप लग रहे हैं. स्टाइरीन गैस लीक होने के बाद हजारों लोग अस्पताल में भर्ती हुए और 12 लोगों की जान चली गई.
पुलिस ने एलजी पॉलीमर्स के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है, जिसमें जहरीले पदार्थ को संभालने में लापरवाही भी शामिल है. दूसरी ओर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भी कंपनी से 50 करोड़ की अंतरिम राशि देने को कहा है. इसके अलावा एनजीटी ने इस घटना की जांच करने के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है. समिति को 18 मई से पहले रिपोर्ट पेश करनी है. इस कंपनी की स्थापना "हिंदुस्तान पॉलीमर्स" के नाम से 1961 में हुई थी. 1978 में इसका उद्योगपति विजय माल्या के पिता विट्टल माल्या के यूबी ग्रुप की मैक डोवेल कंपनी में विलय हो गया.
दक्षिण कोरिया की कंपनी एलजी केमिकल ने 1997 में इसे खरीद लिया और इसका नाम बदल कर एल जी पॉलीमर्स रख दिया. मई 2019 के हलफनामे के मुताबिक एलजी केम ने एलजी पॉलीमर्स में 2006 और 2018 के बीच पांच बार संचालन का विस्तार किया लेकिन उसे पर्यावरण मंजूरी नहीं मिली. चोई का कहना है कि 2006 में केंद्रीय कानून बदल गया और कंपनी ने मंत्रालय से इस बारे में परामर्श किया और उसे बताया गया कि कोई पर्यावरण मंजूरी की जरूरत नहीं है. चोई के मुताबिक, "पर्यावरण मंजूरी पर कानून बनने के पहले ही हम पर्यावरण नियमों का पालन करते हुए कंपनी का संचालन करते रहे हैं."
पर्यावरण सचिव सीके मिश्रा ने समाचार एजेंसी एपी से कहा कि एलजी पॉलीमर्स को 2006 में मंजूरी की जरूरत नहीं हुई होगी लेकिन उन्हें आगे क्षमता विस्तार और उत्पादन में बदलाव के बाद पर्यावरण मंजूरी के लिए आवेदन करना चाहिए था. ऐसा प्रतीत होता है कि 2017 तक एलजी पॉलीमर्स से केंद्रीय मंजूरी के बारे में नहीं पूछा गया. उस वक्त कंपनी आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास अपने संयंत्र में इंजीनियरिंग प्लास्टिक के उत्पादन की मंजूरी को लेकर गई थी. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कंपनी की गुजारिश को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि उसे केंद्र सरकार से इसके लिए मंजूरी लेनी पड़ेगी.
2018 में जब एलजी पॉलीमर्स पॉलीस्टरीन के उत्पादन विस्तार को लेकर मंजूरी के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के पास पहुंची तो मंत्रालय ने आवेदन को रिव्यू के लिए रोक लिया. मंत्रालय ने पाया कि कंपनी जिस केमिकल का उत्पादन कर रही है उसके लिए मंजूरी ही नहीं है. उसके बाद एलजी पॉलीमर्स ने आवेदन वापस ले लिया और उसके बाद कंपनी ने पूर्वव्यापी मंजूरी के लिए आवेदन किया जिसे मंत्रालय ने 2018 में कंपनियों के लिए पेश किया था. हालांकि वह आवेदन गैस लीक हादसे के वक्त तक लंबित था.
एए/सीके (एपी)
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