पारे से बढ़ती समलैंगिकता
१ दिसम्बर २०१०इस प्रयोग से पता चला कि पूरे झुंड की वृद्धि पर भारी असर पड़ा क्योंकि समलैंगिक जोड़ों की वजह से कोई अंडे नहीं बन रहे थे. साथ ही जो सामान्य जोड़े थे, वे भी कम अंडे बना सके और अपने बच्चों की देखभाल भी ठीक से नहीं कर पाए.
फ्लोरिडा की गेंसविल विश्वविद्यालय के प्रयोग में रिसर्च करने वाले पीटर फ्रैंडरिक और निमिनी जयसेना ने तीन साल तक इन सारसों पर प्रयोग किए. सारसों को पकड़ कर एक बड़ी बंद जगह में रखा गया और उन्हें पारा मिश्रित खाना दिया गया. लेकिन पारे की मात्रा उतनी ही रखी गई जो कई जगह सामान्य तौर पर पाई जाती है. इन प्रयोगों के लिए सारसों के तीन झुंड़ बनाए गए जबकि चौथे चौथे झुंड़ को बिना किसी मिलावट के सामान्य खाना दिया गया. चौथे झुंड में खास तौर से देखा गया कि कोई पक्षी समलैंगिक नहीं है जबकि पहले तीन झुंड़ों में 55 प्रतिशत जोड़े समलैंगिक हो गए.
प्रयोग में यह भी देखने को मिला कि जब पक्षी मिलन के लिए अपने साथियों के चुन रहे थे, तो उनका व्यवहार पूरी तरह बदल गया. खास कर बहुत सी मादा सारसें नर सारसों के पास गई ही नहीं, क्योंकि उन्हें किसी तरह का आकर्षण महसूस नहीं हुआ. असल में मिलन के लिए मादा पक्षी उसी नर पक्षी की तरफ ज्यादा आकर्षित होती हैं जो खुद को आक्रामक तरीके से पेश करता है. लेकिन शुरुआती तीन झुड़ों के बहुत से नर पक्षियों में वह आक्रामकता खत्म हो गई.
औद्योगिकीकरण के कारण मछलियों में पारे की मात्रा बढ़ रही है जो खासी चिंताजनक बात है. असल में मछलियां खाद्य श्रंखला की अहम कड़ी हैं जिन्हें सारस जैसे पक्षियों के अलावा मनुष्य भी खाते हैं. पारे की वजह से नाड़ी तंत्र और हार्मोंस के संतुलन को नुकसान होता है. यदि प्रकृति में पारे की मात्रा बढ़ती गई, तो कई प्रजातियों और अंततः मनुष्य के अस्तित्व पर भी सवल खड़े होने लगेंगे.
रिपोर्टः एजेंसियां/प्रिया एसेलबोर्न
संपादनः ए कुमार