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भारतीय रिजर्व बैंक ने अलार्म बजाया

१६ सितम्बर २०११

भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत खस्ता होने लगी है. बढ़ती महंगाई को काबू करने के लिए रिजर्व बैंक ने एक बार फिर रेपो रेट में 25 बेसिक प्वाइंट का इजाफा किया. इसकी सीधी चोट आर्थिक विकास पर पड़ेगी. आरबीआई भी यह मान रहा है.

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तस्वीर: AP

एशिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत अकेला ऐसा देश है जहां सबसे ज्यादा महंगाई है. शुक्रवार को भारत के केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट में 0.25 फीसदी की बढोत्तरी कर दी. बीते डेढ़ साल में यह 12वां मौका है जब रिजर्व बैंक ने ब्याज दर बढ़ाई है. रेपो रेट वह दर है जिस पर रिजर्व बैंक व्यावसायिक बैंकों को कर्ज देता है. रेपो रेट बढ़ने से बैंक लोन महंगा हो सकता है. इसकी सीधी मार उद्योग धंधों पर पड़ेगी. हाउसिंग सेक्टर और रियल स्टेट का कारोबार भी इससे अछूता नहीं रहेगा.

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने एक बयान में कहा, "यह अत्यावश्यक है कि हम दृढ़तापूर्वक महंगाई रोधी रुख अपनाए रखें." सुब्बाराव ने संकेत दिए हैं कि अगर इन कदमों के बावजूद भी महंगाई काबू नहीं हुई तो भविष्य में और सख्त कदम उठाए जाएंगे. आरबीआई का कहना है कि वह महंगाई को हर कीमत पर काबू करेगा चाहे आर्थिक विकास पर इसकी मार पड़े.

Indien neues Symbol für die Rupie
तस्वीर: picture alliance/dpa

ताजा आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत अब आर्थिक बाधाओं का सामना भी करने लगा है. इस साल जुलाई में औद्योगिक उत्पादन सिर्फ 3.3 फीसदी बढ़ा. जीडीपी की विकास दर भी लड़खड़ाने लगी है. महंगाई और महंगे कर्ज की वजह हर क्षेत्र में मांग कम होने लगी है. उद्योगों को कच्चा माल महंगा मिल रहा है. पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हो रही वृद्धि से परिवहन संबंधी लागत आसमान पर पहुंच चुकी है. ऐसे में ग्राहकों के सामने महंगा उत्पाद आ रहा है. आधारभूत संरचना को दुरुस्त करने के काम भी प्रभावित हो रहे हैं.

13 महीने बाद यह पहला मौका है जब भारत में महंगाई दर 9.78 फीसदी पहुंच गई है. मौजूदा महंगाई के आधार पर अगर देश में गरीबी रेखा की सीमा तय की जाए तो कम से कम 40 फीसदी भारतीय इसके नीचे आ जाएंगे. विकास करती अर्थव्यवस्था में हमेशा एक औसत दर की महंगाई बनी रहती है. भारतीय रिजर्व बैंक मानता है कि यह औसत महंगाई पांच फीसदी होनी चाहिए. महंगाई ज्यादा होने पर धीरे धीरे अर्थव्यवस्था में दीमक लगने लगती है. भारत अब इस खतरनाक स्थिति पर आ चुका है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की छवि को नुकसान होने लगा है. भ्रष्टाचार के बाद बढ़ती महंगाई की खबरों ने विदेशी निवेशकों को निराश किया है. 2010-2011 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भारी गिरावट देखी गई है. लगता है कि भारत के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनके करीबी मोटेंक सिंह अहलूवालिया का आर्थिक तिलस्म टूट रहा है. वित्त मंत्रालय भी अपनी प्रभावी कार्यशैली दिखाने में असफल साबित हुआ है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: महेश झा

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