प्रकृति की सीख से बन रही हैं मशीनें
९ नवम्बर २०१२शिकार करने या किसी दूसरे जानवर का निवाला बनने से बचने के लिए छिपकलियां अपनी पूंछ अलग कर लेती है. लेकिन उसमें एक और जबरदस्त खूबी भी होती है. छिपकलियों की 1,500 प्रजातियां हर तरह की सतह पर सरपट दौड़ती हैं. वे फिसलन वाली खड़ी चढ़ाई पर भी चढ़ सकती हैं, नीचे उतर सकती हैं. दाएं-बाएं मुड़ सकती हैं. इसका राज छिपा है उनके खास पंजों में. जर्मनी की कील यूनिवर्सिटी में छिपकली के पंजों की नकल कर मशीनें बनाने पर काम हो रहा है.
इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से पंजों की तस्वीरें देखने से पता चलता है कि छिपकलियों के पंजे में लाखों बारीक बाल होते हैं. और हर बाल के सिरे पर हजारों चिपचिपे पतवारनुमा मुंह होते हैं. ये मुंह एक मीटर के 200अरबवें हिस्से जितने छोटे होते हैं. यही सिरे पंजे को पूरी ताकत के साथ हर सतह पर चिपका देते हैं. छिपकलियां अपनी इच्छा से पंजे के बालों को सतह से चिपकाती और हटाती हैं.
पंजों के गुणों पर काम कर रहे कील यूनिवर्सिटी के स्तानिस्लाव गोर्ब कहते हैं, "हम जानना चाहते हैं कि किस तरह की सतह पर यह चिपकने का गुण काम करता है और कहां फेल हो जाता है." मजेदार बात यह है कि अगर छिपकली पर ज्यादा वजन भी लाद दिया जाए तो भी वह नहीं गिरती. भले ही सतह चिकनी हो या खुरदरी. वे अपने पंजों को उसपर जमा लेती है.
इस गुण से प्रभावित होकर गेको या छिपकली टेप बनाया गया है. यह छिपकली के पंजे के गुणों से लैस है और उसी की तरह काम भी करता है. मामूली दिखने वाला यह टेप बड़ी आसानी से हथौड़ी का वजन सह लेता है और दीवार पर चिपका रहता है. इसे धोकर दोबारा इस्तेमाल भी किया जा सकता है.
कंप्यूटर से हर बारीकी को ध्यान में रखा गया है. इलमेनाऊ यूनिवर्सिटी के हार्टमुट विटे कहते हैं, "यह सफेद गेको टेप है. यह असल में गेको यानी छिपकिली जैसा नहीं दिखता है. असल बायोनिक्स का मतलब यह नहीं कि यह छिपकिली के रंग जैसा यानी हरा हो या अपने असल रूप की तरह दिखे. यह उनके सिद्धांतों को लेने जैसा है."
इलमेनाऊ यूनिवर्सिटी में बायोमेट्रिक रोबोट बन रहे हैं. इस रोबोट को रिमोट कंट्रोल से तिरछी सतह पर चलाया जा रहा है और इसके लिए गेको टेप का इस्तेमाल किया गया है. छत पर लगे सोलर पैनलों की सफाई करना इंसान के लिए जोखिम भरा रहता है. यह काम रोबोट बड़ी आसानी से कर सकते हैं.
रोबोट क्लीनर की वर्तमान पीढ़ी फिलहाल झटकों के साथ चलती है, लेकिन वैज्ञानिक इस पर काम कर रहे हैं. कोशिश है कि इसे छिपकिली की तरह कहीं भी चला दिया जाए पर इसमें अभी वक्त लगेगा. उम्मीद है कि अगली पीढ़ी के रोबोट गेको टेप से चलेंगे और सोलर पैनल को नुकसान पहुंचाए बिना काम करेंगे.
ऐसी मशीनें भले ही भविष्य का सपना हों, लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी में काम आने वाला आम सा गोंद भी कुदरत के सिद्धांतों से प्रेरणा ले कर ही बनाया गया है. प्रकृति से प्रेरणा लेकर उपकरण बनाने की इस मिसाल के बारे में आप एक रिपोर्ट डीडब्ल्यू के मंथन कार्यक्रम में देख सकते हैं जो शनिवार को दूरदर्शन के डीडी-वन चैनल पर प्रसारित किया जाएगा.
इसके अलावा विज्ञान और तकनीक के कार्यक्रम में अंटार्कटिक पर रहने वाले जीव जंतुओं की जानकारी है, जर्मनी में वैकल्पिक ऊर्जा के लिए पवन चक्कियों के इस्तेमाल और उसमें आम नागरिकों के निवेश पर भी रिपोर्ट है.
आईबी/ओएसजे