मलाला और पाकिस्तानी प्रोपेगंडा
१६ अक्टूबर २०१२"मलाला पर हमले के पीछे सीआईए का हाथ है", "मलाला अमेरिका की एजेंट है" सोशल मीडिया फेसबुक और ट्विटर पर इस तरह के स्टेटस की बाढ़ सी आ गई है. ज्यादातर लोग पाकिस्तान के मध्य वर्ग के लोग हैं, जो पढ़े लिखे हैं. ऐसे संदेश भी दिख रहे हैं, "यह पाकिस्तान और तालिबान को बदनाम करने की कोशिश है."
पाकिस्तान में उदारवादी विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान की जनता साजिश के सिद्धांत को पसंद करती है. उनका कहना है कि जिस देश में अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही है, जहां महंगाई और बेरोजगारी अब तक के सबसे ऊपर के स्तर पर पहुंच चुकी है, जहां एक भ्रष्ट सरकार है और जहां बिजली कटौती और खुदकुश हमले आए दिन की बात हो गई हो, वहां यह बहुत ही आसान है कि किसी भी चीज के लिए पश्चिम को जिम्मेदार ठहरा दो.
मलाला यूसुफजई को पिछले हफ्ते तालिबान बंदूकधारियों ने गोली मार दी, जिसके बाद से 14 साल की यह बच्ची जिन्दगी और मौत के बीच जंग लड़ रही है. उसे इलाज के लिए ब्रिटेन भेजा गया है. मलाला स्वात घाटी की मशहूर लड़की है, जिसने बच्चियों की पढ़ाई लिखाई की वकालत की है. तालिबान ने हमले की जिम्मेदारी ले ली है और कहा है कि अगर वह इस बार बच गई, तो उस पर दोबारा हमला किया जाएगा.
कैसे कैसे विचार
पाकिस्तान के एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने इस पर एक आर्टिकल प्रकाशित किया है, जिस पर ऑनलाइन कमेंट है, "यह निश्चित तौर पर एक साजिश है कि ड्रोन हमलों की तरफ से हमारा ध्यान भटक जाए. यहां के लोग मीडिया के दास हैं और उनकी अपनी कोई विचारधारा है ही नहीं."
एक और कमेंटेटर ने लिखा है, "पाकिस्तान की सेना तालिबान पर हमले के लिए जमीन तैयार कर रही है. मलाला पर सीआईए के एजेंटों ने हमला किया है. इसके लिए तालिबान को दोषी नहीं ठहराना चाहिए."
फेसबुक पर एक कमेंट का दावा है कि मलाला पर इसलिए हमला किया गया है, ताकि पाकिस्तान के "लोग द इनोसेंस ऑफ मुस्लिम्स नाम की फिल्म का विरोध करना बंद कर दें."
कैसी कैसी तस्वीरें
इंटरनेट पर कुछ लोगों ने फोटोशॉप करके तस्वीरें डाल दी हैं, जिसमें मलाला और उसके पिता को अमेरिकी अधिकारियों के साथ दिखाया गया है. इसके साथ ही मृत बच्चियों की तस्वीर भी है, जिसमें दावा किया गया है कि उनकी मौत ड्रोन हमलों में हुई है. तस्वीर में कैप्शन लगा है, "क्या इन्हें सहानुभूति की जरूरत नहीं है." फेसबुक के ही एक और पोस्ट में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को अपने अधिकारियों के साथ हंसते हुए दिखाया जा रहा है और तस्वीर में कैप्शन लगा है, "सर, वो अभी भी समझते हैं कि मलाला पर तालिबान ने हमला किया है."
कराची के विश्लेषक मंसूर रजा ने डीडब्ल्यू को बताया कि जो लोग तालिबान और धार्मिक संगठनों के साथ सहानुभूति रखते हैं, वे अफवाह फैला कर लोगों में गलतफहमी पैदा कर रहे हैं. उनका कहना है, "यह एक कोशिश है कि मलाला पर हमले को कमतर कर दिया जाए क्योंकि ज्यादातर पाकिस्तानियों ने इस हमले की निंदा की है."
कैसे कैसे तर्क
इस्लामाबाद के मनोविज्ञानी हमीद सत्ती का कहना है, "मेरी नजर में यह काम इसलिए किया जा रहा है ताकि किसी और को जिम्मेदार ठहराया जा सके. कड़वी सच्चाई का सामना करने की जगह हम दूसरों पर जिम्मेदारी थोपते रहते हैं. यही हमारे बचाव का तरीका है."
कराची के एक छात्र ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "पाकिस्तान के लोग अमेरिका से नफरत करते हैं लेकिन साथ ही उससे बुरी तरह प्रभावित भी हैं. वे समझते हैं कि अमेरिका में खुदाई ताकत है. वे समझते हैं कि वह कुछ भी कर सकता है. वह लोगों को गायब कर सकता है, बाढ़ ला सकता है, अंतरिक्ष से कुछ गिरा सकता है." इस छात्र ने कहा कि फेसबुक पर ये लोग कुछ भी कमेंट कर रहे हों लेकिन यही लोग अमेरिका का वीजा पाने के लिए किसी हद तक जा सकते हैं.
हालांकि मानवाधिकार संगठनों ने मलाला पर हमले की तीखी निंदा की है. नागरिक समाज के लोगों ने बच्चियों की शिक्षा को बढ़ाने की बात कही है. पाकिस्तान की लेखिका जाहिदा हिना का कहना है कि तालिबान बर्बर है और वह मानवता में यकीन नहीं रखता, "14 साल की मलाला तालिबान के लिए खतरा बन गई क्योंकि वह दूसरी बच्चियों के लिए मिसाल बनती जा रही थी. तालिबान ने उस पर हमला किया है क्योंकि वह संदेश देना चाहता था कि अगर कोई दूसरी बच्ची ऐसा करती है, तो उसका भी यही हश्र होगा."
मलाला का फिलहाल ब्रिटेन के बर्मिंघम अस्पताल में इलाज चल रहा है.
रिपोर्टः शामिल शम्स/एजेए
संपादनः महेश झा