फुटबॉल मैदान में मिले कोलकाता और म्युनिख
१७ नवम्बर २०१०इस तालमेल में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है. आखिर एक जर्मन फुटबाल लीग बुंडेसलीगा की चैंपियन है तो दूसरे को भारत में फुटबाल का मक्का कहा जाता है. जी हां, यहां बात जर्मन टीम एफसी बायर्न म्युनिख और कोलकाता की हो रही है. भारत के पूर्वी हिस्से में फुटबाल को बढ़ावा देने के लिए यह जर्मन टीम बीते तीन वर्षों से प्रदर्शनी मैच खेलने के लिए हर साल कोलकाता आ रही है. आज भी पाल ब्राइटनर, राइमोंड आउमान, और हांस फ्लूएगलर जैसे विश्वकप सितारों से सजी इस क्लब की एक ऑल स्टार टीम कोलकाता में ईस्ट बंगाल क्लब की ऑल स्टार टीम के साथ एक प्रदर्शनी मैच खेलेगी. फुटबाल के प्रति कोलकाता का लगाव मशहूर है. इसलिए हर साल इस जर्मन टीम के दौरे के समय पूरा शहर ही नहीं, आसपास का इलाका भी फुटबाल के बुखार में तपने लगता है. दो साल पहले इस टीम के साथ जर्मन गोलकीपर ओलिवर कान के दौरे के समय तो कोलकाता ही नहीं, पूरे बंगाल में फुटबाल का जुनून चढ़ गया था. इस साल टीम के 22 सदस्य यहां आए हैं.
इस जर्मन टीम और कोलकाता का रिश्ता धीरे-धीरे प्रगाढ़ हो रहा है. टीम यहां से उभरते और प्रतिभावान खिलाड़ियों को चुन कर अपने साथ प्रशिक्षण देने के लिए जर्मनी बुलाती है. बीते साल जिन छह लड़कों को चुना गया था, वे हाल ही में जर्मनी से प्रशिक्षण लेकर लौटे हैं. उनसे पहले वर्ष 2008 में भी बंगाल के पांच फुटबालरों को जर्मनी में प्रशिक्षण दिया गया था. पश्चिम बंगाल सरकार, राज्य पुलिस और बायर्न के बीच एक करार के तहत राज्य के नक्सल-प्रभावित इलाकों से भी उभरते फुटबालरों को चुन कर प्रशिक्षण के लिए जर्मनी भेजा जाता है. वह भी बिल्कुल मुफ्त. इसका पूरा खर्च राज्य पुलिस उठाती है.मंगलवार को इस टीम के सदस्यों ने कोलकाता में एक फुटबाल क्लीनिक में छह और उभरते खिलाड़ियों का प्रशिक्षण के लिए चयन किया. वे अगले साल अगस्त में जर्मनी जाएंगे.
आज के मैच से होने वाली आय बेसहारा फुटपाथी बच्चों के हितों में काम करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन टूवार्ड्स लाइफ फाउंडेशन को सौंपी जाएगी. वर्ष 1974 की जर्मन विश्वकप विजेता टीम के सदस्य पाल ब्राइटनर कहते हैं कि वह इस नेक काम में शिरकत कर बेहद प्रसन्न हैं. कोलकाता में जर्मन वाइस-कांउसुल आंद्रेयास फिशबेक कहते हैं, "इस चैरिटी मैच ने उनके देश को एक महान काम में हिस्सा लेने का मौका दिया है. दो अलग-अलग संस्कृतियों के मेलमिलाप के लिए खेलों से बेहतर कोई और जरिया नहीं हो सकता. बंगाल में फुटबाल के प्रति भारी दीवानगी है. फुटबाल खेलने और इसके जरिए दोनों देशों की संस्कृतियों के बीच तालमेल बढ़ाने का यह एक बेहतरीन मौका है."
लेकिन आखिर फुटबाल के मक्का और बायर्न के बीच इस तालमेल की शुरूआत कैसे हुई ? ब्राइटनर कहते हैं, "फुटबाल ने बरसों से हमें काफी कुछ सिखाया और दिया है. हम अब फुटबाल को इसका बदला चुकाना चाहते हैं. बंगाल के उभरते फुटबालरों को प्रशिक्षण देकर हम यही काम कर रहे हैं. इस नेक शुरूआत के लिए फुटबाल के मक्का से बेहतर और कौन सी जगह हो सकती है ?"
ब्राइटनर ने भारतीय फुटबाल की सहायता की भी पेशकश की है. वह कहते हैं, ‘हम भारतीय खिलाड़ियों के प्रशिक्षण के लिए जर्मन कोच भेज कर और भविष्य में दूसरी भारतीय टीमों के साथ खेल कर भारतीय फुटबाल का स्तर सुधारने में सहायता कर सकते हैं.'
ब्राइटनर कहते हैं कि भारत अगर अपने खिलाड़ियों की क्षमता बढ़ाने के लिए आधुनिकतम तकनीक का इस्तेमाल करे और फुटबाल खेलने वाले विश्व के शीर्ष देशों के साथ विचारों और ज्ञान का आदान-प्रदान करे तो यहां फुटबाल को काफी फायदा हो सकता है. उनका कहना है कि इसके लिए भारत को दीर्घकालिक रणनीति बनाने के अलावा अपने कोचों और खिलाड़ियों के लिए यूरोप और दक्षिण अमेरिका में बेहतर प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी होगी.
पत्रकारों से बातचीत में ब्राइटनर ने कहा, "भारतीय फुटबाल का स्तर सुधारने के लिए विदेशी विशेषज्ञों को समय-समय पर बुलाना जरूरी है. इस खेल के विकास के लिए तकनीक के अलावा ढांचागत सुविधाओं में सुधार भी जरूरी है." एडिडास इंडिया, जो इस प्रशिक्षण कार्यक्रम की प्रमुख आयोजक भी है, के मैनेजिंग डाइरेक्टर आंद्रेयास गेलनर बताते हैं, कोलकाता की क्लीनिक में इस साल चुने गए छहों युवा फुटबालरों को अगले साल एफसी बायर्न फुटबाल स्कूल में दो सप्ताह का प्रशिक्षण दिया जाएगा.
रिपोर्ट: प्रभाकर मणि तिवारी, कोलकाता
संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य