पुरानी धारणाओं में जकड़े जापानी भूकंप विज्ञानी
१४ अप्रैल २०११विज्ञान पत्रिका नेचर में रॉबर्ट गेलर लिखते हैं कि जापान के वैज्ञानिकों के मन में यही धारणा घर किए हुए हैं कि देश के दक्षिणी तट पर बड़े भूकंप का खतरा है. इसीलिए पूर्वोत्तर हिस्से में 11 मार्च को आए भूकंप के जोखिम पर उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. इस प्राकृतिक आपदा में 26,500 लोग या तो मारे गए या लापता हुए.
टोक्यो यूनिवर्सिटी में भूकंप विज्ञान के प्रोफेसर गेलर कहते हैं कि जापान में यह धारणा बहुत मजबूत है कि होंशू और शिकोकू तट पर जबरदस्त भूकंप का खतरा है. सरकार ने तोकाई, तोनानकाई और नानकाई को भूकंप क्षेत्र बताते हुए उनके विशेष नक्शे तैयार कराए हैं. इस बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिए खास सरकारी मुहिम भी चलाई जाती है. लेकिन गेलर कहते हैं कि ये नक्शे ऐसे दो सिद्धांतों के आधार पर तैयार किए गए हैं जो 1960 और 1970 के दशक में प्रचलित थे और जिनके समर्थन में कोई प्रमाण नहीं मिले हैं.
गेलर बताते हैं कि जिन तीन इलाकों को सरकार सबसे खतरे वाले क्षेत्र बताती है वहां 1975 से कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है. 1979 से दस या उससे ज्यादा लोगों की जान लेने वाले सभी भूकंप उन इलाकों में आए हैं जिन्हें सरकार कम खतरे वाली जगह मानती है. वह कहते हैं कि अगर जापानी वैज्ञानिक पुराने रिकॉर्ड उठा कर देखें तो पता चलेगा कि कई सदियों से भूकंप से पैदा होने वाली सूनामी बार बार पूर्वोत्तर जापान में आई हैं.
गेलर मानते हैं कि भूकंप के वक्त और जगह को निर्धारित नहीं किया जा सकता, लेकिन अगर जोखिम का सही से अंदाजा किया जाता तो इससे फुकुशिमा परमाणु संयंत्र के बेहतर डिजाइन में मदद मिल सकती थी. इस संयंत्र में 11 मार्च की आपदा के बाद परमाणु संकट पैदा हो गया है. गेलर कहते हैं, "समय आ गया है, जब लोगों को बताया जाना चाहिए कि भूकंप की भविष्यवाणी नहीं हो सकती. इसलिए भूकंप की भविष्यवाणी की तोकाई प्रणाली को खत्म किया जाए. पूरे जापान को भूकंप से खतरा है और मौजूदा भूकंप विज्ञान इस बात की अनुमति नहीं देता कि हम पूरे विश्वास से कह सकें किस इलाके में कितना खतरा है."
रिपोर्टः एएफपी/ए कुमार
संपादनः एन रंजन