भारत में पांच करोड़ की मर्सिडीज मायबाख
२ फ़रवरी २०११चमचमाती मायबाख 275 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ सकती हैं. यह बात अलग है कि भारतीय सड़कें शायद इसकी इजाजत न दें. मर्सिडीज कार बनाने वाली डाइमलर बेंज ने इसे भारत में पेश किया है और कीमत रखी है पांच करोड़ एक लाख रुपये.
कंपनी का कहना है कि वह उन लोगों पर नजर रखती है, जिनके पास अपने निजी विमान हैं. भारत के लिए डाइमलर के सीईओ पीटर होनेग ने बताया, "भारत में ऐसे ग्राहक हैं, जो इस खूबसूरत कार का लुत्फ उठा सकते हैं." भारत में इस वक्त 69 अरबपति हैं, जिनमें से 17 पिछले साल ही इस मुकाम पर पहुंचे हैं.
कंपनी ने पिछले साल पूरी दुनिया में 200 मायबाख कारें बेची हैं. इसके दो मॉडल हैं, 57 एस और 62.
होनेग ने कहा कि वह भारत में कोई टारगेट नहीं रखना चाहते हैं लेकिन भारत के पड़ोसी मुल्क चीन में पिछले साल 20 मायबाख कारें बेची गई हैं. भारत में 2004 में भी मायबाख लाई गई थी लेकिन होनेग का कहना है कि वह सही वक्त नहीं था.
मायबाख जर्मन कार तकनीक की बेजोड़ मिसाल है, जिसकी शुरुआत 1909 में विलहेम मायबाख ने की थी. यह लक्जरी कारें बनाती आई है. इसने पहली लक्जरी कार 1919 में बनाई और इसके बाद 1940 तक इसकी कारें जर्मन और यूरोपीय सड़कों पर खूब दिखीं. उस वक्त की मायबाख कार अगर आज किसी के पास है, तो उसे बहुत बड़ा रईस समझा जाता है. पूरी दुनिया में मायबाख कार को नाम और पैसे की निशानी के रूप में देखा जाता है. शुरू में मायबाख नौसेना और रेल के लिए भी इंजन बनाती थी.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद कंपनी को मरम्मत के लिए बंद किया गया लेकिन यहां दोबारा उत्पादन कभी शुरू नहीं हो पाया. 1960 में मर्सिडीज ने मायबाख को खरीद लिया लेकिन कार का निर्माण फिर भी नहीं किया गया.
आखिरकार 1997 में मर्सिडीज बनाने वाली डाइमलर कंपनी ने मायबाख को दोबारा दुनिया के सामने लाने का फैसला किया लेकिन इसके बड़े नाम को देखते हुए इसका ब्रांड नहीं बदला गया. मायबाख अभी भी मर्सिडीज बेंज मायबाख से ही बाजार में आ रही है.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल
संपादनः उज्ज्वल भट्टाचार्य