पाकिस्तान के हलक में अटका 'हक्कानी'
१७ अप्रैल २०१२अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने सख्त लहजे में हक्कानी गुट को हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया है. क्लिंटन के मुताबिक, हमलों के पीछे "हक्कानी गुट के होने के संकेत मिल चुके हैं. हक्कानी बहुत कट्टर दुश्मन है."
ब्राजील पहुंची अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि पाकिस्तान को हक्कानी गुट पर कार्रवाई करनी ही होगी. अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा, हम पाकिस्तान पर ''कार्रवाई करने के लिए दवाब बढ़ाते रहेगें.'' क्लिंटन ने ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया से सीधे पाकिस्तानी विदेश मंत्री हिना रब्बानी खर को फोन लगाया और नाराजगी का इजहार किया.
अमेरिकी खुफिया एजेंसी के पूर्व प्रमुख और अमेरिका के रक्षा मंत्री लियोन पैनेटा ने भी हमलों के लिए हक्कानी गुट को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. पैनेटा ने कहा, "खुफिया संकेत इशारा कर रहे हैं कि हमलों के पीछे हक्कानी गुट है. हमलों से कोई रणनीतिक लाभ नहीं मिला. लेकिन ऐसे हमले सांकेतिक होते हैं. इनके पीछे इलाका हासिल करने का मकसद नहीं होता. हो सकता है कि हमले इसलिए किए गए ताकि अमेरिका और नाटो को यह बताया जा सके कि अफगानिस्तान में उनका अपना आधार है. वह अब भी अफगानिस्तान में सक्रिय हैं."
रविवार को अफगानिस्तान के तीन प्रांतों में आतंकवादियों ने योजनाबद्ध हमले किए. हमले काबुल और पूर्व के तीन राज्यों में किए गए. हमलों से ऐसी अफरातफरी मची कि अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई को सुरक्षित जगह पर पहुंचाना पड़ा. 18 घंटों तक चली मुठभेड़ में 36 आतंकवादी, तीन नागरिक और आठ सैनिक मारे गए. अमेरिकी अधिकारियों ने अफगान बलों के शौर्य की तारीफ की है.
वहीं अफगान राष्ट्रपति ने हमलों के लिए नाटो की विफलता को जिम्मेदार ठहराया है. करजई के मुताबिक नाटो की खुफिया विफलता की वजह से इतने बड़े पैमाने पर हमले हुए. करजई ने कहा, "तथ्य यह है कि आतंकवादी काबुल और दूसरे राज्यों में घुसने में सफल हुए. यह हमारे लिए और खासतौर पर नाटो के लिए खुफिया विफलता की बात है."
इन हमलों से साफ हो गया है कि आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका और पश्चिमी देशों की लंबी लड़ाई के बावजूद अफगानिस्तान में आतंकवादी व्यापक पैमाने पर सक्रिय है. अफगान धरती से निकलने की तैयारी कर रहे पश्चिमी देश ताजा हमले से झल्ला गए हैं. अगर हमलों के पीछे हक्कानी गुट के होने के स्पष्ट सबूत मिल गए तो पाकिस्तान की मुश्किलें निश्चित रूप से बढ़ेंगी. अमेरिका और पाकिस्तान के संबंध पहले ही खराब चल रहे हैं. ऐसे में हक्कानी गुट अमेरिकी गुस्से में उबाल ला सकता है.
अमेरिका समेत पश्चिमी देशों की सेनाएं 2014 के अंत तक अफगानिस्तान से निकलना चाहती हैं. ऑस्ट्रेलिया ने साफ कर दिया है कि वह समय से पहले यानी 2013 के अंत तक अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुला लेगा. मंगलवार को ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड ने इस बात की जानकारी दी. गिलार्ड पर अफगानिस्तान से सेना वापस बुलाने के लिए दबाव बढ़ रहा था. वहां अगले साल चुनाव होने हैं. चुनाव का सामना कर रहे फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोला सारकोजी भी 2013 तक सेना की वापसी का एलान कर चुके हैं. अफगानिस्तान में इस वक्त 90,000 अमेरिकी सैनिक, 5,000 जर्मन, 3,600 फ्रांसीसी, 9,500 ब्रिटिश और 1,550 ऑस्ट्रेलियाई सैनिक तैनात हैं.
ओएसजे/एनआर (एएफपी, रॉयटर्स)