सताती बर्लिन दीवार की याद
११ अगस्त २०११बर्लिन की दीवार और पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी को अलग करने वाली 1,400 किलोमीटर की सीमा ने 28 साल तक जर्मन लोगों को एक दूसरे से अलग रखा. इस साल बर्लिन की दीवार के निर्माण को 50 साल पूरे हो रहे हैं. इस मौके पर बहुत से जर्मन यादों में खो जाते हैं.
कई सर्वे दिखाते हैं कि हर चौथा जर्मन चाहता है कि दीवार आज भी होती. पश्चिमी जर्मनी में इसे 'शर्म की दीवार' जबकि पूर्वी जर्मनी में 'रक्षा की फासीवाद विरोधी दीवार' के नाम से जाना जाता था.
बंटवारे की 'चाहत'
1990 में मिटी सरहद के दोनों पार रहने वाले लोगों के पास दीवार से जुड़ी कई यादें हैं. जर्मनी में सर्वे कराने वाले संस्थान एमनिड के अध्ययन में पूर्वी जर्मनी के 23 प्रतिशत और पश्चिमी जर्मनी के 24 प्रतिशत लोगों का कहना है कि अगर आज दीवार होती तो उनकी जिंदगी बेहतर होती.
लगभग 16 प्रतिशत लोगों की राय है कि आज भी जर्मनी को आंतरिक तौर पर दो हिस्सों में बांटना अच्छा ख्याल होगा, भले ही यह यूरोप की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत हो. जर्मनी आज अच्छी तरह स्थापित एक कल्याणकारी राष्ट्र है, 7 प्रतिशत बेरोजगारी दर घटने की ओर है और यहां का शिक्षा का मॉडल दुनिया भर में खास पहचान रखता है.
फिर से बंटवारे की प्रबल भावनाएं उस देश में किसी को भी हैरान कर सकती हैं जिसने बड़े जोश और खुशी में झूमते हुए नवंबर 1989 में बर्लिन दीवार को गिरा दिया. उस वक्त दीवार के दोनों तरफ रहने वाले जर्मनों ने उस पर हथौड़े बरसाए. बहुत से लोगों की यादें अब भी ताजा हैं कि किस तरह लोग एकजुट होने के बाद गले मिल रहे थे, एक दूसरे पर शैंपेन फेंक रहे थे.
एकीकरण की कीमत
उस वक्त पश्चिमी बर्लिन के मेयर रहे वाल्टर मोम्पर कहते हैं, "हम जर्मन दुनिया के सबसे खुश लोग हैं." बर्लिन की फ्री यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्लाउस श्रोएडर मानते हैं कि पूर्वी जर्मनी के कुछ लोग अपने देश जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य (जीडीआर) के बारे में बहुत ही आदर्श अवधारणा रखते थे जो कभी अस्तित्व में ही नहीं आई. वहीं पश्चिमी जर्मनी के लोगों को एकीकरण की आर्थिक कीमत चुकानी पड़ी.
1990 से अब तक जर्मन सरकार को देश के पूर्वी हिस्से को विकसित करने पर अरबों यूरो खर्च करने पड़ रहे हैं. यह पैसा तथाकथित एकजुटता कर से आ रहा है, जो हर कर्मचारी के वेतन पर लगाया जाता है. यह टैक्स कम से कम 2019 तक जारी रहेगा.
इसीलिए सिर्फ 37 प्रतिशत पश्चिमी जर्मन ही सोचते हैं कि उन्हें बीते दो दशकों में एकीकरण से नुकसान की जगह फायदे ज्यादा हुए हैं. यह बात बर्लिन-ब्रांडेनबुर्ग सोशल सेंटर की रिपोर्ट में कही गई है. पूर्वी हिस्से में ऐसे लोगों की संख्या 42 प्रतिशत है.
'अधूरा' एकीकरण
बर्लिनर त्साइटुंग अखबार में प्रकाशित फोर्सा संस्थान के सर्वे के मुताबिक बर्लिन की एक तिहाई से ज्यादा आबादी मानती है कि बर्लिन दीवार बनाना कोई गलती नहीं थी. दस फीसदी आबादी की राय तो यहां तक है कि बर्लिन दीवार को बनाना एक अत्यावश्यक कदम था.
बर्लिन में जीडीआर म्यूजियम और बार भी है जो पूर्वी जर्मनी की खुफिया पुलिस की याद दिलाते हैं. यहीं नहीं पर्यटक पूर्वी जर्मन की कार ट्राबी में बैठ कर सैर भी कर सकते हैं.
श्रोएडर पुरानी यादों से पैदा हताशा की वजह पूर्व और पश्चिम के लोगों के बीच पूरी तरह एकीकरण न होने को मानते हैं. जर्मन एकीकरण के 21 साल के बाद भी पूर्वी जर्मनी कहलाने वाले पांच राज्य पश्चिमी राज्यों के मुकाबले 70 फीसदी ही उत्पादन कर पाते हैं. पूर्वी जर्मनी के लोगों को पश्चिम के मुकाबले वेतन भी 22 प्रतिशत कम मिलता है. बेरोजगारी पश्चिम से दोगुनी है और अपराध बढ़ रहे हैं.
पूरी नहीं हुई उम्मीदें
श्रोएडर कहते हैं, "दो तंत्रों की लड़ाई में पश्चिम की जीत हुई. पूर्व तो हमेशा से खोने वाले की भूमिका में ही रहा है. इसलिए पूर्वी जर्मनी के बहुत से लोग खुद को जर्मन नहीं मानते. वे इसे स्वीकार करते हैं पर इसका समर्थन नहीं करते. वे खुद को बिना देश वाले लोग समझते हैं जो जर्मनी में रह रहे हैं."
पश्चिमी हिस्सा आजादी का सबसे ज्यादा बचाव करता है जबकि पूर्वी हिस्सा समानता और सुरक्षा पर जोर देता है. ये मुद्दे जीडीआर की विरासत भी कहे जा सकते हैं. अब इन मूल्यों की कोई गारंटी नहीं है. बहुत से जर्मन सोचते हैं कि उन्हें बहाल करने में बहुत समय लगेगा. हालांकि वे ईंट या कंक्रीट की दीवार नहीं चाहते. लेकिन विभाजन की चाहत इस बात की याद दिलाती है कि संयुक्त जर्मनी में जिंदगी वैसी नहीं है, जैसा सोचा गया था. पूर्वी जर्मनी के लिए तुरंत पूंजीवाद लागू करने की बजाय एक 'तीसरे रास्ते' से बहुत सी उम्मीदें लगाई गईं.
रिपोर्टः डीपीए/ए कुमार
संपादनः महेश झा