"भ्रष्टाचार पर कानून के दायरे में मंत्री और जज हों"
९ जून २०११संसद में एक ऐसा कानून तैयार करने की कोशिश हो रही है जिसके जरिए भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों को सुरक्षा प्रदान की जाएगी और उनकी पहचान जाहिर करने वाले व्यक्तियों को कड़ी सजा मिलेगी. 2003 में नेशनल हाइवे ऑथोरिटी ऑफ इंडिया में इंजीनियर सत्येंद्र दुबे ने व्यवस्था में भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत की लेकिन उनकी पहचान लीक कर हो गई और फिर उनकी हत्या कर दी गई. इसीलिए भ्रष्टाचार के मामलों को सामने लाने वाले लोगों को सुरक्षा देने का प्रस्ताव है. झूठी शिकायत दर्ज कराने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई का भी प्रावधान है.
राज्यसभा चेयरमैन को सौंपी गई रिपोर्ट में संसद की स्थायी समिति ने सशस्त्र सेनाओं, मंत्री परिषद, न्यायपालिका, खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को भी इस बिल के दायरे में लाने की सिफारिश की गई है जिनके खिलाफ शिकायत की जा सकती है. व्हिस्लब्लोअर बिल खास तौर पर उन लोगों को सुरक्षा देने के लिए बनाया गया है जो व्यवस्था में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते हैं. स्थायी समिति की अध्यक्ष जयंती नटराजन ने कहा कि सरकार का कोई भी विभाग जवाबदेही और जनता की नजर से दूर नहीं होना चाहिए.
रिपोर्ट में पैनल ने कहा है कि मंत्री परिषद, न्यायपालिका, कायदे कानून बनाने वाली संस्थाओं और व्यवसायिक जगत को भी इस बिल के दायरे में लाया जाना चाहिए. जरूरत पड़ने पर इस बिल में संशोधन करने की भी सिफारिश की गई है. नटराजन ने उम्मीद जताई है कि यह बिल सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की वकालत करता है इसलिए यह अन्य प्रस्तावित कानूनों से तालमेल बैठाएगा. नटराजन का इशारा जन लोकपाल बिल की ओर है.
सरकार को सलाह दी गई है कि लोकपाल बिल को तैयार करते समय व्हिस्लब्लोअर को सुरक्षा देने वाले बिल को देखा जाना चाहिए.
बिल तैयार पैनल ने ऐसी व्यवस्था की सिफारिश है ताकि भ्रष्टाचार या कुव्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाने वाले व्यक्ति की पहचान से किसी भी कीमत पर समझौता न हो. इस बिल के तहत उन लोगों को भी सुरक्षा दी जाएगी जो भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने वाले व्यक्ति के साथ गवाही दे रहे हैं. भ्रष्टाचार का गुप्त रूप से भंडाफोड करने वाले व्यक्ति की पहचान सार्वजनिक करने वालों को कड़ी सजा दी जाएगी.
केंद्रीय सतर्कता आयोग को इस संबंध में कड़े दंड का अधिकार दिया गया है. बेसिरपैर की शिकायत करने वाले व्यक्तियों के लिए पांच साल की सजा निर्धारित करने से पैनल सहमत नहीं है. उसके मुताबिक सजा को इतना कड़ा नहीं होना चाहिए और सजा के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील का अधिकार होना चाहिए.
रिपोर्ट: एजेंसियां एस गौड़
संपादन: ए जमाल