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फाइनल के टिकट डकार गई बीसीसीआई

२१ फ़रवरी २०११

स्टेडियम में जाकर क्रिकेट वर्ल्ड कप का फाइनल देखने की चाहत रखने वालों को भारतीय क्रिकेट बोर्ड के इंतजामों ने निराश किया है. दर्शकों के लिए सिर्फ 4,000 टिकट बचे हैं, ज्यादातर सीटें बोर्ड ने अपने चाहने वालों में बांट दी है

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आम आदमी को टिकट नहींतस्वीर: AP

बीसीसीआई के अधिकारी और वर्ल्ड कप के डायरेक्टर रत्नाकर शेट्टी कहना है कि 20,000 टिकट मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन से जुड़े क्लबों को दे दिए गए हैं, जबकि 8,500 टिकट आईसीसी को देने पड़े हैं. बीसीसीआई की इस सेटिंग का खामियाजा सीधे तौर पर आम क्रिकेट प्रेमियों को होने जा रहा है.

33,000 दर्शकों की क्षमता वाले मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में अब आम दर्शकों के लिए सिर्फ 4,000 सीटें ही बची हैं. इन टिकटों के लिए भी मारा मारी होनी तय है. एक प्रशंसक ने क्रिकेट वेबसाइट क्रिक इंफो पर लिखा, ''यह घिनौनी हरकत है. सिर्फ 4,000 टिकट. यह खराब प्रबंधन है.''

एक अन्य क्रिकेट प्रेमी ने कहा, ''स्टेडियम में जाकर अगर सिर्फ 4,000 लोग ही फाइनल देख पाएंगे तो भारत में फाइनल कराने का मतलब ही क्या है.''

क्रिकेट के नाम पर पैसे की चाशनी चाटने के लिए मशहूर भारतीय क्रिकेट बोर्ड पर आर्थिक हितों के लिए बदइंतजामी करने के आरोप पहली बार नहीं लग हे हैं. आईपीएल घपले के बाद अब वर्ल्ड कप में इसकी दुर्गंध आ रही है. रत्नाकर शेट्टी आरोपों के आगे खुद को लाचार बताते हैं. वह कहते हैं कि करार की शर्तों की वजह से उनके हाथ बंधे हैं. उनका मानना है कि क्लबों को दिए गए 20,000 टिकट जनता के लिए ही है. शेट्टी के मुताबिक यह टिकट किसी न किसी तरह लोगों तक पहुंच ही जाएंगे.

यानी टिकट आम नहीं बल्कि खास लोगों के लिए हैं क्योंकि समाज का एक चुनिंदा धनी तबका ही क्लबों का सदस्य होता है. ऐसे में जाहिर है टिकट उसी तबके तक पहुंचेंगे. आईसीसी भी इसे कुप्रबंधन नहीं मान रही है. आईसीसी के चीफ एक्जीक्यूटिव हारून लोगार्ट कहते हैं, ''किसी भी तरह से हर किसी की मांग को पूरा करना नामुमकिन है.''

मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम की क्षमता पहले 38,000 थी. लेकिन पुर्ननिर्माण के बाद स्टेडियम की क्षमता घटकर 33,000 रह गई है. इन 33,000 लोगों के लिए स्टेडियम में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं है. स्टेडियम को अभी तक मुंबई फायर ब्रिग्रेड की हरी झंडी नहीं मिली है. इसके जवाब में शेट्टी कहते हैं, "हम सब कर ठीक लेंगे." यानी न तो जनता के लिए टिकट हैं, न जरूरी तैयारियां. हैं तो सिर्फ बीसीसीआई की मोटी मोटी जेबें, जिसमें क्रिकेट के नाम पर अथाह पैसा समाता जाता है.

रिपोर्ट: एएफपी/ओ सिंह

संपादन: ए कुमार

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