सूनामी के खतरे की जानकारी थी जापान को
३० मार्च २०११पिछले दो हफ्तों से जापान की सरकार और संयंत्र चलाने वाली कंपनी टेपको के अधिकारियों ने इसे कुदरत का एक ऐसा करिश्मा बताया है जो कल्पना से परे है. टेपको के निदेशक मसाताका शिमजू ने जापान के लोगों से माफी मांगते हुए कहा कि प्रकृति ने एक ऐसी अनोखी चाल चली जिसे हमने पहले कभी अनुभव नहीं किया था. लेकिन कंपनी के रिकॉर्ड्स में ऐसी रिपोर्ट मौजूद है जिससे पता चलता है कि कंपनी ने खतरे की पूरी जानकारी होते हुए भी उस से निपटने के लिए कुछ नहीं किया.
2007 में आई रिपोर्ट
2007 में टेपको के उच्च सुरक्षा अधिकारियों द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई थी कि 50 सालों के भीतर सूनामी से संयंत्र को बड़ा खतरा हो सकता है और 10 प्रतिशत संभावना इस बात की है कि संयंत्र सूनामी का सामना नहीं कर पाएगा. इस अध्ययन को 2007 में अमेरिका के मायामी में एक कॉन्फ्रेंस में भी प्रस्तुत किया गया था. रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद भी संयंत्र की सुरक्षा बढ़ाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए.
इसके अलावा जापान की परमाणु और औद्योगिक सुरक्षा एजेंसी नीसा ने भी संयंत्र में एक पुराने भूकंप के कारण खराबियां देखी थीं, लेकिन इसके बावजूद नीसा की तरफ से संयंत्र को और ठोस बनाने और भविष्य में भूकंप या धमाकों से बचाने के सिलसिले में कोई पहल नहीं देखी गई. टोक्यो यूनिवर्सिटी के हिदेआकी शिरोयामा कहते हैं कि इस समय सरकार और टेपको अधिकारी दोनों ही घटना के लिए जिम्मेदारी लेने से बच रहे हैं. चेर्नोबिल कांड की जांच कर चुके दक्षिणी केलिफोर्निया की यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर नाजमेदीन मेशकती कहते हैं कि जापान की सरकार ने सब कुछ टेपको पर ही छोड़ा हुआ था और यह गलत है. उन्होंने कहा, "सरकार को सलाह मिल रही है, लेकिन वे तो केवल टेपको पर ही निर्भर कर रहे हैं, जिसकी प्रतिष्ठा पर पहले से ही उंगलियां उठ रही हैं."
टेपको पर पहले से ही सुरक्षा में लापरवाही बरतने के इल्जाम लगते आए हैं. 2008 में सुरक्षा जांच के समय टेपको ने एक 17 साल के मजदूर को गैरकानूनी रूप से काम पर रख लिया था.
फुकुशिमा के लिए खतरा सब से ज्यादा
मायामी में प्रस्तुत की गई टेपको की रिपोर्ट में 2004 में सुमात्रा के तट पर आए भूकंप को ध्यान में रखते हुए यह जांच की गई कि जापान के संयंत्र कितने सुरक्षित हैं. उस समय भारतीय महासागर में सूनामी के आने से दक्षिणी भारत में एक परमाणु संयंत्र पर खतरा बना हुआ था. इसी के बाद जापान ने अपने 55 संयंत्रों पर चिंता जताई. अध्ययन में पता चला कि सब से अधिक खतरा फुकुशिमा दायची के लिए है क्योंकि वह ऐसी जगह है जहां पिछले 400 सालों में चार बार आठ या आठ से अधिक स्तर वाले भूकंप आए हैं. इनमें से सब से नया 1896 में आया. इससे पहले 1793, 1677 और 1611 में बड़े भूकंप आए थे.
टेपको के उच्च सुरक्षा अधिकारी तोशियाकी सकाई के नेतृत्व में बनी इस रिपोर्ट में इन सब बातों को ध्यान में रखा गया और इन्हें देखते हुए इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश की गई कि यदि भूकंप के कारण सूनामी आता है तो उस से फुकुशिमा को कितना खतरा है और क्या फुकुशिमा की छह मीटर की दीवार उसे रोकने में कामयाब हो पाएगी. 11 मार्च को आई सूनामी की लहर 14 मीटर ऊंची थी. यदि संयंत्र के आसपास की दीवार की ऊंचाई बढ़ाई गई होती तो नुकसान कम होता.
इन लापरवाहियों के बाद भी दिसंबर 2010 में जापान के परमाणु सुरक्षा कमिशन ने कहा कि फुकुशिमा में किसी भी तरह की दुर्घटना का खतरा न के बराबर है और इसीलिए वहां कोई बदलाव करने की जरूरत नहीं है.
रिपोर्ट: रॉयटर्स/ईशा भाटिया
संपादन: वी कुमार