भारत पाक वार्ता पर मुंबई का साया
२७ जुलाई २०११पाकिस्तान का नेतृत्व इस बार उनकी नई विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार कर रही हैं. खार के सामने भारत के वरिष्ठ विदेश मंत्री एसएम कृष्णा हैं. उन पर पूर्व पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी की चपल राजनीति और कटु राजनय को आगे बढ़ाने का दबाव है और पिछली बातचीत की नाकामी का साया है. उनके सामने परमाणु संपन्न दक्षिण भारतीय देशों की 67 साल की प्रतिद्वंद्विता है और वह सिर्फ 34 साल की हैं.
भारी चुनौती
पिछले साल इस्लामाबाद में उस वक्त के पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और एसएम कृष्णा की बातचीत कड़वे मोड़ पर पहुंच कर नाकाम हो गई. ऐसे में दोनों मुल्कों को नए सिरे से शुरुआत करनी है. अनुभवहीन पाकिस्तानी विदेश मंत्री खार के लिए यह काम आसान नहीं होगा. दोनों देश जानते हैं कि ऐसी किसी एक बैठक में कोई बड़ा नतीजा तो नहीं निकल सकता लेकिन चिर प्रतिद्वंद्वियों के सामने एक दूसरे पर भारी पड़ने की चुनौती जरूर रहती है.
जानकार कहते हैं कि खार भले ही कम उम्र की हों लेकिन उनमें दबाव को झेलने की क्षमता है. पाकिस्तान के राजनीतिक और राजनयिक विश्लेषक सज्जाद नसीर का कहना है कि नीतियां तो सैन्य कंट्रोल के साथ मिल कर बनती हैं, "ऐसा नहीं है कि उन्हें भी कोई तजुर्बा नहीं है. मैं कहूंगा उनके पास कुछ सालों का अनुभव तो है, लेकिन पाकिस्तान की विदेश नीति को देखते हुए ऐसा माना जाता है कि विदेश नीति और रक्षा संबंधी मुद्दे सेना ही तय करती है और यह सरकार के सहयोग के साथ होता है. "
नये रास्तों की तलाश
भारत और पाकिस्तान 1947 में अलग राष्ट्र बनने के बाद से ही कश्मीर और दूसरे मुद्दों पर द्विपक्षीय बातचीत करते आए हैं लेकिन अब तक किसी का हल नहीं निकला है. दोस्ती से ज्यादा दुश्मनी निभाई गई है. दोनों देशों के बीच करगिल सहित तीन युद्धों के अलावा भारतीय संसद और 26/11 के मुंबई हमलों ने गहरी दरार डाली है. भारत 2008 में मुंबई के आतंकवादी हमलों के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार बताता है और इस मामले में पकड़े गए एकमात्र आतंकवादी अजमल आमिर कसाब के पाकिस्तानी होने की पुष्टि भी हो चुकी है.
इसके बाद भारत ने पाकिस्तान से हर रिश्ता तोड़ दिया. सरकारी बातचीत और क्रिकेट तक बंद हो गया. वक्त के साथ घाव भरे, तो बातचीत दोबारा शुरू हुई. विदेश सचिव और प्रधानमंत्री स्तर तक की मुलाकात हुई. अमेरिका की मैसाचूसेट्स यूनिवर्सिटी से मेहमाननवाजी में मास्टर्स डिग्री करने वाली 34 साल की खार के सामने चुनौती होगी कि वह नए दरवाजे खोलें.
बातचीत सिर्फ रस्म अदायगी
लेकिन पाकिस्तान की विदेश नीति सिर्फ सरकार नहीं, बल्कि सेना और मुस्लिम राष्ट्र होने के नाते उलेमा भी तय करते हैं. पुरुष प्रधान राष्ट्र पाकिस्तान में क्या अनुभवहीन महिला के लिए यह आसान काम होगा? नसीर कहते हैं कि बेनजीर भुट्टो के रूप में पाकिस्तान महिला प्रधानमंत्री देख चुका है और महिला होना कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन उन्हें पहले से तय कायदों पर चलना होगा. इससे उनके नाकाम न होने की तो गारंटी है, लेकिन यह बात भी साफ है कि कुछ नया नहीं निकलेगा, "मुझे नहीं लगता कि वह अकेले ही विदेश नीति में बदलाव ला सकती हैं. मेरे ख्याल से वो सरकार के साथ विचार विमर्श कर के सेना द्वारा तैयार किए गए एजेंडा पर ही चलेंगी. वह अकेले दम पर कोई विशाल बदलाव लाती नहीं दिख रहीं."
भारतीय जानकार भी कहते हैं कि बातचीत सिर्फ रस्म अदायगी होगी. उनका कहना है कि अगर इच्छाशक्ति होती तो दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धमोर्चे सियाचिन और सर क्रीक सीमा पर तो अब तक समझौता हो ही सकता था, क्योंकि ये कश्मीर जैसे मुद्दों से तो कम महत्वपूर्ण हैं. दिल्ली में दक्षिण एशिया मामलों की जानकार प्रोफेसर सविता पांडे कहती हैं कि भले ही मीडिया मुद्दे को उछाले लेकिन जब तक नीतियां नहीं बदली जातीं, आगे बढ़ना मुश्किल है, "केवल बातचीत करने से कुछ नहीं होगा, नीतियों में बदलाव लाने की जरूरत है. पाकिस्तान को आतंकवादी संगठनों का साथ देना बंद करना होगा. एबटाबाद कांड के बाद से ना सिर्फ सरकार, बल्कि पाकिस्तान के दूसरे क्षेत्रों में भी मनोबल गिरा है और ऐसे में भारत के साथ रिश्तों में बदलाव लाने की कोई उम्मीद नहीं है."
मुंबई के घाव
अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के राजधानी इस्लामाबाद के पास एबटाबाद में मारे जाने के बाद पाकिस्तान पर जबरदस्त अंतरराष्ट्रीय दबाव है. अमेरिका के अलावा पाकिस्तानी जनता भी सरकार से नाराज है और ऐसे में दुश्मन देश भारत के साथ पाकिस्तान का दोस्ताना कदम उन्हें और भड़का सकता है.
पाकिस्तान की विदेश मंत्री अगर युवा और नातजुर्बेकार हैं, तो भारतीय विदेश मंत्री एसएम कृष्णा सरकारी दौरे में कभी विम्बलडन देखने तो कभी पांचसितारा होटलों में डेरा जमाने के लिए जाने जाते हैं. 79 साल के कृष्णा को औसत मंत्री समझा जाता है और कैबिनेट के पिछले फेरबदल में उन्हें हटाने की भी चर्चा थी. कृष्णा के रिकॉर्ड में कोई उल्लेखनीय काम नहीं है. पांडे कहती हैं कि इतने सालों बाद भी दोनों देश गतिरोध खत्म करने की वजह नहीं ढूंढ पाए हैं, "भारत और पाकिस्तान के रिश्ते अब जनता की राय पर निर्भर करते हैं और क्योंकि जनता एक तरह से पाकिस्तान के खिलाफ है, इसलिए देश में पाकिस्तान विरोधी विचारधारा है. लोगों के दिलों से अभी 2008 के हमलों की यादें दूर हो ही रही थी कि एक बार फिर मुंबई में सिलसिलेवार हमले हो गए. मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐसा समझती हूं कि बातचीत का कोई हल नहीं निकलेगा."
रिपोर्ट: अनवर जे अशरफ
संपादन: ईशा भाटिया