मानव तस्करी पर लचर जर्मनी
९ अप्रैल २०१३जर्मनी अक्सर तय कानून के पालन पर जोर देता है, लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि वही नियमों का पालन नहीं करता. जैसे कि मानव तस्करी के मामले में. यूनिसेफ और बच्चों के लिए काम करने वाले संगठन ईसीपैट मानव तस्करी को रोकने के यूरोपीय संघ के कानूनों के पालन में ढील के लिए जर्मनी की आलोचना करते हैं.
एनजीओ असंतुष्ट
जर्मनी अभी भी इस बारे में बात कर रहा है कि कैसे वह इस मुद्दे पर कार्रवाई करें. न्याय मंत्रालय के प्रवक्ता के मुताबिक, "मंत्रालय का ड्राफ्ट यूरोपीय गाइडलाइन्स के मुताबिक है." लेकिन सत्ताधारी सीडीयू-सीएसयू पार्टी के घरेलू नीति प्रवक्ता हांस पेटर ऊल इससे सहमत नहीं. वह कहते हैं, "विधि मंत्रालय सिर्फ वर्तमान कानून को ही आगे बढ़ाना चाहता है जिसमें मानव तस्करी भीख मंगवाने के लिए की जाती हो या फिर इसका इरादा पाकेटमारी करवाना या अंगों की अवैध तस्करी हो." हंस पेटर ऊल कहते हैं कि प्लान बहुत आगे नहीं जाएगा बशर्ते यौन शोषण के इरादे के साथ होने वाली मानव तस्करी को इस गाइड लाइन में शामिल नहीं किया जाता.
एनजीओ भी नए कानून को ढीला बताते हुए इसकी कड़ी आलोचना करते हैं. जर्मनी में यूनिसेफ के रूडी टार्नेडेन कहते हैं, "अगर नाबालिग लड़की रोमानिया से जर्मनी लाई जाती है और उसे जबरदस्ती देह व्यापार में धकेला जाता है. तो यह यौन अपराध और शोषण में आता है लेकिन मानव तस्करी में नहीं. जबकि मानव तस्करी के लिए जर्मन कानून में बहुत कड़ी सजा है."
ऊल कहते हैं कि जर्मनी में जबरदस्ती देह व्यापार करवाने के मामले में मानव तस्करी वाली सजा नहीं होना असंभव सी बात है. क्योंकि जर्मन कानून में इसे साबित करने का पूरा दारोमदार पीड़ित पर होता है. लेकिन बदले के डर से पीड़ित इस बारे में कुछ नहीं बताते. ऊल जानकारी देते हैं कि अक्सर पीड़ित बता तो देते हैं, लेकिन फिर अपने बयान वापस ले लेते हैं क्योंकि उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है.
पीड़ितों पर आरोप
यूरोपीय सुरक्षा और सहयोग संगठन ओईसीई के मुताबिक हर साल मध्य और पूर्वी यूरोप से सवा लाख से पांच लाख के बीच महिलाओं की तस्करी पश्चिमी यूरोप में की जाती है और इन्हें देह व्यापार में धकेला जाता है. इनमें से अधिकतर लड़कियां बालिग नहीं होती.
यूरोपीय संघ के दिशा निर्देश बच्चों के लिए विशेष सुरक्षा की मांग करते हैं. गाइड लाइन में कहा गया है, "बच्चों के मानव तस्करी का शिकार होने का खतरा ज्यादा रहता है."
लेकिन जर्मनी में खासकर उन्हें बहुत कम समर्थन मिलता है. यूनिसेफ के टार्नेडेन के मुताबिक, "इस किशोर लड़कियों को जर्मनी लाया जाता है और उन्हें देह व्यापार या और किसी काम में धकेल दिया जाता है. अगर उन्हें अधिकारी पकड़ लेते हैं तो पूछताछ का फोकस किसी और के अपराध पर नहीं होता बल्कि इस बात पर होता है कि पकड़े जाने वाली ने कानून तोड़ा है और वह जर्मनी में अवैध तरीके से आई है."
मुश्किल आप्रवासन नीतियां
टार्नेडेन के मुताबिक यह अटकल का मुद्दा है कि जर्मनी दिशा निर्देश लागू करने में इतना धीमा क्यों है. जबकि यह सबको पता है कि जर्मनी में आप्रवासन के नियम कड़े हैं. "शायद इस बारे में चिंता है कि पीड़ितों को सुरक्षा देने को जर्मनी के आप्रवासन नियमों को कमजोर करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है."
सांसद ऊल को उम्मीद नहीं है कि जर्मनी में यूरोपीय संघ की गाइड लाइन जल्दी लागू की जा सकेगी. "हमें सितंबर में चुनावों तक इस मुद्दे को आगे बढ़ाना होगा." हालांकि यूरोपीय अदालत में जर्मनी से जवाब मांगा जा सकता है कि उन्होंने समय पर इसे लागू क्यों नहीं किया.
रिपोर्टः रायना ब्रॉयर/एएम
संपादनः महेश झा