भारत में क्रिकेट का ओवरडोज
२६ अक्टूबर २०११टिकटों की भारी भरकम कीमत और एक के बाद एक लगातार कई क्रिकेट टूर्नामेंट इसकी वजह बताए जा रहे हैं. इंग्लैंड में भारत की शर्मनाक हार के बाद भारत ने इंग्लैंड को अपनी धरती पर उसी तरह से हराया है. भारत में क्रिकेट के जानकार इस जीत की जितनी तारीफ कर रहे हैं, आम दर्शक इससे उतना ही दूर चला गया लगता है.
मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम को इसी साल वर्ल्ड कप फाइनल मैच के लिए दोबारा तैयार किया गया. इसमें 45,000 लोगों के बिठने की व्यवस्था है और अप्रैल महीने में यह खचाखच भरा था. लेकिन इंग्लैंड के खिलाफ रविवार को हुए मैच में इसमें बमुश्किल 13,000 लोग ही नजर आए. पिछले 36 साल में ऐसा नहीं हुआ था कि मुंबई के इस ऐतिहासिक स्टेडियम में इतने कम लोग जुटे हों.
कोलकाता के लोग क्रिकेट के दीवाने माने जाते हैं. भारत जब चार मैच लगातार जीत कर इसी ग्राउंड पर मंगलवार को इंग्लैंड का सफाया करने वाला था, तो अनुमान था कि स्टेडियम दर्शकों से भरा होगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का बल्ला चलता रहा और पूरे मैदान पर गेंद और बल्ले के टकराने की आवाज गूंजती रही. इन मौकों पर ताली बजाने वाले और अपने हीरो को प्रोत्साहित करने वाले लोगों की संख्या गिनी चुनी ही रही.
खाली खाली स्टेडियम
शुरू के तीन मैचों में भी स्टेडियम भरा नहीं. अलबत्ता उन मैचों में चौथे और पांचवें मैच से ज्यादा दर्शक दिखे. हैदराबाद और नई दिल्ली में खेले गए मैचों में तो ठीक ठाक दर्शक रहे, लेकिन मोहाली में खेले गए तीसरे वनडे में स्टेडियम आधा भी नहीं भर पाया. मशहूर क्रिकेट कमेंटेटर हर्षा भोगले का कहना है, "यह स्पष्ट संकेत है कि खेल में थकान पैदा हो रही है. लोगों में किसी टूर्नामेंट को लेकर उत्साह होना चाहिए. लेकिन एक के बाद एक सीरीज होने की वजह से इस उत्साह की कमी हो रही है."
भारत ने वानखेड़े स्टेडियम में दो अप्रैल को वर्ल्ड कप का फाइनल मैच जीता. इसके बाद जब पूरा देश पार्टी में व्यस्त था तो भारतीय खिलाड़ी आईपीएल लीग मैच में उतर गए. उसके बाद वे सीधे वेस्ट इंडीज और फिर इंग्लैंड चले गए. भारत ने इंग्लैंड में टेस्ट मैचों की सीरीज 0-4 से और वनडे मैचों की सीरीज 0-3 से गंवा दी थी.
अब दिलचस्पी मुश्किल
आईपीएल की दिल्ली डेयरडेविल्स टीम के सीईओ अमृत माथुर का कहना है, "वे इसे बदला लेने वाली सीरीज का नाम दे रहे हैं. लेकिन वर्ल्ड कप में भारत की जीत के मुकाबले यह कुछ भी नहीं है. इतनी बड़ी जीत हासिल करने के बाद किसी और मैच में दिलचस्पी जगा पाना आसान काम नहीं होता है. दर्शक किसी भी मैच को देखने के लिए ग्राउंड में नहीं चले जाएंगे."
माथुर का कहना है कि भारत के तीन इक्के सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग और युवराज सिंह इस सीरीज में नहीं खेले और दर्शकों की अरुचि की यह भी वजह रही. उनका कहना है, "यह बहुत फर्क डालता है. ये खिलाड़ी भीड़ खींच सकते हैं."
इस सीरीज के दौरान टेलीविजन और अखबारों में ज्यादा चर्चा पहले इंडियन ग्रां प्री की रही. ग्रेटर नोएडा में 30 अक्टूबर को फॉर्मूला 1 की पहली रेस होनी है और इसको लेकर खेल प्रेमियों में भी उत्साह दिख रहा है.
बड़े ताज्जुब की बात
क्रिकेट के जानकारों के लिए दर्शकों की यह बेरुखी थोड़ी मायूस करने वाली रही क्योंकि भारत में क्रिकेट को धर्म की तरह समझा जाता है और बड़ी टीम के खिलाफ होने वाले मैच को लेकर लोग दीवाने रहते हैं. खास कर किसी ऐसी टीम को लेकर तो उनका जुनून ज्यादा होना स्वाभाविक है, जिसने हाल ही में टीम इंडिया को बुरी तरह हराया हो. दुनिया के सबसे रईस क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई ने इस बात को माना है कि दर्शकों में वैसी दिलचस्पी नहीं दिखी लेकिन बोर्ड इनकार करता है कि दर्शकों को जरूरत से ज्यादा क्रिकेट का डोज दिया जा रहा है.
बीसीसीआई सचिव संजय जगदाले का कहना है, "पहले दो मैचों में हैदराबाद और दिल्ली में काफी दर्शक आए. इसलिए हम यह नहीं कह सकते कि लोग क्रिकेट से बेजार हो गए हैं." वह दीवाली को भी एक वजह समझ रहे हैं और कह रहे हैं कि उन्हें हैरानी है कि वनडे देखने के लिए दर्शक नहीं आए, हो सकता है कि लोग दीवाली में व्यस्त हों.
भारत में यूं तो शुरुआती टिकटों की कीमत 500 रुपये और 1000 रुपये है, जो दूसरे मुल्कों से बेहद कम है. लेकिन भारत के आम लोगों के लिए यह फिर भी ज्यादा है. दूसरी मुश्किल दर्शकों को होने वाली दिक्कतें हैं. उन्हें घंटों लाइन में खड़े होकर सुरक्षा जांच करानी पड़ती है और वे स्टेडियम में खाने पीने की चीजें भी लेकर नहीं जा सकते हैं. पीने का पानी साथ नहीं ले जा सकते और सीटों का कोई नंबर नहीं होता, जिसे जहां जगह मिलती है, वहीं बैठ जाता है.
छह सात घंटे बैठने के बाद बड़े से बड़े क्रिकेट प्रेमी पर भूख और प्यास हावी हो जाती है. स्टेडियम में खाने पीने के स्टॉल भी तब तक खाली हो चुके होते हैं. दो हफ्ते के अंदर छह नवंबर को वेस्ट इंडीज की टीम भारत पहुंचने वाली है. कोई ताज्जुब नहीं अगर उन्हें भी रंग बिरंगी खाली कुर्सियों के सामने ही बल्ला भांजना पड़े.
रिपोर्टः एएफपी/ए जमाल
संपादनः ए कुमार