भारत को यूरेनियम देने के और करीब पहुंचा ऑस्ट्रेलिया
४ दिसम्बर २०११भारत ने इस सिलसिले में पहले ही कहा था कि ऑस्ट्रेलिया से मिल रहे यूरेनियम का इस्तेमाल वह अपने बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में कर सकता है. ऑस्ट्रेलिया की लेबर पार्टी पहले इस फैसले का विरोध कर रही थी क्योंकि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत नहीं किए हैं. लेकिन गिलार्ड ने सिडनी में हो रहे पार्टी कान्फ्रेंस में अपने साथियों को समझाया कि इस फैसले में "एक नया भविष्य है. यह सदी एशिया की है और हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि अपने इलाकों में हम जितना संभव हो सके मजबूत रिश्ते बनाएं और इनमें दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भी शामिल हो."
लेबर पार्टी के 206 सदस्यों में से 185 ने फैसले के हक में वोट किया. हालांकि आम लोगों के बीच से इसके खिलाफ काफी आवाजें भी उठीं और प्रदर्शनकारियों की वजह से पार्टी की चर्चा में भी रुकावट आई. स्कूल शिक्षा मंत्री पीटर गैरेट ने भी फैसले का विरोध किया और कहा कि इससे परमाणु निरस्त्रीकरण को लेकर ऑस्ट्रेलिया की मुहिम में बाधाएं आ सकती हैं.
ऑस्ट्रेलिया की प्रमुख विपक्षी लिबरल पार्टी हमेशा से भारत को यूरेनियम निर्यात करने के पक्ष में थी. प्रधानमंत्री गिलार्ड के फैसले का पार्टी सदस्यों ने स्वागत किया. इस साल नवंबर में यूरेनियम निर्यात नीति में बदलाव की घोषणा के बाद भारतीय विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने कहा कि यह भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों की समझ को दर्शाता है. साथ ही में उन्होंने कहा कि भारत का परमाणु अप्रसार को लेकर भी रिकार्ड अच्छा रहा है और इससे दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंध अच्छे होंगे.
परमाणु आपूर्ति देशों के गुट एनएसजी ने 2008 में भारत को परमाणु तकनीक और सामग्री बेचने की अनुमति दे दी थी. इसके बाद सदस्य देशों को भारत के साथ द्विपक्षीय समझौते बनाने की आजादी मिल गई. अमेरिका ने 2008 में ही भारत के साथ परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर कर लिया था. ऑस्ट्रेलिया के साथ जल्द ही समझौता होने की उम्मीदें अब बढ़ रही हैं. बड़ी बात है कि ऑस्ट्रेलिया ने चीन को यूरेनियम बेचने से मना कर दिया है, जब कि चीन परमाणु अप्रसार संधि का हिस्सा है.
रिपोर्टः एजेंसियां/एमजी
संपादनः एन रंजन